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सुगम संगीत और छाऊ समूह नृत्य ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
By Deshwani | Publish Date: 20/11/2017 11:34:38 AM
सुगम संगीत और छाऊ समूह नृत्य ने दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

भोपाल,(हि.स.)। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में परम्परा, नवप्रयोगों एवं नवांकुरों के लिए स्थापित श्रृंखला "उत्तराधिकार" में शनिवार को देर शाम "सुगम संगीत" और "छाऊ समूह नृत्य" की प्रस्तुतियाँ संग्रहालय सभागार में हुईं7 जिसमें मानसी पगारे (भोपाल) ने अपने साथी संगतकारों के साथ सुगम संगीत प्रस्तुत किया और राकेश साईं बाबू एवं राजेश साईं बाबू (दिल्ली) ने अपने साथियों के साथ छाऊ समूह नृत्य प्रस्तुत किया। देर रात चले गीत-संगीत एवं नृत्य की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

पहली प्रस्तुति में मानसी पगारे ने अपने संगतकारों के साथ ब्रहमानंद के भजन ‘प्रभु तेरी महिमा परम अपारा’ से सुगम संगीत की सभा का प्रारंभ किया। इसके पश्चात उन्होंने गजलों में बशीर बद्र की गज़़ल ‘लहरों में डूबते रहे’, ‘कितना मासूम सा वो शोख़ नजऱ लगता है’ और ‘अब तेरे मेरे बीच में जरा फासला भी हो’ दानिश अलीगढ़ी की गज़़ल ‘दौर खिजां को फसले बहाराँ बना लिया’, बेदम वारसी की गज़़ल ‘सारी दुनिया मुझे कहती तेरा सौदाई’, शमीम जयपुरी की गज़़ल ‘क्या कहर है कि नींद न आए तमाम रात’ और राहत इंदौरी की गज़ल ‘नशा ए ऐश में हो चूर तुम्हें क्या मालूम’ को पेश किया। अंत में मानसी पगारे ने कबीर भजन ‘कौन ठगवा नगरिया लुटल हो’ से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। मानसी पगारे का साथ संगतकारों में हारमोनियम पर मुबारक खान साहब ने, तबले पर फरीद खान ने, ढोलक पर फ़हमीद खान ने और ऑर्गन पर शाहिद खान ने साथ दिया।

दूसरी प्रस्तुति में प्रसिद्ध छाऊ कलाकार जन्मेजय साईं बाबू जी के पुत्र और शिष्य राजेश साईं बाबू और राकेश साईं बाबू ने अपने साथी कलाकारों के साथ छाऊ समूह नृत्य की प्रस्तुति दी। नृत्य की शुरुआत नटराज नृत्य रूप की एकल प्रस्तुति से हुई, जिसमें भगवान शिव को दर्शाते हुए सृजन, संरक्षण और विनाश को बड़ी ही खूबसूरती से नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया7 इसके पश्चात उन्होंने ‘दांडी’ नृत्य रूप की प्रस्तुति दी। दांडी नृत्य रूप छाऊ नृत्य की एक विधा है जिसमें संसारिक जीवन को त्याग कर सन्यास धारण करने वाले व्यक्ति के मनोभावों को नृत्य के माध्यम से रूपायित कर प्रस्तुत किया जाता है। इसके पश्चात उनके द्वारा गीता के कृष्ण अर्जुन संवाद को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया कि कैसे भगवान कृष्ण अपनी ईश्वरीय शक्ति से अर्जुन को परिचित करवाते हैं और अर्जुन को अपने धर्मनिष्ठ कर्तव्य को पूरा करने का निर्देश देते हैं। प्रस्तुति के अंत में युद्धाभ्यास की कला को नृत्य संरचनाओं में रूपांतरण के माध्यम से प्रस्तुत कर उन्होंने अपने समूह नृत्य को विश्राम दिया। कार्यक्रम के दौरान सभागार में उपस्थित सुधि श्रोताओं और दर्शकों ने करतल ध्वनि से सभी कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।

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