लखनऊ, (हि.स.)। हल्दी की खेती बहुत उपयोगी होती है। इससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। हल्दी से कुरकमिन तत्व निकलता है। इसका उपयोग अल्सर, पेट संबंधी तकलीफ और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार वाली दवाओं के निर्माण में किया जाता है। बाजार में इसकी कीमत 20 से 25 हजार रुपए किलो रहती है।
हल्दी की खेती बलुई दोमट या मटियार दोमट मृदा में सफलतापूर्वक की जाती है। जल निकास की उचित व्यवस्था होना चाहिए। यदि जमीन थोड़ी अम्लीय है तो उसमें हल्दी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसकी खेती हेतु भूमि की अच्छी तैयारी करने की आवश्यकता है क्योंकि यह जमीन के अंदर होती है जिससे जमीन को अच्छी तरह से भुरभुरी बनाया जाना आवश्यक है। मोल्ड बोल्ड प्लाऊ से कम से कम एक फीट गहरी जुताई करने के बाद दो तीन बार कल्टीवेटर चलाकर जमीन को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए।
20 से 25 टन हेक्टेयर के मान से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए क्योंकि गोबर की खाद डालने से जमीन अच्छी तरह से भुरभुरी बन जायेगी तथा जो भी रासायनिक उर्वरक दी जायेगी उसका समुचित उपयोग हो सकेगा। इसके बाद 100-120 किलोग्राम नत्रजन 60-80 किलोग्राम स्फुर 80-100 तथा किलोग्राम हेक्टेयर के मान से पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।
पानी की पर्याप्त सुविधा है, वे अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक हल्दी को लगा सकते हैं। लेकिन जिनके पास सिंचाई सुविधा का पर्याप्त मात्र में अभाव है वे मानसून की बारिश शुरू होते ही हल्दी लगा सकते हैं किंतु खेती की तेयारी पहले से ही करके रखना चाहिए।
मसाले वाली किस्म, पूना, सोनिया, गौतम, रशिम, सुरोमा, रोमा, कृष्णा, गुन्टूर, मेघा, हल्दा1, सुकर्ण, सुगंधन तथा सी.ओ.1 आदि प्रमुख जातियां है जिनका चुनाव किसान कर सकते है। थोड़ी सी मात्र यदि एक बार मिल जाती है तो फिर अपना बीज तैयार किया जा सकता है।
हल्दी को खोदते समय पूरी तौर से सावधानी बरतनी चाहिए जिससे धन केन्द्रों की कम हानि हो और समूची गाठें निकाली जा सकें गाठों को पहले छोटा-छोटा कर लिया जाता है। इसके बाद बड़े-बड़े कड़ाहों में डालकर इसको उबाला जाता है। उबालते समय थोड़ा गोबर या फिर हल्दी की पत्तियों को ही पानी के साथ डालकर उबाला जाता है।-डा. एस.के सिंह कृषि विशेषज्ञ