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बड़वानी की पहचान है तीर गोला: सिसोदिया
By Deshwani | Publish Date: 18/11/2017 1:54:37 PM
बड़वानी की पहचान है तीर गोला: सिसोदिया

बड़वानी, (हि.स.)। बड़वानी रियासत के महाराजाओं द्वारा अनेक भव्य इमारतें बनवाई गईं। वे आज भी अपने गौरव की गाथा कहती हुई प्रतीत होती हैं। तीर गोला आज बड़वानी की एक खास पहचान है। इसके निर्माता राणा देवीसिंह जी थे। वे अपने राजमहल सागर विलास पैलेस से अपने स्वर्गीय भाई उदयसिंह के इस मेमोरियल को निहारते थे और अपने भाई को याद करते थे। यह बातें एडव्होकेट, बड़वानी रियासत के इतिहास के जानकार तथा राज परिवार के प्रतिनिधि सदस्य शिवपालसिंह सिसोदिया ने बताईं। 

ज्ञातव्य है कि शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ की सहायता से इतिहास विभाग द्वारा इन दिनों प्रस्तावित पुस्तक ‘हमारी बड़वानी हमारा गौरव’ के लिए सामग्री संकलित की जा रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में पीएच. डी. शोधार्थी अंतिम मौर्य और डॉ. मधुसूदन चौबे के नेतृत्व में इतिहास के विद्यार्थियों और कॅरियर सेल के सदस्यों ने तीर गोला का अवलोकन किया तथा सिसोदिया और बीएस शालीय और अन्य जानकारों से तीर गोला के संबंध में तथ्य जुटाये। यह आयोजन प्राचार्य डॉ. जे के गुप्ता के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।

यह है इतिहास

तीर गोला अंजड़ नाका से बाईं ओर साईंनाथ कॉलोनी के अंतिम छोर पर पहाड़ी पर बनाया गया है। छात्रा गोल्डी गौतम और प्रीति गुलवानिया ने संकलित सूचनाओं के आधार पर तीर गोला स्थल पर विद्यार्थियों को बताया कि बड़वानी रियासत के तत्कालीन महाराजा राणा देवीसिंह के छोटे भाई राजकुमार उदयसिंह अपनी सगाई सम्पन्न करके आलीराजपुर से बड़वानी लौट रहे थे। कुक्षी के निकट तालनपुर में कार दुर्घटना में उनका देहावसान हो गया। यह घटना 12 जून, 1942 को घटी थी। राणा देवीसिंह अपने भाई से बहुत स्नेह करते थे। उन्होंने भाई की स्मृति में तीर गोला का निर्माण करवाया। इसे उदय मेमोरियल के नाम से जाना जाता है। 

कहते हैं कि तीर गोला की डिजाइन एक विदेशी पत्रिका में प्रकाशित डिजाइन की अनुकृति है। तीर गोला ऊँचाई पर है तथा इसका आकार भी वृहत् है, अत: यह बहुत दूर से दिखाई देता है और बड़वानी की एक पहचान बन चुका है। अंतिम मौर्य ने बताया कि तीर को इस तरह निर्मित किया गया था कि वह तडि़त चालक के रूप मे भी प्रयुक्त होता था। उस समय दो तडि़त चालक बनाये गये थे। एक राजमहल में और दूसरा तीर गोला में। सिसोदिया ने बताया कि बीसवीं सदी के पांचवें दशक में जब तीर गोला बनवाया गया था, तब इस पर सिल्वर कलर किया गया था। हाल ही में थोड़े समय पहले इसकी मरम्मत करवाई गई है। वर्तमान में यह सीमेंटेड दिखाई देता है। इसे पुन: मूल सिल्वर रंग प्रदान किया जायेगा। परिसर में राजकुमार उदयसिंह के दो पारसी मित्रों की कब्र भी हैं, जिन्होंने यह इच्छा व्यक्त की थी कि मृत्यु के उपरांत उनके पार्थिव शरीरों को तीर गोला के निकट स्थान दिया जाये।

इतिहास को समझने का प्रयास

इतिहास की छात्रा सोनिका पाटीदार और डॉ. मधुसूदन चौबे ने बताया कि इतिहास के विद्यार्थी बड़वानी का इतिहास समझ सके और उसे संजोकर जन सामान्य के लिए सुलभ करवा सके इसलिये यह अभियान चलाया जा रहा है। लगभग छह माह में हम प्रस्तावित पुस्तक ‘ हमारी बड़वानी हमारा गौरव’ की सामग्री संकलित करने का प्रयास कर रहे हैं।

बहुत अच्छा लग रहा है

तीर गोला का अवलोकन करने गये गोल्डी गौतम, सुरेश बरडे, अशोक मालवीय, इकाराम डावर, मोहन वास्कले, खुशाली मालवीय, ज्योति कुमावत, वंदना कुमावत, सोनू काग, अंशुल सुल्या, राकेश बर्मन, सोनिका पाटीदार, प्रीति गुलवानिया सहित सभी विद्यार्थियों ने कहा कि तीर गोला का भ्रमण करते हुए बहुत अच्छा लग रहा है। इसके बारे में दी गई जानकारियां रोचक हैं। बस एक बात अखरती है कि तीर गोला परिसर में गंदगी है। हम इसे स्वच्छ करने में योगदान देंगे। यह एक अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की पूरी संभावनाएं लिये हुए है। आसपास उद्यान का विकास किया जा सकता है। बैठने के लिये चेयर्स लगवाई जा सकती है।

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