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राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम ने लौटाई मूक-बधिक बच्ची के जीवन में खुशियां
By Deshwani | Publish Date: 17/11/2017 3:56:11 PM
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम ने लौटाई मूक-बधिक बच्ची के जीवन में खुशियां

गुना,  (हि.स.)। मूक-बधिर जैसी व्याधि से पीडि़त आलिया का भी अन्य बच्चों की तरह स्कूल जाकर पढऩे का सपना था, पर कानों से सुनने एवं मुंह से बोलने में असमर्थ आलिया मन मसोस कर रह जाती थी और आंगनवाड़ी केन्द्र में ही पढ़ाई जारी रखने को विवश थी। उसकी जिंदगी में खुशियां तब लौटीं, जब कांक्लियर इम्लांट सर्जरी से उसको इस व्याधि से मुक्ति मिली।
उसका आत्मविश्वास फिर से जागा और वह अन्य बच्चों की तरह व्यवहार करने लगी है और अब उसको पढऩे में अधिक कठिनाई नहीं है। उसको बोलने और सुनने में परेशानी नहीं होती। सुनने-बोलने की शारीरिक व्याधि से जूझ रही आलिया की इस व्याधि को कांक्लियर इम्लांट तकनीक से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की मदद से दूर किया गया।
जन्मजात मूक-बधिर की गंभीर व्याधि से पीडि़त आलिया के पिता फिरोज खान को अपनी बेटी को इस व्याधि से मुक्ति दिलाना नामुमकिन था। गुना के रहने वाले फिरोज खान पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं। कांक्लियर इम्लांट सर्जरी के लिए साढ़े छ: लाख रूपये का खर्च आता है और इतना खर्च कर सर्जरी कराना तो दूर बेचारे किसी अच्छे नाक,कान, गला रोग विशेषज्ञ को एक बार दिखाने की फीस चुकाने तक की हैसियत में नहीं हैं। लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने उनकी इस समस्या का समाधान किया। फिरोज खान अपनी बेटी को लेकर इंदौर आए, जहां उसकी मुफ्त में सर्जरी हुई। इस तरह आलिया को इस सर्जरी ने जटिल व्याधि से मुक्त कर नया जीवन दिया है।
मूक-बधिर की व्याधि से मुक्त होने पर आलिया के पिता फिरोज खान बताते हैं, "घर परिवार के लोग आलिया की व्याधि और उसकी पढ़ाई को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। आलिया की सर्जरी कराना उसकी सामथ्र्य में नहीं था। आलिया की शिक्षा और उसको सामान्य व्यवहार में दक्ष करने के लिए उसको आंगनवाड़ी केन्द्र में दाखिल कराया गया। बाद में एक परिचित ने आलिया की मुफ्त सर्जरी के लिए मुझको स्वास्थ्य विभाग जाने के लिए प्रोत्साहित किया।" आलिया की मां रूखसार कहती हैं, "आस पड़ोस की महिलाएं उसकी बेटी को लेकर उलाहना देतीं और कहतीं, बच्ची तो गूंगी-बहरी है, क्या होगा इसका। यह सुनकर मुझको बहुत दु:ख होता था।" आलिया के माता-पिता अब बहुत खुश हैं व आलिया का भी आत्मविश्वास जाग गया है कि वह भी दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाकर पढ़ाई पूरी कर सकेगी। फिलहाल उसकी पढ़ाई घर और आंगनवाड़ी केन्द्र में हो रही है।
इस तरह की व्याधियों से बच्चों को मुक्त कराने के लिए शासन द्वारा तैनात जिला समन्वयक आर.बी.एस.के. विनीता सोनी कहती हैं, "कांक्लियर इम्लांट सर्जरी में बच्चे के कान के पीछे सिर में ऑपरेशन करके कान के अन्दर नस में मशीन को फिट किया जाता है। तत्पश्चात् ऑपरेशन के बाद एक मशीन कान के बाहर भी लगाई जाती है, जिससे सुनने के लिए तरंग कान के अन्दर जा सके। कांक्लियर इम्लांट के बाद बच्चे की स्पीच थैरेपी कराई जाती है। पिछले एक वर्ष में इस तरह के 35 बच्चों की सर्जरी कराई गई, जिस पर शासन की कुल 2 करोड़ 27 लाख 50 हजार रूपये की राशि व्यय हुई।" श्रीमती सोनी आगे कहती हैं, "सर्जरी के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की टीम इन बच्चों की तीमारदारी करती है। आलिया की आगे भी स्पीच थैरेपी कराई जाती रहेगी।"
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