लखनऊ, (हि.स.)। मटर ठंड में सबसे महत्वपूर्ण सब्जी मानी जाती है। रबी सीजन की मुख्य दलहनी फसल मटर की बुवाई का काम भी लगभग खत्म के कागार पर है। यह फसल जल निकास क्षमता वाली जीवांश पदार्थ मृदा उपयुक्त मानी जाती है। मटियार दोमट तथा दोमट भूमि मटर की खेती के लिए अति उत्तम है। बलुअर दोमट भूमियों में भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर मटर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
मटर की फसल के लिए नम और ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिकांश स्थानों पर मटर की फसल रबी की ऋतु में बोई जाती है। इसकी बीज अंकुरण के लिये औसत 22 डिग्री सेल्सियस एवं अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये 10-18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यदि फलियों के निर्माण के समय गर्म या शुष्क मौसम हो जाये तो मटर के गुणों एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन सभी स्थानों पर जहां वार्षिक वर्षा 60-80 से.मी. तक होती है। मटर की फसल सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है मटर के वृद्धि काल में अधिक वर्षा का होना अत्यंत हानिकारक होता है।
कृषि उपनिदेश एस.सिंह की मानें तो दलहनी सब्जियों में मटर लोगों की प्राथमिकता होती है। इसे किसान कम अवधि में तैयार कर सकता है।
उन्होंने बताया कि किसान मटर की अगेती किस्मों की खेती करके जहां सब्जियों में मटर की बढ़ी हुई मांग को पूरा कर सकते हैं वहीं इससे अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने मटर की अगेती प्रजाति की कई किस्मों को विकसित किया है। जिसमें आजाद मटर-3, काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी अगेती प्रमुख हैं। मटर की इन प्रजातियों की सबसे खास बात यह है कि यह 50 से लेकर 60 दिन में तैयार हो जाती है।
मटर की फसल में अच्छी तरह से पैदावार लेने के लिए एक एकड़ भूमि में 10-15 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद और नीम की खली को खेत में समान रूप से बिखेर कर जुताई के समय मिला देना चाहिए।
ट्राईकोडरमा 25 किलो एकड़ के अनुपात से खेत में मिलाना चाहिए लेकिन याद रहे कि खेत में पर्याप्त नमी हो, बुबाई के 15-20 दिन बाद वर्मिवाश का अच्छी तरह से छिड़काव करें ताकि पौधा तर बतर हो जाये, निराई के बाद जीवामृत का छिड़काव कर दें। जब फसल फूल पर हो या समय हो रहा हो तो एमिनो एसिड एवं पोटाशियम होमोनेट की मात्रा स्प्रे के द्वारा देनी चाहिए। मटर को बीज जनित रोगों से बचाव के लिए थीरम 2 ग्राम या मैकोंजेब 3 ग्राम को प्रति किलो बीज की दूर से शोधन करना चाहिए।