शिमला, (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में नौ नवम्बर को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में इस बार राष्ट्रीय पार्टियों के साथ छोटी-छोटी पार्टियों की भी भरमार है। 68 सीटों वाली विधानसभा में कई क्षेत्रीय पार्टियों के उम्मीदवार अपनी किस्मत चमकाने में लगे हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख पार्टियों के नाम राम पार्टी, स्वाभिमान पार्टी, नेशनल फ्रीडम पार्टी और जनता-कांग्रेस पार्टी इत्यादि हैं। स्वाभिमान पार्टी 50 सीटों पर प्रत्याशियों का एेलान कर चुकी है।
वामपंथी दलों की उम्मीदें भी चुनाव को लेकर बढ़ गई हैं। माकपा ने 30 सीटों पर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार दिए हैं और मंगलवार से माकपा प्रत्याशी चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करना शुरू कर देंगे। माकपा ने पूर्व विधायक राकेश सिंघा को ठियोग और पूर्व मेयर संजय चौहान को शिमला शहर से उम्मीदवार बनाया है।
मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी हिमाचल की तरफ नजरें गड़ाए हुए हैं। हालांकि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ने को लेकर अभी पत्ते नहीं खोले हैं। माकपा को छोड़ अन्य पार्टियों की नजरें भाजपा और कांग्रेस के उन बागी या असंतुष्ट नेताओं पर लगी हैं, जिन्हें अपनी पार्टियों में टिकट नहीं मिलेंगे लेकिन अभी तक भाजपा व कांग्रेस के एक भी असंतुष्ट नेता ने छोटी पार्टियों का दामन नहीं थामा है।
बेशक राज्य में क्षेत्रीय दल अभी तक अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाए हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में तकरीबन हर सीट पर छोटे दलों के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी भी गणित बिगाड़ने में भूमिका निभाते हैं। वर्ष 1998 के चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के कद्दावर नेता रह चुके सुखराम की हिमाचल विकास पार्टी ने पांच सीटें जीतकर राजनीतिक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था लेकिन बाद में इस पार्टी का अस्तित्व ही मिट गया।
इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के बागी महेश्वर सिंह ने हिमाचल लोकहित पार्टी का गठन कर तीसरा विकल्प देने का दावा किया था। मगर उनकी पार्टी चुनाव में चारों खाने चित हो गई थी। महेश्वर सिंह को छोड़कर हिलोपा के सभी प्रत्याशी हार गए थे। इसी साल महेश्वर सिंह के भाजपा में शामिल होने से हिलोपा का भी वजूद खत्म हो गया।