वाराणसी, (हि.स.)। धन्वंतरी जयन्ती (धनतेरस) के पूर्व जयन्ती पर सोमवार को दारानगर स्थित महामृत्युंजय मंदिर परिसर में स्थित धन्वंतरी कूप पर परम्परानुसार मेला लगा।
इस अवसर पर धन्वंतरी महादेव का विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया। जजमान की भूमिका में जाने माने वैद्य शिवनायक मिश्र,वैद्य बीडी शर्मा, डा.अजय जायसवाल रहे। पूजन अर्चन के बाद आयोजित संगोष्ठी में पूर्व निदेशक आयुष भारत सरकार डा.शिवशंकर मिश्र ने भगवान धन्वंतरी के बारे में विस्तार से चर्चा कर उन्हें आयुर्वेद का जनक बताया। डा. बृजेश सिंह,शैलेन्द्र श्रीवास्तव, डा.जयशंकर चौबे, डा.संजय दूबे,डा.राजेश मौर्य आदि ने विचार रखा।
रजत सिंहासन पर विराजमान भगवान धन्वंतरी का खुलेगा कपाट
सुड़िया-बुलानाला के धनवन्तरि निवास में स्थित लगभग तीन सौ वर्ष से अधिक पुराने भगवान धनवंतरि का मंदिर धनतेरस पर्व पर मंगलवार को खुलेगा। वर्ष भर में धनतेरस पर्व पर सिर्फ पांच दिन के लिए खुलने वाले इस आरोग्य मंदिर के ड्योढ़ी पर हाजिरी मात्र से भक्तों को रोग-व्याधि से मुक्ति और सुख-समृद्धि व यश की प्राप्ति होती है। मंदिर भइया दूज तक दर्शन-पूजन के निमित्त खुला रहता है। धनतेरस पर दर्शन करना शुभ एवं कल्याणकारी माना गया है। मंदिर में गर्भगृह में रजत सिंहासन पर सुशोभित अष्ठधातु की प्रतिमा भगवान धनवन्तरि की है। माथे पर स्वर्ण मुकुट और देह पर पीताम्बरी धारण किए हुए देव विग्रह की छवि अद्भुत है। वैद्यराज पं. कन्हैया लाल ने पहली बार धनवन्तरि उत्सव की शुरुआत की थी। आज उनके वंशज राजवैद्य पं. शिव कुमार शास्त्री तथा उनके पुत्र पं. राम कुमार शास्त्री, पं. नंद कुमार शास्त्री और पं. समीर कुमार शास्त्री एवं प्रपौत्र आदित्य व मिहिर विक्रम शास्त्री परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं। समीर शास्त्री के अनुसार देवासुर संग्राम में जब समुद्र मंथन हुआ था, उस समय कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानि धनतेरस पर भगवान धनवन्तरि अमृत कलश लिए मध्याह्न बेला में प्रकट हुए थे। उनकी चार भुजाओं में शंख, चक्र, जोक व अमृत कलश शोभायमान रहा। आयुव्रेद में जोक का प्रयोग रक्त शोधन, चक्र का उपयोग चीर-फाड़, शंख विशेष प्रभाव के लिए और अमृत कलश को सभी औषधियों का प्रतीक माना जाता है।