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पं. सुखराम का भाजपा में जाना मंडी की सियासत में क्या गुल खिलाएगा
By Deshwani | Publish Date: 16/10/2017 11:54:27 AM
पं. सुखराम का भाजपा में जाना मंडी की सियासत में क्या गुल खिलाएगा

मण्डी, (हि.स.)। हिमाचल की राजनीति के दो दिग्गजों वीरभद्र सिंह और सुखराम के बीच सियासी टकराव का इतिहास पुराना है। दोनों ही राजनेता पांच दशक से भी अधिक समय से सक्रिय राजनीति में गुजार चुके हैं और दोनों के बीच वर्चस्व की जंग शीतयुद्ध की तरह है। ये कभी भी हिमाचल की राजनीति में तूफान खड़ा कर देते हैं।
पं. सुखराम और वीरभद्र सिंह के बीच सियासी टकराव उस समय से शुरू हुआ, जबसे पं. सुखराम ने मंडी से सीएम की दावेदारी पेश करनी शुरू कर दी। हालांकि, पं. सुखराम को प्रदेश की राजनीति से बाहर कर केंद्र में भेजा गया। मगर वहां से वे केंद्रीय मंत्री बन और भी सशक्त होकर उभरे। 1993 में उन्होंने 22 विधायकों के साथ चंडीगढ़ में प्रेस कांप्रेंस कर अपनी दावेदारी पेश कर दी थी। मगर अपने ही जिले के कुछ विधायकों का समर्थन न जुटा पाने की वजह से पं. सुखराम मुख्यमंत्री पद पर काबिज न हो पाये। इसके बाद संचार घोटाले की वजह से कांग्रेस से बाहर होने के बाद पं. सुखराम ने हिमाचल विकास पार्टी का गठन कर 1998 में प्रदेश के इतिहास में पहली बार भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाकर वीरभद्र सिंह को सत्ता से बाहर कर दिया।
हालांकि पं. सुखराम ने अपनी पार्टी एचवीसी का कांग्रेस में विलय कर घर वापसी कर ली और मंडी संसदीय क्षेत्र से प्रतिभा सिंह को विजयी भी बनवाया। मगर वीरभद्र और सुखराम के रिश्तों में आई दरार अब भी नहीं भर पायी थी। सुखराम को अदालती झमेलों के चलते अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अपितु उन्होंने सक्रिय राजनीतिक जीवन से भी सन्यास लेने की घोषणा कर दी। सुखराम ने अपने परंपरागत गढ़ सदर विधानसभा क्षेत्र की कमान अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी। मगर चुनाव जीतने के बाद अनिल शर्मा को वरिष्ठता के बावजूद भी मंत्री पद की शपथ नहीं दिलवाई गई।
पं. सुखराम ने बाद में केंद्र के अपने रसूख का इस्तेमाल कर अनिल शर्मा को मंत्री तो बनवा दिया। लेकिन अनिल शर्मा का कहना है कि उन्हें बतौर मंत्री कोई तरजीह नहीं दी गई। हाल ही में हुए कुछ घटनाक्रमों के चलते पं. सुखराम ने अपने परिवार समेत कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया है। इससे मंडी जिला के सियासी समीकरण बदलने की संभावना जताई जा रही है। क्योंकि पं. सुखराम का सदर हलके में ही नहीं बल्कि आसपास के विधानसभा क्षेत्रों में खासा प्रभाव रहा है। अब देखना है कि सुखराम और अनिल शर्मा का भाजपा में शामिल होना भाजपा के लिए कितना फायदेमंद रहता है और इसका मंडी की राजनीति में क्या असर होगा।
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