नई दिल्ली, (हि.स.)। शांति सेवा और न्याय का स्लोगन लेकर जनता की रक्षा करने व पीड़ितों की सहायता की बात कहने वाली दिल्ली पुलिस अपना काम कितनी ईमानदारी से करती है। यह साउथ रोहिणी की घटना को देखने के बाद साफ पता चलता है। एक पिता अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए थाने व वरिष्ठ अधिकारी के ऑफिस के चक्कर काटता रहता है। लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं होती।
अंत में लॉ एंड ऑर्डर के आदेश पर पुलिस ने पीड़ित पिता के बयान पर केस दर्ज किया। जानकारी के अनुसार, अनिल अग्रवाल (49) परिवार के साथ रोहिणी सेक्टर-3 में रहते हैं। अनिल का अपना निजी कारोबार है। गत 13 सितंबर की सुबह पुलिस द्वारा अनिल को कॉल आती है कि आपके बेटे ने आत्महत्या कर लिया है। अनिल के अनुसार, 12 सितंबर को उनका बेटा शुभम खाना खाकर अपने कमरे में सोने चला गया।
शुभम ने तीन माह पहले ही बीटेक की पढ़ाई पूरी की थी। रात करीब 12.30 बजे शुभम फोन पर बात करते हुए घर से निकला। परिवार ने पूछा तो बेटे ने कुछ देर बाद आने की बात कही। अगली सुबह 11.40 बजे पुलिस द्वारा अनिल को कॉल आती है कि आपके बेटे ने आत्महत्या किया है। जिस मकान में शुभम का शव मिला वह दो लड़कों ने किराए पर लिया हुआ था।
शव का पोस्टमार्टम होने के बाद अनिल गत 14 सितंबर को साउथ रोहिणी थाने गए और मामले की शिकायत दर्ज करने को कहा। लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी।
एक माह बाद दर्ज हुई एफआईआर
अनिल के अनुसार, थाने में केस दर्ज न होने पर वह जिले के ज्वाइंट सीपी के पास गए। वहां से उन्हें डीसीपी के पास भेजा गया। डीसीपी साहब ने थाने में कॉल करके केस दर्ज करने को कहा। लेकिन पुलिस अपने वरिष्ठ अधिकारियों की कहां सुनती है।
इतनी जगह जाने के बाद भी पुलिस ने पीड़ित पिता की शिकायत दर्ज नहीं की। अंत में लॉ एंड ऑर्डर एसबीके सिंह के निर्देश के बाद पुलिस की आंख खुली। बीती देर रात थाने से पीड़ित पिता के पास कॉल आया की थाने आकर केस दर्ज करवाये।
देर रात होने पर पीड़ित ने मना किया। लेकिन आदेश वरिष्ठ अधिकारी ने दिया था| लिहाजा पुलिस देर रात खुद ही पीड़ित के घर आई और पीड़ित के बयान पर आईपीसी की धारा 306/34 के तहत केस दर्ज किया।