ग्वालियर, (हि.स.)। जीवन के पाँच बसंत गुजर जाने के बाद भी नेहा न तो कुछ बोल पाती थी और न ही सुन। ऐसे में वह अपने मन की बात किसी से बयां नहीं कर पाती थी। उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम जरूरतभर के वो चंद इशारे थे, जो उसके माता-पिता ने सिखाए थे। मगर अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है। नेहा को कहीं भी ऐसा पोस्टर दिख जाए, जिसमें प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का फोटो हो तो वह मामा-मामा चिल्लाकर मचल जाती है। ऐसा इसलिए कि मामा ही तो हैं, जिन्होंने उसे बोलने और सुनने में सक्षम किया है।
प्रजापति का मोहल्ला, कमल सिंह का बाग ग्वालियर निवासी दिहाड़ी श्रमिक सोनू प्रजापति के आंगन में जब फूल सी बिटिया की किलकारी गूँजी, तो पूरे परिवार ने खूब खुशियाँ मनाईं। सोनू की पत्नी ऊषा तो फूली नहीं समा रही थीं। उसने अपनी बिटिया का नाम नेहा रखा। जैसे-जैसे समय गुजरा नेहा पहले घुटनों चली फिर अपने पैरों पर। मगर उसके मूँह से बोल नहीं फूटे। इतना ही नहीं वह किसी की बात भी नहीं सुन पाती। सोनू दम्पत्ति की चिंतायें बढ़ीं। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह श्रवण बाधित (मूक-बधिर) दिव्यांग है। डॉक्टर ने सलाह दी कि अगर नेहा के कॉक्लियर इम्प्लांट लग जाए तो वह सामान्य बच्चों की तरह बोल-सुन सकेगी। मगर इस पर लगभग साढ़े 6 लाख रूपए का खर्चा आयेगा। सोनू के तो पैरों तले की जमीन ही खिसक गई। एक दिहाड़ी मजदूर के लिये इतनी भारी-भरकम रकम का इंतजाम दूर की कौड़ी थी।
सोनू ने नेहा के इलाज के लिये भरसक प्रयत्न किए। मगर उसके हाथ निराश ही लग रही थी। बात लगभग डेढ़ साल पुरानी है, एक टीव्ही चैनल ने सोनू व नेहा की व्यथा प्रसारित की। यहीं से नेहा की जिंदगी में खुशी के रंग भरने लगे। हुआ ये कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस खबर को देख लिया। उन्होंने तत्काल ग्वालियर कलेक्टर को फोन लगाकर कहा कि "मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना" के तहत नेहा के कॉक्लीयर इम्प्लांट लगवायें। कलेक्टर ने सोनू से संपर्क कर प्रकरण तैयार कराया और भोपाल के "दिव्य एडवांस ईएण्डटी क्लीनिक" में नेहा का सफल ऑपरेशन हुआ। नेहा के इलाज पर प्रदेश सरकार ने लगभग साढ़े 6 लाख रूपए खर्च किए।
मुख्यमंत्री सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के शिलान्यास करने जब ग्वालियर आए, तो सोनू अपनी बिटिया को लेकर मुख्यमंत्री के प्रति आभार जताने पहुँचे। मुख्यमंत्री ने नेहा को गोद में उठाकर खूब दुलारा। साथ ही उसे 50 हजार रूपए की आर्थिक सहायता भी दी। सोनू ने यह धनराशि नेहा के नाम से फिक्स डिपोजिट कर दी है। कॉक्लियर इम्प्लांट लगने के बाद अभी तक सरकारी खर्चे पर ही नेहा की स्पीच थैरेपी चल रही है। सोनू कहते हैं मुझे बड़ा अचंभा हुआ नेहा ने सबसे पहले जिस शब्द को बोलना शुरू किया, वह था "मामा" । अब वह मम्मी-पापा, पानी, रोटी व सब्जी जैसे शब्द बोलने लगी है। नेहा को जिस दिन से मुख्यमंत्री ने गोद में लिया है तब से वह उन्हें इतना पहचान गई है कि बाजार में लगे किसी पोस्टर में भी मुख्यमंत्री की तस्वीर नजर आ जाए तो वह मामा - मामा कहकर वहाँ रूकने के लिये मचल जाती है। सोनू भावुक होकर कहते हैं कि मुख्यमंत्री अपने आप को यूँ हीं मामा नहीं कहते, वो सच में प्रदेशभर के बच्चों के असल मामा है।