जगदलपुर, (हि.स.)। अत्यंत संवेदनशील दक्षिण बस्तर क्षेत्र के लगभग 500 गांव के आदिवासी जिसमें आत्म समर्पण करने वाले नक्सली भी शामिल हैं, पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा झंडा लहरायेंगे। जबकि हर बार नक्सली तिरंगा झंडा का बहिष्कार कर काला झंडा फहराते आये हैं, पर अब ऐसा नहीं होगा।
दक्षिण बस्तर क्षेत्र के सेक्शन सी के मिलेट्री कमान्डर कुंजाम हिड़मा जो पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया, आत्मसमर्पण के बाद उसे जो इज्जत मिली उससे परिर्वतन होकर अपने साथियों के साथ गांव में, घरों में तिरंगा झंडा फहराने का संकल्प लिया। पांच दिन पहले से ही गांव में स्वतंत्रता दिवस को लेकर एक उत्सव का माहौल बना हुआ है। हजारों ग्रामीण ऐसे हैं जिन्होंने तिरंगा झंडा का छुआ भी नहीं और देखा तक नहीं। अब वे झंडा के लिये दूर-दूर गांवों में झंडा लाने के लिए भेज रहे हैं, जो दक्षिण बस्तर के नक्सली समस्यामुक्त होने का एक अच्छा संदेश है।
आत्मसमर्पित एक अन्य नक्सली कमाण्डर जोगा ने बताया कि हम लोगों के दहशत के चलते इन अंदरूनी इलाकों में स्वतंत्रता दिवस पर स्कूलो में और अन्य जगहों पर झंडा नहीं फहराया जाता था लेकिन अब गांव के आदिवासियों के घरों में और सरकारी स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जायेगा। गांव के प्रमुख ग्रामीणों से चर्चा करने पर अपने स्थानीय भाषा में बताया कि पहली बार स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तिरंगा झंडा को देखने का सौभाग्य मिलेगा।
दरभा इलाके के आत्मसमर्पित महिला नक्सली कमला हुंगा ने बताया कि नक्सलियों में पहले और अब की स्थिति ज्यादा खराब है वहीं सरकार आत्मसमर्पित नक्सलियों को आरक्षक के पद पर नौकरी दे रही है और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। उनमें से मैं भी एक हूं। कल तक मैं पुलिस के लिए बंदूक उठाती थी आज मैं विकास विरोधी हिंसा करने वालों के विरूद्ध बंदूक उठाती हूं। उन्होंने कहा कि आत्मसमर्पण होने का कारण अपने बच्चे के भविष्य को बनाना और गांव का विकास करना है।
आज की स्थिती को देखते हुये नक्सली अब स्कूलों में तोड़ फोड़ भी नहीं कर रहे हैं और न ही बच्चों को प्रशिक्षण दे पा रहे हैं। क्योंकि हम पूरजोर उनका विरोध कर रहे हैं। कमला ने कहा कि तिंरगा हमने अभी तक देखा ही नहीं है। पहली बार हम अपने हाथों से गांव या जंगल में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जंहा भी रहेंगे वहां तिरंगा फहरायेंगे। अब गांव के लोगों ने भी मन बना लिया है, कि अब हम नक्सलियों के काले झंडे का विरोध कर तिरंगा फहरायेंगे। कुछ वर्ष पूर्व झीरम घाटी में हुये दिल दहला देने वाली घटना देश की सबसे बड़ी घटना है जिसमें पूर्व मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व मंत्री महेन्द्र कर्मा, प्रतिपक्ष पूर्व मंत्री एवं छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल सहित 25 लोग शहीद हुये थे। इस घटना के बाद नक्सलियों के बीच भी एक संघर्ष जारी हो गया और अलग-अलग भागों में स्थानीय नक्सली बटने और आत्मसमर्पण करने लगे।
संवेदनशील इलाके के महिला सरपंच दशाई बाई ने बताया कि उसके पति स्व पाण्डू राम जो जनपद सदस्य रहे, नक्सलियों का हमेशा पूरजोर विरोध करते हुये अपनी क्षेत्र के विकास में आगे रहते थे। जिसके कारण नक्सली उनका विरोध करते थे और मौका देखकर मेरे पति की हत्या कर दी गयी थी। इसके बावजूद मैं विकास से पीछे नहीं हटी और दरभा से लेकर कोलेंग तक 40 किलोमीटर तक का सड़क निर्माण किया जा रहा है जिसका श्रेय मेरे पति को जाता है। दशाई बाई ने बताया कि अब लगातार नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं जिसका कारण अपने बच्चों के भविष्य को बनाना चाहते हैं और उन्हें शिक्षित करना चाहते हैं।
बस्तर रेंज के पुलिस निरीक्षक विवेकानंद सिन्हा ने कहा कि अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही। स्थानीय लोगों में परिर्वतन तेजी से आ रहा है। स्थानीय और आंध्रप्रदेश के नक्सलियों के बीच धीरे-धीरे दरार बढ़ती जा रही है। स्थानीय नक्सलियों का अब मोह भंग हो चुका है और विकास की मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं ताकि अपने बच्चों को शिक्षित कर सकें। जहाँ नक्सली काला झण्डा फहराने की कोशिश करते थे पर अब ये हो नहीं पायेगा। क्योंकि आत्मसमर्पित नक्सलियों सहित गांव के लोग भी इस बार स्वतंत्रता दिवस में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेंगे और गांव में, अपने घरों में तिरंगा फहराने की बात कह रहे हैं।