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जरूरतमंद लोगों को बीएसएफ के जवान करेंगे अंगदान
By Deshwani | Publish Date: 11/8/2017 4:59:26 PM
जरूरतमंद लोगों को बीएसएफ के जवान करेंगे अंगदान

नई दिल्ली,(हि.स.)। राष्ट्रीय अंगदान दिवस के दो दिन पहले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की तरफ से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बीएसएफ के द्वारा अंगदान करने का प्रण लिया गया। प्रण में बीएसएफ के द्वारा कहा गया कि हम जीते जी तो देश की सुरक्षा में जुटे ही रहते हैं| हम मरने के बाद भी अपने अंग को दान करके देश के काम आना चाहेंगे। 
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू और बीएसएफ के कई आला अधिकारी उपस्थित रहे। रिजीजू ने कहा कि अंगदान नया जीवन देने के समान है। अंग राष्ट्रीय स्रोत हैं और एक भी बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। मैं सभी भारतवासियों का आह्वान करता हूं कि वे मरणोपरांत अंगदान का प्रण लें और अनेक कीमती जान बचाएं। उन्होंने कहा, अंगदान को एक राष्ट्रीय आंदोलन बनाएं और दुनिया को दिखाएं कि मौत के बाद भी हम अपने सह नागरिकों और मानवता का ख्याल रखते हैं।
यह कार्यक्रम राष्ट्रीय अंग एवं उतक प्रतिरोपण संगठन ‘एनओटीटीओ’ के साथ सहयोग करते हुए आयोजित किया गया था। 
बीएसएफ के डीजी के के शर्मा ने समारोह में उपस्थित प्रमुख अतिथियों का स्वागत किया, उन्होंने अंगदान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया और बताया कि हमारे 20 हजार जवान पहले से अंगदान के लिए वचनबद्ध हैं। आने वाले समय में इस तरह के कार्यक्रमों के होते रहने से अंगदान करने वालों की संख्या में इजाफा होना निश्चित है। 
उल्लेखनीय है कि अंगदान दिवस प्रतिवर्ष 13 अगस्त को मनाया जाता है। जागरूकता की कमी के कारण, लोगों के मन में अंगदान के बारे में भय और मिथक विद्यमान हैं। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य सामान्य मनुष्य को मृत्यु के बाद अंगदान करने की प्रतिज्ञा दिलाने के लिए प्रोत्साहित करना हैं।
अंगदान में अंगदाता के अंगों जैसे कि हृदय, लीवर (यकृत), गुर्दे, आंत, फेफड़े, और अग्न्याशय का दान उसकी मृत्यु के पश्चात ज़रूरतमंद व्यक्ति में प्रत्यारोपित करने के लिए किया जाता है।
भारत में संपन्न एक सर्वेक्षण के अनुसार, प्रत्येक वर्ष लगभग पांच लाख व्यक्तियों की मृत्यु अंगों की अनुपलब्धता के कारण हो जाती है, जिनमें से दो लाख व्यक्ति लीवर (यकृत) की बीमारी और पचास हज़ार व्यक्ति हृदय की बीमारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसके अलावा, लगभग एक लाख पचास हज़ार व्यक्ति गुर्दा प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा करते हैं, जिनमें से केवल पांच हज़ार व्यक्तियों को ही गुर्दा प्रत्यारोपण का लाभ प्राप्त होता है। 
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