भोपाल, (हि.स.)। मध्यप्रदेश की राजधानी स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय अपने विस्तार एवं नवाचारों से देश-दुनिया सभी को परिचित करने के लिए नई वेब आधारित तकनीक का सहारा लेगा। वहीं विश्वविद्यालय में चल रहे अब तक के सभी डिग्री, डिप्लोमा एवं प्रमाण-पत्र कोर्स की समीक्षा की जाएगी और जो छात्रों के लिए अत्यधिक उपयोगी होंगे ऐसे नए कोर्स जल्द शुरू किए जाएंगे। उक्त बातें विश्वविद्यालय के नवागत कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज ने कही हैं।
उन्होंने कहा कि हमें किसी अन्य उधार की भाषा की आवश्यकता नहीं, हम अपनी भाषा हिन्दी में ज्ञान का विस्तार बहुत व्यापक स्तर पर सरल तरीके से कर सकते हैं। कुलपति भारद्वाज ने कहा कि सुदर्शनजी को यह बात खटकती थी कि हम ज्यादातर अभी केवल जर्मनी, अंग्रेजी, फ्रैंच भाषाओं का अनुवाद कर रहे हैं। उसे ही अपने विद्यार्थियों को परोस रहे हैं, जबकि हमारे पास हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं में ज्ञान का अपार भंडार है। यदि उसे उन्हीं की भाषा में हमारे ग्रामीण विद्यार्थियों तक पहुंचाया जाए तो उनकी प्रतिभा का विकास और उसकी सर्वोच्चता का अनुभव सहजता से किया जा सकता है। वहीं अभिजात्य वर्ग की भाषा बन चुकी अंग्रेजी इत्यादि के दबाव से भी प्रतिभा का दमन एवं शमन होने से रोका जा सकेगा। आज अपने उद्देश्य के अनुरूप हमारा हिन्दी विश्वविद्यालय इसी दिशा में कार्य कर रहा है।
प्रो. भारद्वाज ने कहा कि जिस तरह से जेएनयू या अन्य विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा अध्ययन केंद्र खोले गए हैं और वहां न केवल देश के विभिन्न राज्यों से बल्कि दुनियाभर से छात्र-छात्राएं अध्ययन करने के लिए आते हैं, ऐसा ही एक स्टडी सेंटर शीघ्र यहां खोला जाएगा। उम्मीद है कि उसमें भी विश्वभर से विद्यार्थी हिन्दी की पढ़ाई के लिए आएंगे। कुलपति ने आगे कहा कि वे शैक्षणिक गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करेंगे। इसके लिए जो भी आवश्यक कदम होंगे, उठाए जाएंगे। लाभ की मंशा से भोपाल के बाहर अपने कोई सेंटर या विश्वविद्यालय से सम्बद्धता के स्तर पर खुलने वाले सेंटर की हम कोई फ्रेंचाइजी नहीं देने वाले हैं । उन्होंने साफ कहा कि यदि इस संबंध में शासन का कोई विशेष आग्रह होगा या विशेष परिस्थितियां बनती हैं तभी सोचा जाएगा।
एक प्रश्न के उत्तर में प्रो. भारद्वाज का हिन्दुस्थान समाचार से कहना था कि हमें शासन स्तर पर पूरा सहयोग मिल रहा है, यह हमारा कोई व्यक्तिगत विश्वद्यालय नहीं। यह कोई एनजीओ नहीं, किसी एक संगठन का विवि नहीं, शासन ने विधानसभा में पारितकर अधिनियम के द्वारा इसे खोला है, इसलिए शासन की यह जिम्मेदारी है कि वह इसे पोषित करे, पल्लवित करे और जिस उद्देश्य के लिए खोला गया है उसमें मदद करे। हम जितना चाहते हैं शासन उससे अधिक हमें सहयोग दे रहा है, आगे भी देगा, यही विश्वास है।
प्रो. भारद्वाज ने यह भी बताया कि अपने नवाचारों, अन्य कार्यों तथा पाठ्यक्रम इत्यादि से परिचित कराने के लिए हम प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया माध्यमों का सहयोग तो लेंगे ही साथ में इसके प्रचार-प्रसार के लिए अपना पीआर बढ़ाते हुए नई वेबसाइट भी शुरू करेंगे। अभी जो वेबसाइट है, उसे और प्रभावी बनाएंगे। वहीं एक वर्ष में हमारा विश्वविद्यालयीन भवन बनकर तैयार हो जाएगा और वहां हम अपनी कक्षाएं शीघ्र आरंभ कर देंगे