लखनऊ, (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में स्थिर चल रही सोयाबीन की खेती को सुचारू ढंग से करने के प्रयास किये जा रहे हैं। किसानों को समय से बीज नहीं मिलने और इसकी फसल में बीमारी की आशंका से सोयाबीन की खेती अच्छे से नहीं कर पाते हैं। इसलिए इस खेती को सक्रिय करने के कदम उठाए जा रहे हैं।
इस बारे में जानकारी देते हुए पंत नगर के विश्वविद्यालय के निदेशक डा. एसएन तिवारी ने बताया “अखिल भारतीय सोयाबीन समन्वित परियोजना के अंतर्गत पन्त सोयाबीन 24 सहित दो और नई किस्मों को विकसित किया गया है। किसान नई प्रजातियों से खेती करके अधिक उपज भी ले सकते हैं।’’
पिछले दशक से प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में सोयाबीन की खेती की शुरुआत हुई थी। बुंदेलखंड के सभी जिलों के साथ ही बदायूं, शाहजहांपुर, रामपुर, बरेली और मेरठ में सोयाबीन की खेती हो रही है लेकिन इस सोयाबीन में बीमारी लगने के कारण किसानों को घाटा हो रहा था। खरीफ सीजन की फसल मानी जाने वाली सोयाबीन की खेती के लिए इस बार कृषि विभाग ने 0.20 लाख हेक्टेयर खेती का लक्ष्य रखा है लेकिन उन्नत बीज की उपलब्धत नहीं होने के कारण किसान इसकी खेती के प्रति रूझान नहीं दिखा रहे हैं। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर के कृषि वैज्ञानिक भी उत्तर प्रदेश में सोयाबीन की खेती करने के लिए यहां के किसानों को जागरूक कर रहे हैं।
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने देश के अलग-अलग राज्यों के लिए सोयाबीन की उन्नत किस्मों की अनुशंसा भी की है। जिसमें उत्तर प्रदेश के लिए पीके-472, जेएस-71-5, पीएस-564, जेएस-2, जेएस-93-5, जेएस-72-44, जेएस-75-46, पूसा-20, पीके-416, पूसा-16 और एनआरसी-37 नामक प्रजातियां विकसित की गई हैं।