देहरादून, (हि.स.)। पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना से उत्तराखंड का ऊर्जा प्रदेश बनने का सपना साकार हो सकता है लेकिन परियोजना के शुरुआती दौर में ही विरोध का स्वर उठने लगा है। राज्य के पिथौरागढ़, चम्पावत और अल्मोड़ा सहित तीन जिले इस परियोजना से प्रभावित हो रहे हैं।
दोबारा तब सुर्खियां में यह परियोजना आई जब नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड टिहरी बांध यात्रा पर उत्तराखंड पहुंचे और उन्होंने फिर पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना को आगे बढ़ाने की बात कही। जनवरी, 2017 में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना की डीपीआर उत्तराखंड के उर्जा विभाग को सौंपी।
उत्तराखंड सरकार ने पंचेश्वर बांध के पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना मामलों के लिए सिंचाई विभाग को नोडल विभाग नामित किया है जो तीनों जनपदों में जन सुनवाई करेगा। कार्यक्रम के तहत नौ अगस्त को चम्पावत में, 1 अगस्त पिथौरागढ़ में और 17 अगस्त को अल्मोड़ा ज़िले में जन सुनवाई होगी।
भारत नेपाल के बीच करीब 230 किमी लम्बी महाकाली नदी पर बनने वाले पंचेश्वर बाँध का पहला अनुबंध 12 फरवरी, 1996 में हुआ था जबकि नवम्बर, 1999 में काठमांडू में एक संयुक्त प्राधिकरण भी बनकर तैयार हुआ था लेकिन मामला फिर शांत हो गया।
दोनों देशों के संयुक्त पंचेश्वर विकास प्राधिकरण का मुख्यालय नेपाल के महेन्द्र नगर में स्थापित किया गया जो इस परियोजना पर नियन्त्रण करेगा और इसमें उत्तराखंड और नेपाल के अधिकारी रहेंगे और परियोजना में कार्यदायी संस्था केंद्र सरकार का उपक्रम वफ्कोस लिमिटेड रहेगी।
प्राधिकरण के अनुसार पंचेश्वर बांध काली और सरयू नदी पर बनेगा जिससे करीब 4800 मेगावाट यूनिट बिजली का उत्पादन बनेगी और महाकाली और रुपाली गाड पर दो और बांध बनेगें जिनसे 240 मेगावाट बिजली तैयार की जाएगी।
33 हजार एक सौ आठ करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली पंचेश्वर जल विद्युत परियोजना में आधा पैसा नेपाल और आधा भारत सरकार वहन करेगी।
इस परियोजना से उतराखंड के तीन ज़िलों के 134 गांव डूब क्षेत्र में आएंगे जिनमें से पिथौरागढ के 87, चम्पावत के 26 और अल्मोड़ा के 21 हैं। इन गांवों के करीब 29,436 परिवारों का विस्थापन होगा। परियोजना का प्रस्तावित डूब क्षेत्र 167 वर्ग किलोमीटर है.
इस परियोजना से प्रदेश को बिजली तो मिलेगी ही बाढ़ पर नियंत्रण और सिंचाई के लिए पानी मिलने के साथ ही रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।