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पुरूषार्थ बदल सकते हैं लेकिन भाग्य नहीं: शास्त्री
By Deshwani | Publish Date: 28/6/2017 7:59:27 PM वाराणसी, (हि.स.)। ज्ञानी वही है जो सावधान होकर जीवन जीता है। ज्ञान को व्यवहार में उतारने के लिए सकारात्मक सोच, वाणी एवं कर्म में समानता, कर्म को परिणाम से न जोड़ लक्ष्य से जोड़ता हो। बुधवार को यह बातें आचार्य सुब्रहमण्यम शास्त्री ने कही। अवसर रहा बीएचयू के मालवीय भवन में गीता-समिति की ओर से आयोजित महामना अष्ट दिवसीय राष्ट्रीय गीता कार्यशाला का। बतौर मुख्य अतिथि आचार्य ने कर्मो के तीन विभाग की व्याख्या करते हुए कहा कि अहंकार सहित कर्म को निष्काम कर्म कहते है, अहंकार सहित कर्म को कर्म एवं दूसरो को नुकसान पहुॅचाने के लिये किये गये कर्म को विकर्म कहते है। भाग्य एवं पुरुषार्थ में अन्तर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ चीजें हम जीवन में नही बदल सकते उसे भाग्य कहते है एवं कुछ चीजें बदल सकते है जिसे पुरुषार्थ कहते हैं। कार्यशाला के प्रश्नकाल में दशाधिक प्रतिभागियों द्वारा प्रश्न पूछा गया। कार्यशाला की अध्यक्षता प्रो. उदय प्रताप शाही ने की। अतिथियों का स्वागत कार्यशाला संयोजक डाॅ. उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने किया।