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राज्य
'सफेदहाथी' बनकर न रह जाए दून यूनिवर्सिटी
By Deshwani | Publish Date: 17/6/2017 5:16:48 PM
'सफेदहाथी' बनकर न रह जाए दून यूनिवर्सिटी

 देहरादून, (हि.स.)। दून यूनिवर्सिटी की नींव राज्य की प्रतिभा को संवारने और जेएनयू की तरह अलग पहचान देने के लिए रखी गई थी, लेकिन जिस सपने के साथ यूनिवर्सिटी की नींव रखी गई थी वह अब तक अधूरा ही दिखाई दे रहा है। साल 2009 में शुरू हुई यूनिवर्सिटी को कोर्सेज के लिए छात्र तो पहले ही ढूंढे़ नहीं मिल रहे थे, अब सरकार की अनदेखी के चलते एडमिशन लेने वाले छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की भी भारी कमी है। 

आलम यह है कि यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। उत्तराखंड में तमाम यूनिवर्सिटीज की भीड़ में जेएनयू की तर्ज पर शुरू हुई दून यूनिवर्सिटी अब 'सफेद हाथी' साबित हो रही है। यूनिवर्सिटी की बुनियाद के समय जेएनयू की तर्ज पर यूनिवर्सिटी को नए आयाम देने का सपना हर साल अधूरा रह जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण सरकार की अनदेखी है। हालात यह हैं कि सात साल के भीतर यूनिवर्सिटी के आठ स्कूलों में प्रोफेशनल और ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर बेहतर करियर प्रदान करने में सहायक 26 कोर्सेज शुरू होने के बाद भी यहां छात्र रुझान नहीं ले रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण सरकार की ओर से की जा रही लापरवाही है।
दरअसल, यूनिवर्सिटी में विभिन्न कोर्सेज के लिए तकरीबन 70 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं। लेकिन यहां नियुक्ति के नाम पर इनमें से आधे ही पद भर पाए हैं। मौजूदा स्थिति की बात करें तो यहां केवल 45 शिक्षक ही छात्रों को पढ़ा रहे हैं। ऐसे में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन यानि यूजीसी के मानकों और क्वॉलिटी एजुकेशन प्रदान करने की बात करना भी बेमानी साबित होगा। सरकार से निरंतर गुजारिशें करने के बाद भी यूनिवर्सिटी के रिक्त पदों पर भर्ती नहीं हो पा रही है।
यूजीसी लगातार छात्रों के लिए रोजगारपरक कोर्सेज शुरू करने पर जोर दे रही है। इसी के तहत दून यूनिवर्सिटी ने भी बीते दो सालों में कई नए कोर्सेज को शुरू करने की कवायद शुरू की। लेकिन शिक्षकों के अभाव के चलते कवायद पूरी नहीं हुई। यूनिवर्सिटी प्रशासन की बात करें तो मौजूदा सरकार से अब उन्हें कुछ उम्मीदें दिखाई दी हैं। 
सरकार द्वारा शिक्षा के सुधार के लिए किए जा रहे कार्यों को देखते हुए यूनिवर्सिटी प्रशासन एक बार फिर व्यवस्था को ढर्रे पर लाने के लिए कोशिशें करने लगा है। इसी क्रम में शासन को नियुक्ति किए जाने के लिए आग्रह भी किया जा रहा है। शिक्षकों की कमी का आलम यह है कि अब पुराने कोर्स भी बंद होने लगे हैं। यूनिवर्सिटी में इस शैक्षणिक सत्र से एमए हिंदी, बैचलर ऑफ लाइब्रेरी एण्ड इनफॉरमेंशन साइंस, मास्टर ऑफ लाइब्रेरी एंड इनफॉरमेंशन साइंस, एमए सोशल वर्क, एमफिल इकॉनोमिक्स, सर्टिफिकेट कोर्स में क्लाउड कंप्यूटिंग में एडमिशन नहीं मिलेगा। 
कोर्सेज में मानकों के अनुसार शिक्षक न होने के कारण यूनिवर्सिटी ने इन कोर्सेज में एडमिशन देना बंद कर दिया है। पिछले साल ही इन कोर्सों को शुरू करने की घोषणा की गई थी, लेकिन शिक्षक उपलब्ध न होने के कारण इस साल यूनिवर्सिटी ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। 
डॉ. बीएम हरबोला, रजिस्ट्रार, दून यूनिवर्सिटी ने बाताया कि यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के तकरीबन 70 पद सैंक्शन हैं। इनमें 25 से ज्यादा पद अभी खाली हैं। हमारी ओर से शासन से आग्रह किया जा रहा है कि जल्द से जल्द इन पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की जाए। यूनिवर्सिटी में शिक्षक होंगे तो नए कोर्सेज शुरू करने पर भी विचार किया जाएगा। मौजूदा मैनपावर में यह संभव नहीं हो पा रहा है, जिसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। 
 
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