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काशी विश्वनाथ की वार्षिक कलश यात्रा में उमड़े श्रद्धालु, गंगा में लगाई डुबकी
By Deshwani | Publish Date: 5/6/2017 12:55:27 PM
काशी विश्वनाथ की वार्षिक कलश यात्रा में उमड़े श्रद्धालु, गंगा में लगाई डुबकी

वाराणसी, (हि.स.)। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के एकादशी निर्जला एकादशी (भीमसेनी एकादशी) पर सोमवार को भोर से शाम तक लाखों श्रद्धालुओ ने निर्जला व्रत रख पतित पावनी गंगा में आस्था की डुबकी लगायी। पूरे दिन प्राचीन दशाश्वमेध घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, शीतलाघाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट, अस्सी, भैसासुर, खि​ड़किया घाट पर स्नानार्थियों की भारी भीड़ जुटी रही। निर्जला एकादशी के बारे में धार्मिक मान्यता है कि द्वादश माह की एकादशियों में यदि व्रत करना संभव न हो तो मात्र निर्जला एकादशी के व्रत से समस्त एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है। जीवन के समस्त पापों का शमन होता है। एकादशी का व्रत से आरोग्य सुख, सुख-समृद्धि, सौभाग्य, धन व ऐश्वर्य का फल मिलता है। इसी कहावत को ध्यान में रख आस्थावानों का रेला गंगा तट की ओर उमड़ पड़ा। 
पर्व पर ही सुप्रभातम संस्था की ओर से राजेन्द्र प्रसाद घाट से परम्परानुसार सुबह सात बजे श्री काशी विश्वनाथ की भव्य वार्षिक कलश यात्रा नंदी महाराज की अगुआई में निकली। यात्रा में गायत्री परिवार के साथ विभिन्न विद्यालयों के वेद पाठी बटुक, डमरू व शंखवादकों की टोली, 1008 कलशधारी श्रद्धालु महिलाएं सुसज्जित रथ पर विराजमान भगवान गणेश व बाबा बर्फानी आकर्षण के केंद्र बने रहे। पूरे रास्ते यात्रा में शामिल बाबा बर्फानी और श्रद्धालुओं पर नागरिक गुलाब जल व पुष्पों की वर्षा करते रहे। 
यात्रा के संयोजक सुप्रभातम संस्था के राजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि यात्रा में शामिल भक्तो ने 1008 कलशों के जल से काशी पुराधिपति का जलाभिषेक किया। कलश यात्रा के पूर्व घाट पर 1008 कलशों में जल भर कर पूजन किया गया। इसके पूर्व गंगा घाट पर कलश यात्रा में सामिल होने के लिए सुबह से ही विभिन्न संस्थाओ के लोगों के जुटने का सिलसिला शुरू हो गया था। पुरुष पारम्परिक वेश भूषा के तहत धोती कुर्ता और महिलाएं पीले रंग की साड़ी में घाट पहुंची। गंगा स्नान के बाद उन्होंने कलश पुजन किया और कलश में जल लेकर कतार बद्ध होते गए। सड़क पर देखते-देखते कलश यात्रा का पहला छोर गोदौलिया और दूसरा छोर घाट तक था। यात्रा में सबसे आगे नंदी फिर उनके पीछे रथ उसके पीछे बर्फ से बना शिवलिंग। इस दौरान डमरू और शंख की ध्वनि सभी को मन्त्र मुग्ध करती रही। ज्ञानवापी पहुचने पर मुस्लिम बंधुओ ने वर्षो पुरानी परम्परा निभाते हुए कलश यात्रा में शामिल लोगों का माला पहनाकर स्वागत किया। 
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