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पटना
बिहार में दलितों के मुद्दों पर अपनों के भी निशाने पर हैं नीतीश
By Deshwani | Publish Date: 9/1/2018 11:12:45 AM
बिहार में दलितों के मुद्दों पर अपनों के भी निशाने पर हैं नीतीश

पटना, (हि.स.)। बिहार में अनुसूचित जाति की आबादी के हिसाब से 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए एक प्रतिशत आरक्षण लागू है । पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी,विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी और पूर्व मंत्री श्याम रजक सरीखे नेता दलितों के लिए 22 आरक्षण प्रतिशत लागू करने की आवाज बुलंद कर रहे हैं।
 
उनका कहना है कि 21 दलित जातियों की आबादी बढ़ने के साथ हाल के वर्षों में कई अन्य जातियों को भी दलितों की सूची में शामिल किये जाने के बाद आरक्षण की सीमा नहीं बढ़ायी जा रही है । बिहार में इन दिनों में दलितों का आरक्षण बढ़ाने ,निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने,उच्च न्यायपालिका मे आरक्षण लागू करने,प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने सहित अन्य कई मांगों को लेकर दलित राजनीति उभार पर है। 
 
बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं जदयू के वरिष्ठ नेता उदय नारायण चौधरी ने वंचित वर्ग मोर्चा के बैनर तले दलितों को उनके संविधान प्रदत्त अधिकार और सामाजिक—आर्थिक उत्थान के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं को लाभ सुनिश्चित करने के लिए अभियान छेड़ रखा है। इसके कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दलित राजनीति सवालों को घेरे में है।
 
इसका मुख्य कारण है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान के राजनीतिक काट में पिछले वर्षों में 21 दलित जातियों को दलित—महादलित की दो अलग—अलग कोटि बनाकर नीतीश कुमार ने दलित कार्ड खेला था। पासवान जाति को छोड़ अन्य सभी अनुसूचित जातियां महादलित कोटि में शामिल कर उनके लिए दलित विकास मिशन के तहत योजनायें चल रही है। 
 
उदय नारायण चौधरी ने सोमवार को हिन्दुस्थान समाचार से दलित,अकलियत,आदिवासी,पिछड़ों के हितों के मुदृदों पर खुलकर बातचीत की। उन्होंने कहा कि बिहार में आज अनुसूचित जाति और जनजाति की 26—27 प्रतिशत आबादी है। वर्ष 2000 में राज्य विभाजन के बाद जब बिहार में आरक्षण सीमा का पुनर्निधारण हो रहा था तब उन्होंने आदिवासियों के लिए मौजूदा महज एक प्रतिशत की जगह पांच प्रतिशत और अनुसचित जाति के लिए मौजूदा 16 प्रतिशत की जगह 20 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की थी ।
 
दलित अत्याचार रोकने का परिणाम घोर निराशाजनक है। अपराध रेकार्ड ब्यूरो के आंकड़े गवाह हैं। दलितों पर 66 प्रतिशत अत्याचार बढ़े हैंं। दलितों पर अत्याचार से संबंधित 16 प्रतिशत मामलों में ही सजा मिल पाती है। बिहार में भूमि सुधार लागू करने होंगें। बैक लॉग समाप्त करना होगा। राज्य सरकार की नौकरियों में अनसूचित जाति—जन जाति के बैक्लॉग के 25 हजार से अधिक पद में खाली हैं। नयी सरकारी नौकरी बंद होने से निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने होंगे। 
 
वंचित वर्ग मोर्चा के कर्ताधर्ता उदय नारायण चौधरी ने एक गैर राजनीतिक संगठन के रुप में मोर्चा का प्रखंड स्तर तक विस्तार देने की ठानी है। मोर्चा में हरिलाल यादव,जीतेन्द्र कुमार,सागीब अहमद बागी,कपिलेश्वर राम भी चौधरी के साथ सक्रिय हैं। चौधरी ने कहा कि महाराष्ट्र के भीमा—कोरेगांव में जातीय​ हिंसा की चिनगारी देरसबेर बिहार में भी पहुंचेगी। संसद में दलित समाज के 124 सांसदों को मुंह खोलाना होगा। बिहार में दलितों के लिए लोकसभा की छह और विधानभा की 39 सीटें सुरक्षित है।
 
दलित समाज के जन प्रतिनिधियों को दलीय सीमा से उठकर एकजुटता दिखानी होगी और दलितों की आवाज बननी होगी। अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा। आजादी के छह दशक बीतने के बाद भी दलित समाज शिक्षा,स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लालायित हैं । उन्होंने कहा कि जिग्नेश मेवाणी,प्रकाश अम्बेदकर सहित चर्चित दलित नेताओं को बिहार के कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जायेगा। जिलों में दलित सम्मेलन के साथ द​लितों के हितों की रक्षा के लिए धरना—प्रदर्शन कार्यक्रम होगा।
 
उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी यदि साथ दें तो उनका स्वागत होगा। मैं भी खुले दिल से लोगों के साथ चलने को तैयार हूं। मेरा विरोध बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नहीं है। पर राजनीति में न कोई स्थायी पड़ाव होता और न स्थायी दोस्त । मुृददों पर राजनीति होनी चाहिए। 
 
बिहार में सत्तारुढ़ जदयू के विधानसभा में उप नेता एवं पूर्व मंत्री श्याम रजक ने भी अनुसूचित जाति के लिए राज्य बजट के​ तहत 15 खरब रुपये की विशेष अंगीभूत योजनाओं का दलितों को अपेक्षित लाभ नहीं मिलने का मुदृदा उठाकर नीतीश सरकार को सकते में डाल दिया है। उनका कहना हे कि दलितों के अत्याचार से संबंधित छह हजार से अधिक मामले अदालतों में लंबित है । नीतीश सरकार द्वारा पटना हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण समाप्त कर दिये जाने पर वह सवाल उठा रहे है।
 
बिहार की अदालतों में दलित अत्याचार से संबंधित छह हजार से अधिक मुकदमे लंबित हैं । जजों की कमी के कारण न्याय मिलने में विलबं हो रहा है । दलितों को उच्च शिक्षा के लिए मिल रही छात्रवृति रोक दी गयी है। हाल के दशक में कई पिछड़ी—अति पिछड़ी जाति यथा लोहार व तांती को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया गया पर उनके लिए आरक्षण की सीमा 16 प्रतिशत ही सीमित हे।
 
यह तत्काल 19 प्रतिशत किया जाना चाहिए। दलित बस्ती तक सड़क बनाने की योजनाओं के नाम पर खजाने से राशि निकाल कर मुख्य सड़क बनाकर छोड़ दिया जा रहा है। निजी क्षेत्र में आरक्षण,सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट जजों की बहाली में आरक्षण के लिए न्यायिक सेवा आयोग का गठन उनकी मुख्य मांग है। प्रोन्नति में आरक्षण समाप्त कर दिया गया है। कई दलित अधिकारियों की प्रोन्नति छिन ली गयी है। यह घोर अन्याय है। पार्टी में रहते वह दलितों के साथ अन्याय पर चुप नहीं रह सकते हैं ।
 
जदयू के उप नेता श्याम रजक ने कहा कि अभी वे जदयू के विधायक होने के कारण दल के अनुशासन से जुड़े हैं । उनका विरोध मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नहीं है बल्कि प्रशासनिक स्तर पर दलितों के साथ भेदभाव,हकमारी और न्याय दिलाने के​ लिए शुुरू हुआ है। उन्होंने कहा कि विशेष अंगीभूत योजना के लिए कल्याण सचिव के स्तर पर मासिक और मुख्य सचिव के स्तर पर प्रत्येक तीन महीने पर समीक्षा बैठक करने का निर्देश का पालन नहीं हो रहा है।
 
यह शासन—प्रशासन की दलितों के हितों की रक्षा के प्रति उदासीनता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि सरकारी महकमे में आउट सोर्सिंग में आरक्षण लागू करने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल सराहनीय है। उन्होंने बिहार न्यायिक सेवा में भी​ पिछड़े—अति पिछड़ों को आरक्षण लागू करने की पहल की है। इस तरह सभी राज्यों में लागू होना चाहिए।
 
हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने लंबे समय से दलितों की आबादी के हिसाब से 22 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग कर रहे है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक महकमे द्वारा दलितों के साथ न्याय नहीं होने की आम शिकायत की है। प्रदेश में शराबबंदी कानून का डंडा दलितों पर अधिक चल रहा है। एक ओर दलितों को समय पर छात्रवृति नहीं मिलने की आम शिकायतें हैं वहीं छात्र​वृति वितरण में गड़बड़ी और धांधली होती है।
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