पटना, (हि.स.)। आईजी साहब को क्या एससी-एसटी कानून के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह कौन सा तरीका है कि कोई व्यक्ति इंटेलेक्चुअल हो और उसे पकड़ कर जेल में बंद कर दिया गया। यह तल्ख टिप्पणी पटना उच्च न्यायालय ने एम्स के पूर्व डायरेक्टर गिरीश कुमार के मामले में सुनवाई करते हुए की।
अदालत ने मामले को लेकर सख्त रुख अख्तियार करते हुए यह जानना चाहा कि क्या यह मामला अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम का बनाता है। फिर ऐसी कार्रवाई क्यों हुई। न्यायाधीश डा. रवि रंजन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एम्स के पूर्व डायरेक्टर डा. (प्रो.) गिरीश कुमार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त निर्देश दिया।
गौरतलब है कि निचली अदालत के आदेश के बावजूद बिहार की राजधानी पटना स्थित एम्स अस्पताल के पूर्व निदेशक गिरीश कुमार सिंह को गिरफ्तार किए जाने पर हाईकोर्ट ने पुलिस से जवाब तलब किया था। हाईकोर्ट ने बिहार पुलिस से पूछा था कि “जब पूर्व निदेशक की गिरफ्तारी पर रोक लगी थी तो उन्हें कैसे गिरफ्तार किया गया? पुलिस के लिए अदालत के आदेश से भी जरूरी कौन सा आदेश होता है?
बिहार पुलिस ने निचली अदालत के आदेश के बावजूद पटना स्थित एम्स अस्पताल के पूर्व निदेशक गिरीश कुमार सिंह को 14 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के समय सिंह ने जब पुलिस को निचली अदालत द्वारा लगाई गई रोक की याद दिलाई तो पुलिस ने कहा कि उनके पास “ऊपर से ऑर्डर” हैं। सिंह अपने सहकर्मी दलित डॉक्टर के उत्पीड़न के आरोपी हैं।
गिरीश कुमार सिंह की याचिका पर संज्ञान लेते हुए हाईकार्ट की जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह और जस्टिस संजय प्रिया की खंडपीठ ने मामले में आईजी (कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव, डीआईजी (सीआईडी) विनोद चौधरी, एससी-एसटी थाने के थानेदार रामशोभित और एससी-एसटी थाने के जांच अधिकारी कमलेश सिंह को अदालत के आदेश की अवमानना का प्रथम दृष्टया दोषी पाया था। अदालत ने इन सभी पर आपराधिक मामला चलाए जाने का आदेश दिया। श्री सिंह ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उन्हें हथकड़ी पहनाकर अदालत ले गई और उनके साथ बदसलूकी भी की गई।
वहीं सिंह पर आरोप है कि उन्होंने एम्स के अपने सहकर्मी अशोक कुमार के संग अभद्र व्यवहार किया। सिंह ने बाद में अशोक कुमार को पद से हटा भी दिया था। घटना के बाद सिंह पर एसटी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।
मंगलवार को सुनवाई के क्रम में अदालत ने पुलिस की गैरजरूरी कार्रवाई पर सख्त ऐतराज जताया। अदालत को बताया गया कि इस मामले में गिरफ्तारी के पूर्व ही डीजीपी सहित अन्य पदाधिकारियों को घटना की जांच के लिए किसी अन्य पदाधिकारी को जिम्मा देने का आवेदन दिया गया था, परंतु उसपर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। उल्टे उनपर एससी-एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर दिया गया।