पटना, (हि.स)। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बिहार में सत्तारुढ़ महागठबंधन में शामिल जदयू के साथ राजद-कांग्रेस के बीच उभरे मतभेद के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तेवर रविवार को कड़े दिखे। उन्होंने कहा कि मैं किसी का पिछलग्गू नहीं हूं। अपने सिद्धांतों पर चलता हूं। इससे पीछे नहीं हटता हूं, चाहे इसका हमें खामियाजा भी क्यों न भुगतना पड़े। उन्होंने कहा कि 27 अगस्त को पटना में राजद की रैली में शामिल होने का न्योता मिला तो वे इसमें जरूर शामिल होंगे। राजद की रैली पर बोलने वाले पार्टी के लोेगों की उन्होंने क्लास भी ली और और कहा कि सभी दलों को अपना कार्यक्रम करने की आजादी है।
राष्ट्रपति चुनाव में राजग प्रत्याशी एवं बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद को जदयू के समर्थन को लेकर असहज कांग्रेस-राजद ने नीतीश कुमार से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा था। जदयू के अध्यक्ष नीतीश ने रविवार को पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में साफ कह दिया कि किसी का पिछलग्गू नहीं हूँ | यह कह उन्होंने अपने सहयोगियों को टका सा जवाब दे दिया है।
इसके साथ भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर लाने की लालू प्रसाद की मुहिम के तहत 27 अगस्त की रैली से जदयू को दूर रखने और महागठबंधन की रैली होने पर इसके कमजोर होने की बात कह यह भी बता दिया कि मौजूदा महागठबंधन भाजपा का विकल्प नहीं बन सकता है।
राजनीतिक गलियारे में जदयू की बैठक पर सबों की निगाहें टिकी थी। बैठक के पहले नगर विकास मंत्री महेश्वर हजारी और जदयू के महासचिव एवं राज्यसभा सदस्य आरसीपी सिंह ने 27 अगस्त की राजद की रैली में जदयू के नहीं शरीक होने की बात कर सियासी राजनीति गर्म कर दिया था। नीतीश ने बैठक में पार्टीजनों को राजद की रैली पर अनावश्यक बोलने से परहेज रखने की नसीहत दी।
उन्होंने भाजपा विरोधी दलों को यूपी और असम के चुनाव में भी एकजुट करने के अपने प्रयासों का उल्लेख किया और कहा कि इसके कारण ही भाजपा को इन दोनों राज्यों में सत्ता में आने में कामयाबी मिल गयी। अब सबों की निगाहें 5 अगस्त को उप राष्ट्रपति का होने वाले चुनाव में नीतीश के रुख पर टिकी हैं। नोटबंदी, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक, जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई सहित अन्य कई ज्वलंत मसलों पर नीतीश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन कर यूपीए के सहयोगियों को असहज कर चुके हैं । उनके इन कदमों को भाजपा से जदयू की नजदीकी बढ़ने के रुप में भी देखा जा रहा है। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव तक बिहार में सत्तारुढ़ महागठबंन टूटने या सरकार पर कोई खतरा नहीं दिख रहा है।