राष्ट्रीय
शिक्षक देश का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए छात्रों को करें प्रेरित : सुरेश सोनी
By Deshwani | Publish Date: 13/1/2018 8:05:51 PM नई दिल्ली, (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने कहा है कि आज देश के सामने अलगाववाद और जातीय संघर्ष जैसी विघटनकारी समस्याएं खड़ी हैं। उन्होंने शिक्षकों का आह्वान करते हुए कहा कि वह ऐसे प्रज्ञावान विवेकशील विद्यार्थी तैयार करें जो देश का भविष्य सुरक्षित रख सकें।
नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर फ्रंट के तत्वावधान में श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में शनिवार को “वर्तमान परिदृश्य में शिक्षकों की भूमिका” विषय आयोजित कार्यक्रम में सुरेश सोनी ने कहा कि भारत की परंपरा में दिशा देने का काम शिक्षक करता है। आज देश के सामने अलगाव, जातियों के संघर्ष जैसी समाज के विघटन की समस्याएं खड़ी हैं| समाज को उससे निकलना शिक्षकों के सामने एक चुनौती है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शिक्षा के कारण हम समाज में सही गलत का विवेक भूल गए हैं| बात किसने कही है इसको महत्व दिया जा रहा है। बात सही है या नहीं, इस बारे में विचार पूर्वक निर्णय नहीं लिया जाता। यदि भिन्न विचारधारा का व्यक्ति सही बात बताता है तो उस पर अमल करने में कोई बुराई नहीं है। दूसरी ओर सम विचारधारा का कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति भी यदि गलत बात बताता है तो उस बात का विरोध करने का साहस हमें दिखाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सृष्टि के आरम्भ काल में मनुष्य पशुओं के सामान नग्न विचरण करते हुए उनकी तरह सभी कार्य करता था। जैसे-जैसे बुद्धि विकसित होती गई पत्तों से शरीर को ढंकने लगा| फिर खाल से बदन को छुपाने लगा और विकसित हुआ तो वस्त्र पहनने लगा। पश्चिम का आधुनिकता के नाम पर अंधानुकरण, वस्त्रों को कम करते समय हमें सोचना होगा कि हम किस ओर जा रहे हैं। हमारा प्रेम से कोई विरोध नहीं है| सृष्टि प्रेम द्वारा ही आगे चलती है| मनुष्य और पशु-पक्षी सभी सृष्टि को आगे बढ़ने के लिए प्रेम करते हैं, किन्तु मनुष्य पशु जीवन के उस स्तर से हजारों साल पूर्व ही काफी आगे निकल चुका है। पशु स्वछन्द प्रेम करने में किसी मर्यादा से नहीं बंधे हैं किन्तु मनुष्य में लज्जा भाव और सोचने-समझने का विवेक विकसित हुआ है। अब वेलेंटाइन डे के नाम पर जब हिन्दू संगठनों के लोग ऐसे स्वछन्द अमर्यादित व्यवहार को रोकते हैं तो उन्हें पिछड़ा हुआ, रूढ़िवादी कहा जाता है और इस तरह की पशु प्रवृत्ति को आधुनिकता।