नई दिल्ली, (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि समाज विरोधी लोग देश को जाति के नाम पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन देश का युवा ऐसे लोगों के बहकावे में न आकर उन्हें जवाब दे रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे ही युवा आज के विवेकानंद हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्नाटक के बेलगाम में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ पर सर्व धर्म सभा को वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा, ‘‘बहुत मुश्किल से, दशकों तक किए गए लोगों के प्रयास से देश जाति के बंधन से मुक्त होने की तरफ बढ़ रहा है। लेकिन आप जैसे लाखों-करोड़ों लोगों की इस मेहनत पर कुछ समाज विरोधी लोगों ने अपनी नजरें टिका दी हैं। ये लोग फिर से देश को जाति के नाम पर बांटने का षड्यंत्र कर रहे हैं। ऐसे लोगों को आज की युवा पीढ़ी द्वारा जवाब दिया जा रहा है। भारत का नौजवान कुछ मुट्ठीभर लोगों के बहकावे में नहीं आने वाला।’’
उन्होंने कहा कि देश में जातिवाद, कुरीतियां, अंध विश्वास खत्म करने का संकल्प लेने वाले नौजवान विवेकानंद हैं। वह भारत के नए विक्रमी-पराक्रमी, विकासमान चेहरे का प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि यह नौजवान आगे आकर अपनी भूमिका निभा रहा है| भले ही वह खेत, कारखाने, स्कूल, कॉलेज, गली-मोहल्ले-नुक्कड़ में देश की सेवा में जुटा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के अमेरिका की सर्व धर्म सभा में भाषण दिए हुए 125 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के बात को दोहराते हुए कहा कि प्रत्येक भारतवासी को दूसरे भारतवासी को अपना भाई समझ कर व्यवहार करना चाहिए और भीतर से जाति का द्वेष, जाति भेद का जहर खत्म करना होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘एक भारतीय को कैसा होना चाहिए, इस बारे में विवेकानंद जी ने बहुत ही शक्तिशाली मंत्र दिया था। ये था, स्वदेश मंत्र। इसकी हर पंक्ति में शक्ति और प्रेरणा भरी है। उन्होंने कहा था- ऐ भारत, तुम मत भूलना, तुम्हारा जीवन अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है। ऐ वीर, गर्व से बोलो कि मैं भारतवासी हूं और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है। गर्व से पुकार कर कहो कि हर भारतवासी मेरा भाई है| भारतवासी मेरे प्राण हैं। भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है। भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब-जब समाज में कुरीतियां आई हैं, समाज में से ही किसी ने उठकर उस कुरीति को मिटाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि यह एक तरह का जनआंदोलन था जिसका विस्तार सैकड़ो वर्षों के कालखंड में नजर आया। यह आंदोलन दक्षिण में माधवाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य, रामानुजाचार्य, पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, नरसी मेहता, उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास, पूरब में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे संतों के विचारों से सशक्त हुआ।