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न्यायाधीशों द्वारा मतभेद उजागर करना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्णः सुभाष कश्यप
By Deshwani | Publish Date: 12/1/2018 4:53:05 PM
न्यायाधीशों द्वारा मतभेद उजागर करना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्णः सुभाष कश्यप

नई दिल्ली (हि.स.)। उच्चतम न्यायालय के 4 न्यायाधीशों द्वारा मुख्य न्यायाधीश से अपने मतभेद को मीडिया के सामने उजागर करने की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस तरह से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा से अपने मतभेदों को सार्वजनिक तौर पर जाहिर किया है, यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली घटना है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि पहली बार ऐसी स्थिति आई है जब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने इस तरह से न्यायपालिका के भीतर के मतभेद जाहिर किया है।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश चेलमेश्वर, न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायाधीश मदन लोकुर और न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने शुक्रवार को न्यायपालिका की खामियों को लेकर अपनी शिकायत एक संवाददाता सम्मेलन में की। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र से अपने मतभेदों को सार्वजनिक करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय का प्रशासन ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने बातचीत में इसको दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि ऐसी घटना के लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। संविधान निर्माताओं ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में न्यायपालिका अंतिम पतवार के रूप में काम करती है। आम जन से लेकर हर कोई न्यायपालिका की ओर पूरी उम्मीद से देखता है किंतु आज पहली बार ऐसी स्थिति आई है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायपालिका पर अंगुली उठा रहे हैं। यह निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है।
कश्यप ने कहा कि इस समस्या का जल्द समाधान निकलना जरूरी है। इस मामले को सार्वजनिक करने से पहले सभी न्यायाधीशों को बंद कमरे में बैठकर इस मतभेद को समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। यह दुखद है कि यह मामला जनता के सामने आ गया ।
हालांकि, कश्यप ने यह भी कहा कि इस मामले में अगर सकारात्मकता तलाशें तो इतना कह सकते हैं कि न्यायिक सुधारों की जो बात अब तक दबी जुबां से की जा रही थी वह अब इस प्रकरण से खुलकर सामने गई है। इससे न्यायपालिका में सुधार का रास्ता भी निकल सकता है।
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