मेरठ, (हि.स.)। गन्ना और किसानों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ताबड़तोड़ घोषणाओं पर अमल पर कर रहे हैं, उससे राष्ट्रीय लोकदल के लिए सियासी संकट खड़ा हो गया है। योगी ने रालोद से एक तरह से गन्ना और किसानों का मुद्दा छीनकर बड़ी लाइन खींच दी है, जिसे पार करना रालोद के लिए आसान नहीं होगा।
बकाया गन्ना भुगतान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बड़ा सियासी मुद्दा रहा है। इस मुद्दे के सहारे ही यहां का प्रमुख क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय लोकदल सियासी ताकत बटोरता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह के पुत्र रालोद मुखिया अजित सिंह इन्हीं मुद्दों की ताकत से सियासी लाभ पाते रहे। भारतीय किसान यूनियन का उदय ही किसानों की समस्याओं को उठाकर हुआ। भाकियू मुखिया रहे महेंद्र सिंह टिकैत का उदय किसानों के बकाया गन्ना मूल्य भुगतान को लेकर हुआ। 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की आंधी में रालोद समेत सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे दल भी उड़ गए। 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में भी रालोद की दाल नहीं गल पाई और वह बागपत जनपद में केवल छपरौली की सीट ही जीत पाया।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव हारने के बाद रालोद ने फिर से अपनी सियासी ताकत बटोरने की कोशिश की। इसी कोशिश में गन्ना किसानों का मुद्दा भी उठाने का प्रयास किया, लेकिन यूपी की योगी सरकार ने गन्ने के मुद्दे पर ताबड़तोड़ काम करके उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पहले किसानों का बकाया गन्ना भुगतान कराया और इसके बाद बंद पड़ी चीनी मिलों की क्षमता वृद्धि कराई और उन्हें चालू कराया। इससे रालोद नेताओं के पास फिलहाल कोई मुद्दा नहीं रह गया है।
सपा और बसपा में शांत रहे रालोदी
तत्कालीन बसपा सरकार ने कौड़ियों के दामों पर जब सरकारी चीनी मिलों को बेचा था तो उस समय रालोद नेता खामोश रहे। किसानों का पैसा चीनी मिलों पर चढ़ता गया और वह आंदोलन नहीं कर पाए। इसके बाद सपा सरकार ने तो खुलकर चीनी मिलों का पक्ष लिया, लेकिन रालोद नेता फिर भी ज्यादा मुखर नहीं हो पाए। इसी का कारण रहा कि रालोद नेताओं का जनाधार खिसकता चला गया। अब योगी सरकार ने किसानों के हर मुद्दे पर मुखरता से निर्णय लेने शुरू किए हैं।