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महाराष्ट्र में नक्सली बने दलितों के दुश्मन
By Deshwani | Publish Date: 6/1/2018 6:18:37 PM
महाराष्ट्र में नक्सली बने दलितों के दुश्मन

नागपुर (हि.स.)। दलित प्रेम का राग अलापने वाले नक्सली महाराष्ट्र में दलितों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली जिले में आदिवासियों के बीच काम करने वाली जनसंघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं ने हिंदुस्थान समाचार से बातचीत के दौरान ये बातें कही है। उन्होंने बताया कि बीते पांच वर्षों में नक्सलियों ने विभिन्न कारणों से करीब 48 दलितों की हत्याएं कर दीं। इन हत्याओं पर दलित व वामपंथी नेताओं ने अब तक मौन नहीं तोड़ा है।

नए साल के प्रथम तीन दिन महाराष्ट्र में भड़की हिंसा में कांग्रेस व वामपंथियों ने दलितों का इस्तेमाल किया, लेकिन जब आदिवासी इलाकों में रहने वाले दलित समुदाय के लोग विकास की बात करने लगते हैं तो उन्हें गोलियों से भून दिया जाता है। जनसंघर्ष समिति के अध्यक्ष दत्ता शिर्के ने बताया कि उनका संगठन गढ़चिरौली के आदिवासी इलाकों में विकास व शिक्षा के प्रसार का काम करता है। नक्सली इस क्षेत्र में शिक्षा व विकास की राह में बाधा बन जाते हैं। 

 
जिले में अब तक की नक्सली घटनाएं : गढ़चिरौली के येरमनार में रहनेवाले रमेश पोच्या रामटेके की नक्सलियों ने 14 अप्रैल 2015 को हत्या कर दी। महज तीसरी कक्षा तक पढ़े रामटेके ने शिक्षा का महत्व पहचाना था। वह अपनी दोनों बेटियों को स्कूल भेजते थे। अपनी एक एकड़ जमीन में उगे अनाज से घर चलाने वाले रामटेके इलाके का भविष्य बदलना चाहते थे। इलाके में नक्सली हमेशा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते थे, लेकिन रामटेके कभी उनकी बातों में नहीं आए। नक्सलियों ने उन्हें डॉ. आंबेडकर की जयंती के दिन मौत के घाट उतार दिया था।
 
इसी तरह से गढ़चिरौली जिले की अहेरी तहसील के दामरंचा गांव के दलित पत्रु दुर्गे की नक्सलियों ने हत्या कर दी। दुर्गे का कसूर सिर्फ इतना था कि वह अपने गांव में सिंचाई परियोजना के लिए प्रयास कर रहे थे। स्थानीय इंद्रावती नदी के किनारे बसे इस गांव में सिंचाई सुविधा मुहैया कराने की मांग को लेकर वे मुंबई में मुख्यमंत्री से भी मिले थे। नक्सलियों को जैसे ही इस बात की भनक लगी उन्होंने 19 अप्रैल 2015 के दिन पत्रु के गांव पर हमला बोल दिया। लगभग 20 से 25 नक्सलियों ने दुर्गें की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
 
 
 
पक्षपाती मापदंड
 
एक ओर वामपंथी बुद्धिजीवी दलितों का राग अलापते हैं, लेकिन नक्सलियों द्वारा की जा रही दलितों की हत्याओं पर चुप्पी साध लेते हैं। इन दोहरे मापदंडों को उजागर करते हुए शिर्के ने बताया कि उत्तर प्रदेश गौमांस खाने के विवाद में हुई अखलाक की हत्या के बाद वामपंथी साहित्यकारों ने अपने पुरस्कार लौटाने प्रारंभ कर दिए थे, लेकिन ये बुद्धिजीवी महाराष्ट्र में दलितों की हो रही हत्याओं पर मौन हो जाते हैं।
 
महाराष्ट्र में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा के बारे में कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने हिंदुस्थान समाचार से ऑफ-द-रिकॉर्ड जानकारी साझा करते हुए बताया कि जंगल में गोलियां बरसाने वाले नक्सलियों से ज्यादा बुरे लोग शहरों में बसते हैं। नक्सली आंदोलन को जरूरत की चीजें मुहैया कराने वाले लोगों ने भीमा-कोरेगांव रैली के आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाई। नागपुर विश्वविद्यालय की एक महिला प्रोफेसर के निवास पर अक्सर नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता है। कुछ माह पहले महिला प्रोफेसर के पति को गुजरात पुलिस ने नक्सली हिंसा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। जेएनयू के बहुत से छात्र भी अक्सर इस महिला प्रोफेसर से मिलने नागपुर आते हैं, लेकिन ठोस सबूतों का अभाव और राजनीतिक दबाव के चलते पुलिस इस महिला प्रोफेसर के खिलाफ कारवाई करने से कतराती है। 
 
हिंदुस्थान समाचार/मनीष/पवन/राधा रमण 
 
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