राष्ट्रीय
कोरेगांव की हिंसा के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रदर्शन
By Deshwani | Publish Date: 4/1/2018 6:37:48 PMनई दिल्ली, (हि.स.)। महाराष्ट्र के पुणे-कोरेगांव में हुई जातीय हिंसा के मुद्दे पर गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों और छात्रों ने समाज में वैमनस्य पैदा करने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ एकजुट होकर प्रदर्शन किया। छात्रों ने समय रहते स्थिति को काबू नहीं करने के लिए राज्य सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया।
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए शिक्षक डा. प्रवेश कुमार चौधरी ने कहा कि पुणे के पास भीमा कोरेगांव में शौर्य दिवस मनाने गए अम्बेडकरवादियों पर असामाजिक तत्वों द्वारा जानलेवा हमला निंदनीय है। उन्होंने कहा कि वहां इतना बड़ा आयोजन था तो क्या उसके बारे में सरकार को मालूम नहीं था। उन्होंने कहा कि सरकार को इसके लिए पहले से व्यवस्था करनी चाहिए थी। सरकार की नजर में चीजें थीं पर कहीं न कहीं कुछ उपेक्षा की गई उसी के कारण वहां ऐसे हालात पैदा हुए। सरकार को यहां यह भी देखना चाहिए की इसमें कुछ ऐसे तत्वों की कोई चाल तो नहीं है जो दलित समाज के आंदोलन के साथ जुड़कर स्वयं को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।
चौधरी ने कहा कि सवाल यह है कि पेशवाई अगर इतनी अच्छी थी तो क्या इंसान जैसे दिखने वाले व्यक्तियों को जानवरों से भी बदतर स्थिति में रहना पड़ता। ज्योतिबा फूले क्यों आत्महत्या करने के विचार को त्याग देते हैं क्योंकि वह देखते हैं कि उस पेशवाई समाज के अंदर दलितों को गले में मटका टांगकर और गले में झाडू बांधकर बिना चप्पल पहने चलना पड़ता है। उनको थूकन पर पाबंदी है। इतना ही नहीं वह बाजार में जाने से पहले उन्हें पैरों में घुंघरु बांधकर निकलना होता है। यह सोचनीय विषय है कि पेशवा युग में किस प्रकार की व्यवस्था थी।
उन्होंने कहा कि यदि इस सबके बावजूद दलित समाज अंग्रेजों का साथ देता भी है तो उसमें कोई बुराई नहीं है। वह उस गुलामी और अत्याचार के खिलाफ एक आंदोलन था। उस अत्याचार के खिलाफ एक बिगुल फूंका गया था और उसका नतीजा ही था कि 28 हजार सैनिकों को मात्र पांच सौ महारों ने हरा दिया और उस पर यदि वह गर्व करते हैं तो इसमें कोई बुरी बात नहीं है।