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तीन तलाक विधेयक कांग्रेस के हंगामें के बीच राज्यसभा में पेश
By Deshwani | Publish Date: 3/1/2018 8:13:09 PM
तीन तलाक विधेयक कांग्रेस के हंगामें के बीच राज्यसभा में पेश

 नई दिल्ली, (हि.स.)। तीन तलाक को गैर जमानती दंडनीय अपराध बनाने संबंधी विधेयक बुधवार को राज्यसभा में पेश किया गया। कांग्रेस सहित विपक्ष के सदस्यों के हंगामें और नारेबाजी के बीच कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017 विधेयक पेश किया। 

शोर शराबे के बीच उन्होंने सदन के सभी सदस्यों से आग्रह किया कि वे लोकसभा में पारित इस ऐतिहासिक विधेयक पर चर्चा कर इसे अपनी मंजूरी दे। कांग्रेस के आनंद शर्मा और कुछ अन्य सदस्यों ने व्यवस्था के प्रश्न उठाते हुए श्री रविशंकर प्रसाद के बोलने पर आपत्ति व्यक्त की। 
 
उपाध्यक्ष वीजे कुरियन ने कहा कि उन्होंने कानून मंत्री को विधेयक पेश करने के लिए कहा है और वह इस संबंध में अपना संक्षिप्त बयान दे सकते हैं। कांग्रेस के आनंद शर्मा ने विधेयक को राज्यसभा की प्रवर समिति को भेजे जाने का आग्रह किया। इस संबंध में उन्होंने एक प्रस्ताव भी पेश किया। प्रस्ताव था कि यह विधेयक प्रवर समिति को भेजा जा रहा है जो बजट सत्र के पहले हफ्ते में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। उन्होंने प्रवर समिति के सदस्यों के नामों का उल्लेख भी किया। जिसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी, अन्नाद्रमुक आदि के सदस्यों के नाम शामिल थे। 
 
वित्तमंत्री और सदन के नेता अरूण जेटली ने आनंद शर्मा के इस प्रस्ताव को अवैध बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे किसी प्रस्ताव की सूचना 24 घंटे पहले दी जानी चाहिए। प्रवर समिति में सदस्यों की संख्या सदन में विभिन्न दलों की सदस्य संख्या के अनुरुप होनी चाहिए। साथ ही इन सदस्यों की सहमति भी हासिल होनी चाहिए। उन्होंने श्री शर्मा के प्रस्ताव को हास्यास्पद बताया। उन्होंने कहा कि 1952 से लेकर आजतक कभी भी प्रवर समिति का गठन इस तरीके से नहीं किया गया। पूर्व में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है वास्तव में यह सदन के नियमों और परिपाटियों का उपहास उड़ाना है। 
 
श्री जेटली ने तीन तलाक विरोधी विधेयक की तात्कालिकता का जिक्र करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय में गत 22 अगस्त को तीन तलाक को गैर- संवैधानिक घोषित कर दिया था। दो न्यायाधीशों ने तीन तलाक पर 6 महीने के लिए रोक लगा दी थी । यह अवधि 22 फरवरी को खत्म होनी है। न्यायाधीशों ने सरकार को सुझाव दिया था कि इस संबंध में समूचित कानून बना ले। 
 
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