ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
राष्ट्रीय
अस्पतालों की गाढ़ी कमाई का अधिकांश हिस्सा खा जाता है प्रबंधन
By Deshwani | Publish Date: 29/12/2017 3:17:42 PM
अस्पतालों की गाढ़ी कमाई का अधिकांश हिस्सा खा जाता है प्रबंधन

नई दिल्ली, (हि.स.)। चाहे मैक्स अस्पताल लापरवाही का मामला हो या फोर्टिस अस्पताल प्रबंधन की ओर से डेंगू मरीज से लाखों के बिल की उगाही करने का मामला, सभी का ध्यान बरबस अस्पताल प्रबंधन की अनाप-शनाप कमाई पर आकर टिक जाता है। लेकिन इस मामले में लोग यह नहीं सोचते कि इस कमाई में किनका कितना हिस्सा है।
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. वी.के. मल्होत्रा के मुताबिक बड़े-बड़े अस्पतालों में काम करने वाले डाक्टरों का अस्पताल की कमाई में हिस्सा महज 2-3 फीसदी है क्योंकि उन्हें वेतन के अलावा ज्यादा कुछ मिलना ही नहीं है। अगर वह अॉपरेशन करते हैं तो उन्हें कुछ ज्यादा मिल जाता है। साफ है कि कमाई का अधिकांश हिस्सा अस्पताल प्रबंधन ही चट कर जाता है। डा. मल्होत्रा यह भी कहते हैं कि कई एेसे उदाहरण हैं जिसमें देखा गया कि पिछले 10 साल से किसी खास निजी अस्पताल में काम करने वाले डाक्टर के अगर बच्चे बीमार पड़े तो उन्हें अस्पाल में पूरी फीस जमा करनी पड़़ी। जबकि अगर अस्पताल की ओर से इलाज में कोई कोताही बरती जाती है तो इसके लिए जिम्मेदार डाक्टर को ही माना जाता है।
हम जानते हैं कि अस्पताल को दवाईयां, जांच, चिकित्सकीय उपकरणों जैसे सिरिंज, ड्रेसिंग मैटेरियल, कैथेटर्स आदि में काफी कमाई होती है। एक आंकड़े के मुताबिक किसी अस्पताल की कमाई का यह लगभग 30 फीसदी होता है। लेकिन यह पैसा पूरी तरह अस्पताल प्रबंधन को ही जाता है।
साथ ही इलाज पर आने वाले खर्च में अस्पताल में दाखिले पर वार्ड में या आईसीयू में रहने का किराया भी काफी होता है। यह अस्पताल की कमाई का लगभग 15-20 फीसदी होता है लेकिन यह हिस्सा भी तो अस्पताल प्रबंधन को ही जाता है क्योंकि अस्पताल का भवन तो प्रबंधन का ही होता है। यानी इस हिस्से को मिलाकर अस्पताल की कमाई का 50 प्रतिशत हिस्सा प्रबंधन को चला जाता है। 
इस मामले का महत्वपूर्ण पहलू है कि ज्यों-ज्यों अस्पताल का बिल बढ़ता जाता है त्यों-त्यों कमाई में डाक्टरों का हिस्सा घटता जाता है क्योंकि बिल के उस राशि में बढ़ोतरी होती है जो राशि सीधे तौर पर अस्पताल प्रबंधन को जाना है। 
जैसे अगर मरीज को ज्यादा दिनों तक अस्पताल में रुकना पड़ता है तो उसे कमरे का भाड़ा, जांच व चिकित्सकीय उपकरण व दवाईयों पर ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और यह बढ़ी हुई राशि अस्पताल प्रबंधन को ही जाएगी। लेकिन इस प्रक्रिया से डाक्टरों की परेशानी जरूर बढ़ेगी क्योंकि उन्हें मरीज की इलाज पर अपने आपको ज्यादा केंद्रित करना पड़ेगा। यानी अस्पताल की कमाई बढ़ती जाएगी और डाक्टरों की जिम्मेदारी व परेशानी बढ़ती जाएगी। यही हालत मिलाजुलाकर निजी अस्पतालों में काम करने वाले पैरामेडिक स्टाफ का भी है क्योंकि उनका वेतन तो निश्चित है लेकिन मरीजों की संख्या निश्चित नहीं है। साथ ही डाक्टर व पैरामैडिकल स्टाफ को अगर अस्पताल कभी-कभी तरस भी खा जाता है तो अस्पताल की ओर से दी जाने वाली राशि कई हिस्सों में बंट जाता है।
डा. मल्होत्रा के मुताबिक अगर डाक्टरों को इस हालत से निजात दिलानी है तो सरकार को एक एेसा तंत्र विकसित करना पड़ेगा जो निजी अस्पतालों की कमाई को समय-समय पर आडिट करे और इस पर कड़ी नजर रखे। नहीं तो डाक्टरों की जिम्मेदारी बढ़ती जाएगी और उनकी कमाई घटती जाएगी। दूसरी तरफ अस्पताल मालिकों की कमाई बढ़ती जाएगी।
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS