झुंझुनू, (हि.स.)। थ्री इडियट का रैंचो तो याद होगा....जिसे किताबों से कम और मशीनों से ज्यादा प्यार था... लेकिन था कमाल का। कुछ ऐसा ही रैंचो जैसा लडक़ा सामने आया है झुंझुनू से। झुंझुनू के अजाड़ी खुर्द का रहने वाला अशोक शर्मा। जिसे उसके पिता गोपीचंद शर्मा बनाना चाहते थे खुद की तरह एक रसोइया, लेकिन अशोक के दिमाग में चलती रहती थी मशीनें। तीन साल की उम्र में ही अपने परिवार की माली हालत खराब होने के कारण वह चला गया सीकर जिले के रीणू गांव में अपने ननिहाल। यहां पर उसने कभी भी किसी भी कक्षा में ऐसे नंबर नहीं प्राप्त किए। जिससे लगता हो कि अशोक आगे जाकर वैज्ञानिक बनेगा, लेकिन 12वीं पास करने के बाद ही उसके दो प्रोजेक्ट डीआरडीओ ने मंजूर कर लिए। जल्द ही अशोक अपने दोनों प्रोजेक्टों को फाइनल टच देने के लिए इजरायल जाएगा। वो भी सरकारी खर्च पर।
बचपन में परिवार और पास पड़ौस की मशीनों को लुक छिप कर खोलना, उसे समझना और बाद में उसे ज्यों का त्यों बंद कर देना तो अशोक की आदत में था। दो साल पहले अशोक ने अपना पहला कारनामा किया। उसने जोड़-तोड़ से एक फ्रीज बना डाला। इसके बाद उसने किसानों के लिए एक मशीन बनाने की भी सोची। परिवार ने साथ नहीं दिया, लेकिन जब उसने बाहुबली फिल्म देखी तो उसने मृत्यु कार बनाने की ठानी और इसके आठ चरण भी पूरे कर लिए। सेना के ये कार कैसे काम आए? इस सवाल का जवाब ढूंढा गूगल से।गूगल ने रास्ता दिखाया डीआरडीओ का। तीन बार लगातार अशोक के प्रोजेक्ट करण का तीर और मृत्यु कार रिजेक्ट हुए, लेकिन आखिरकार एक दिन डीआरडीओ से अशोक के पास फोन आ ही गया। इसके बाद वह पहले देहरादून और बाद में बैंगलोर गया। अब जल्द ही अशोक इजराइल जाएगा।
अशोक भाई बहनों में सबसे बड़ा है। अशोक 21 साल का है और 12वीं तक पढ़ा है, वहीं उसका छोटा भाई तरूण आठसाल का है और तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है। बहन छह साल की भूमिका है, जो दूसरी में पढ़ रही है। पिता गोपीचंद आठवीं तक पढ़े हुए है, लेकिन वे रसोइए से ज्यादा कुछनहीं बन पाए।वहीं मां संतोषदेवी अनपढ़ है, लेकिन इस लाडले ने जो नाम कमाया है उससे पूरे गांव में खुशी है।
साधारण परिवार का अशोक सीमा पर रोज शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों के लिए कुछ करना चाहता था। वो अपने ननिहाल रिणू में स्कूल से आने के बाद कंप्यूटर पर ऐसे हथियार बनाने का प्रयास करने लगा जिससे दुश्मन को दूर से ही मारा जा सके। इसी सोच के साथ उसने दो प्रोजेक्ट तैयार कर डीआरडीओ एवं रक्षा मंत्रालय के पास भेजे। रक्षा एवं डीआरडीओ को प्रोजेक्ट पसंद आए। वहां पर तीन चरणों में अशोक का इंटरव्यू लेकर उसे डीआरडीओ में वैज्ञानिक एच बना दिया गया। अशोक के साथ उसकी टीम को रक्षा अनुसंधान एवं संगठन की ओर से अगले माह इजरायल भेजा जा रहा है। 12वीं पास अशोक को फिलहाल डीआरडीओ की ओर से हर माह 60 हजार रुपए का वेतन भी दिया जाने लगा है। अशोक को पिछले साल डीआरडीओ लैब में बेस्ट साइंटिस्ट डॉ. रमन पुरस्कार भी गृह मंत्रालय की ओर से दिया गया।