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इच्छामृत्यु की वसीयत लिखने की अनुमति नहीं दे सकते : केंद्र
By Deshwani | Publish Date: 10/10/2017 5:30:01 PM
इच्छामृत्यु की वसीयत लिखने की अनुमति नहीं दे सकते : केंद्र

 नई दिल्ली, (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने आज से पैसिव यूथेनेशिया यानि इच्छा-मृत्यु की याचिका पर सुनवाई आज से शुरु कर दी है । याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि इच्छामृत्यु की वसीयत लिखने की अनुमति नहीं दे सकते लेकिन मेडिकल बोर्ड के निर्देश पर मरणासन्न के सपोर्ट हटाए जा सकते हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर मौत के सम्मान को स्वीकार किया गया है तो मौत की प्रक्रिया के सम्मान को स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है। संविधान बेंच ने पूछा कि क्या किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ आर्टिफिशियल लाइफ सिस्टम के जरिये जिंदा रखा जा सकता है।

 
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2015 में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए संविधान बेंच को रेफर कर दिया था। इसमें ऐसे व्यक्ति की बात की गई थी जो बीमार है और मेडिकल सलाह के मुताबिक उसके बचने की संभावना नहीं है। तत्कालीन चीफ जस्टिस सदाशिवम की अध्यक्षता वाली बेंच ने संविधान बेंच को भेजने का फैसला किया था।
 
याचिका कॉमन कॉज नामक एनजीओ ने दायर किया है जिसमें कहा गया है कि एक व्यक्ति मरणांतक बीमारी से पीड़ित हो तो उसे दिए गए मेडिकल सपोर्ट को हटाकर पीड़ा से मुक्ति दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच ने ज्ञान कौर बनाम पंजाब सरकार के मामले में कहा था कि इच्छा-मृत्यु और खुदकुशी दोनों भारत में गैरकानूनी हैं और इसी के साथ दो जजों की बेंच के पी रत्नम बनाम केंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया था। कोर्ट ने कहा था कि संविधान की धारा 21 के तहत जीने के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा रामचंद्रन शॉनबाग बनाम केंद्र सरकार के मामले में कहा कि कोर्ट की कड़ी निगरानी में असाधारण परिस्थितियों में पैसिव यूथेनेशिया दिया जा सकता है। एक्टिव और पैसिव यूथेनेशिया में अंतर ये होता है कि एक्टिव में मरीज की मृत्यु के लिए कुछ किया जाए जबकि पैसिव यूथेनेशिया में मरीज की जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया जाए।
 
इस मामले की सुनवाई कर रही पांच सदस्यीय संविधान बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे हैं। उनके अलावा इस बेंच में जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं।
 
 
 
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