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पुण्यतिथि विशेष : कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की चमक आज भी बरकरार
By Deshwani | Publish Date: 8/10/2017 4:18:24 PM
पुण्यतिथि विशेष : कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की चमक आज भी बरकरार

 नई दिल्ली, (हि.स.)। मुंशी प्रेमचंद के नाम से विश्व में मशहूर हुए धनपत राय श्रीवास्तव का निधन आज ही के दिन 8 अक्टूबर को वर्ष 1936 में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित 'ईदगाह' और 'दो बैलों' जैसी बेहतरीन कहानियां लेखकों की दुनिया का ऐसा हीरा साबित हुए जो अपनी कलम के बूते आज भी चमक रहे हैं। उनके लिखे हुए लेख, कहानियों की चमक आज भी कहीं कम नहीं हुई है। प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मुंशी प्रेमचंद की हिंदी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर गजब की पकड़ थी। अपनी कलम से गरीब इंसान के दर्द को उकेरने वाले मुंशी प्रेमचंद खुद एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म प्रधानमंत्री मोदी के लोकसभा क्षेत्र काशी (वाराणसी) के निकट लमही गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय था वो पोस्ट ऑफिस में नौकरी करते थे। मुंशी प्रेमचंद जब 8 साल के थे तब उनकी माता का निधन हो गया था, इसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। उनकी शिक्षा की शुरुआत उर्दू और फारसी भाषा से हुई थी। अपनी बाल उम्र 13 वर्ष के दौरान ही उन्‍होंने 'तिलिस्म-ए-होशरुबा' पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया था। जब मुंशी प्रेमचंद 14 वर्ष के हुए तो उनके पिता का निधन हो गया जिसके बाद उनका जीवन संघर्ष में बीता। उनका पहला विवाह 15 वर्ष की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा। वे आर्य समाज से प्रभावित रहे। जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और 1906 में दूसरा विवाह बाल विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संतानें श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव हुईं। वर्ष 1910 में मुंशी प्रेमचंद की रचना सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के तत्कालीन जिला कलेक्टर ने उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। उनकी सोजे-वतन की सभी प्रतियां जब्त कर नष्ट कर दी गई। कलेक्टर ने बाकायदा प्रेमचंद को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, धनपत राय नाम से लिखते थे, लेकिन उर्दू में प्रकाशित होने वाली 'जमाना पत्रिका' के सम्पादक और उनके अजीज दोस्‍त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। जिसके बाद वह प्रेमचन्द के नाम से लिखने लगे। उन्‍होंने आरंभिक लेखन जमाना पत्रिका में ही किया। जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद की पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में 1915 में 'सौत' नाम से प्रकाशित हुई। उन्होंने अपने जीवनकाल में 1 दर्जन से ज्यादा नॉवेल और 250 लघु कहानियां लिखी। सेवासदन, गबन, रंगमंच, निर्मला और गोदान उनके सबसे विख्यात उपन्यास हैं। उनकी कहानी शतंरज के खिलाड़ी को सत्यजीत रे ने बड़े पर्दे पर उतारा था। 

गौरतलब है कि भारत सरकार ने मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था। गोरखपुर के जिस स्कूल में वह शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई। उनकी प्रमुख रचनाएं नमक का दारोगा, गोदान, रंगभूमि, पूस की रात, बड़े घर की बेटी और लॉटरी थी। मुंशी प्रेमचंद अपना उपन्यास 'मंगलसूत्र' लिख रहे थे तभी वह बीमार हो गए। लंबी बीमारी के चलते 8 अक्टूबर 1936 में उनका निधन हो गया। जिसके बाद ये उपन्यास उनके पुत्र अमृत ने पूरा किया। मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था। 
 
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