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पुण्यतिथि विशेष: आज भी है प्रासंगिक ''सवा लाख से एक लड़ाऊं, तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं''
By Deshwani | Publish Date: 7/10/2017 4:38:15 PM
पुण्यतिथि विशेष: आज भी है प्रासंगिक ''सवा लाख से एक लड़ाऊं, तभी गोबिंद सिंह नाम कहाऊं''

नई दिल्ली, (हि.स.)। सिक्खों के दसवें गुरु, सिख खालसा सेना के संस्थापक एवं प्रथम सेनापति गुरु गोबिन्द सिंह की पुण्यतिथि आज देश में मनाई जा रही है। गुरु गोविन्द सिंह सिख धर्म के दसवे और अंतिम गुरू थे। इनका जन्म बिहार की राजधानी पटना में 22 दिसंबर 1666 ई. में हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्ख धर्म के अनुयायियों को कई सीख दी जो आज भी प्रासंगिक है। धरम दी किरत करनी अर्थात अपनी जीविका ईमानदारी पूर्वक काम करते हुए चलाएं, दसवंड देना अर्थात अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें, गुरुबानी कंठ करनी अर्थात गुरुबानी को कंठस्थ कर लें, कम करन विच दरीदार नहीं करना अर्थात काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कभी कोताही न बरतें, धन, जवानी, तै कुल जात दा अभिमान नै करना अर्थात अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर घमंडी होने से बचें, दुश्मन नाल साम, दाम, भेद, आदिक उपाय वर्तने अते उपरांत युद्ध करना अर्थात दुश्मन से भिड़ने पर पहले साम, दाम, दंड और भेद का सहारा लें, और अंत में ही आमने-सामने के युद्ध में पड़ें, किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना अर्थात किसी की चुगली-निंदा से बचें और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय मेहनत करें, परदेसी, लोरवान, दुखी, अपंग, मानुख दि यथाशक्त सेवा करनी अर्थात किसी भी विदेशी नागरिक, दुखी व्यक्ति, विकलांग व जरूरतमंद शख्स की मदद जरूर करें, बचन करकै पालना अर्थात अपने सारे वादों पर खरा उतरने की कोशिश करें, शस्त्र विद्या अतै घोड़े दी सवारी दा अभ्यास करना अर्थात खुद को स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने के लिए शारीरिक सौष्ठव, हथियार चलाने और घुड़सवारी का अभ्यास अवश्य करें, आज के संदर्भ में नियमित व्यायाम जरूर करें, जगत-जूठ तंबाकू बिखिया दी तियाग करना अर्थात किसी भी तरह के नशे और तंबाकू का सेवन न करें। 
गौरतलब है कि गुरु गोविन्द सिंह का मूल नाम गोविन्द राय था। गुरु गोविन्द सिंह सैनिको की संगति और खालसा पंथ की स्थापना के लिए प्रसिद्ध थे। गुरु गोविन्द सिंह के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर तथा माता का नाम गुजरी था। 1675 ई में गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों के अनुरोध पर सिख धर्म के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए कुर्बानी दे दी । तत्पश्चात, 9 वर्ष की उम्र में गुरु गोविन्द सिंह 11 नवंबर 1675 ई को राजगद्दी पर विराजमान हुए। गोविन्द सिंह बचपन से ही खिलौने की जगह कृपाण, कटार और धनुष-बाण से खेला करते थे। गुरु गोविन्द बचपन से ही शौर्य और साहसिक कार्यों की तरफ खुद को अग्रसित रखते थे। 1675 ई में गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए खुद को बलिदान कर दिया। गुरु गोविन्द सिंह ने सिख धर्म के गुरु पद की गरिमा को बनाये रखने के लिए संस्कृत, फ़ारसी,पंजाबी और अरबी भाषा का ज्ञानार्जन किया और विश्व समुदाय को सिख धर्म के गुरु पद को समझाया।
 
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