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नौकरशाहों की असंवेदनशीलता देश के विकास में प्रमुख बाधा : सुषमा स्वराज
By Deshwani | Publish Date: 2/10/2017 4:53:10 PM
नौकरशाहों की असंवेदनशीलता देश के विकास में प्रमुख बाधा : सुषमा स्वराज

नई दिल्ली, (हि.स.)। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज कहा कि देश में आज सबसे ज्यादा परेशानी आम-जनता को अधिकारियों के निचले स्तर पर असंवेदनशीलता के चलते होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार केंद्र इस व्यवस्था को बदलने के लिए प्रयासरत है। सुषमा ने पटवारी और तहसीलदार पदनाम लेकर बाकायदा कहा कि सबसे ज्यादा आम जनता को यह चक्कर कटवाते हैं। सुषमा ने बाकायदा दावा किया कि मोदी सरकार में सबसे संवेदनशील सेवाएं केवल विदेश मंत्रालय ही दे रहा है। 24 घण्टे में समस्या का समाधान किया जा रहा है। भारतीय दूतावास अब समाधान केंद्र बन गया है। दूतावास में अच्छे कार्य करने वाले अब सम्मानित हो रहे हैं। सुषमा ने यह बात सोमवार को संकल्प द्वारा आयोजित व्याख्यान माला के दौरान कही। मुख्य बात यह थी की इस व्याख्यान माला में प्रशासनिक पदों की तैयारी कर रहे छात्रों के अलावा उनको पढ़ाने वाली फेकल्टी शामिल थी। संकल्प का मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक अधिकारीयों की आने वाली नस्ल में संवेदनशीलता जगाते हुए राष्ट्र निर्माण का है। 

सुषमा स्वराज ने कहा कि संवेदनहीन प्रशासन भारत के विकास में आज सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि आज से पहले लोग विदेश मंत्रालय को सिर्फ सूट, बूट और टाई वाले लोगों का मंत्रालय के बारे में जानते थे लेकिन आज मेरे अथक प्रयासों से इस सोच में बदलाव आया है। विदेश मंत्री मंत्रालय अब संवेदनशील बना है यह सब देख रहे हैं| बाकायदा दावा किया कि मोदी सरकार में सबसे संवेदनशील सेवाएं केवल विदेश मंत्रालय ही दे रहा है। सुषमा स्वराज ने कहा कि पहले दूतावासों पर अपनी फरियाद लेकर आने वाले नागरिकों की अनदेखी की जाती थी। अब दूतावासों के अधिकारी इंतजार करते हैं कि उन्हें भी किसी पीड़ित की सहायता करने का अवसर मिले ताकि वे भी एमईए की तरफ से बधाई के पात्र बन सकें। यह 180 डिग्री का परिवर्तन हमने किया यही शिक्षण संस्थानों के गुरुजनों के पास अवसर है इसको आगे बढ़ाने का। दरिद्र की सेवा नारायण सेवा है यही भारत की संस्कृति है। 

गुरद्वारे के लंगर की तारीफ 

सुषमा स्वराज कहा कि देश के किसी भी मोहल्ले में अगर गुरुद्वारा है वहां कभी कोई भूखा नहीं सोता है। गुरुद्वारे में धर्म के आधार पर लंगर नहीं खिलाया जाता है। सुषमा स्वराज ने एक श्लोक का पाठ करते हुए कहा कि 'साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय' अर्थात परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजरा चल जाये, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ। यह भारत की संस्कृति है। 

हर प्राणी के लिए भारत की संस्कृति में व्यवस्था 

सुषमा स्वराज ने भारत की महान संस्कृति के बारे में बताते हुए कहा कि हमारे यहां आज भी भोजन बनाते वक्त पहली रोटी घी लगाकर गाय के लिए निकाली जाती है। दूसरी रोटी तेल लगाकर कुत्ते के लिए और तीसरी रोटी कौवे की लिए निकाली जाती है। यहां तक कि पक्षियों के लिए दाना और पानी की व्यवस्था भी भारतीय संस्कृति की देन है। 

पश्चिम सभ्यता ने दिया एकान्तवाद को बढ़ावा 

सुषमा स्वराज ने कहा कि पश्चिम में 16 वर्ष के बाद बच्चे को परिवार से अलग कर दिया जाता है। हमारे यहां मां चौका बर्तन कर बच्चों को तब तक पढ़ाती है जब तक उसकी नौकरी नहीं लग जाये| इससे बच्चे के मन में यह भाव पैदा होता है कि वो भी बुढ़ापे में मां की सेवा करे। पश्चिम की सभ्यता मदर्स डे, फादर्स डे मनाती है| वर्ष में एक बार माता-पिता को याद करने का दिन है लेकिन हमारे यहां 365 दिन मदर्स-फादर्स डे है। आज पश्चिम सभ्यता ही अकेलापन को प्रेरित करती है। सभी लोग अगर भारतीय संस्कृति का पालन करें तो एकांत की समस्या नहीं होगी न देश में वृद्धाश्रम होंगे। सुषमा ने कहा कि गांवों में आज भी हमारी संस्कृति जीवित है।

तनाव का समाधान योग 

सुषमा स्वराज ने कहा कि मानसिक तनाव का समाधान योग है। अगले वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विश्व स्तर पर 192 देश (यमन को छोड़कर) योग का कार्यक्रम आयोजित करेंगे। योग हमारी संस्कृति के मूल आधार है| योग जोड़ने की शक्ति प्रदान करता है। आज इसी का प्रभाव है कि कॉरपोरेट घराने भी योग करवा रहे हैं। मानसिक तनाव, अकेलपन का जवाब हमारी संस्कृति में है।

हम कॉपीराइट में नहीं करते विश्वास 

सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत ने कभी कॉपीराइट में विश्वास नहीं किया| हमने हमेशा विश्व कल्याण के लिए दिया है। विश्व के अन्य देश किसी भी विचार या समाधान का कॉपीराइट करवा लेते हैं उसको पेटेंट करवा रॉयल्टी खाते हैं। हमारे यहां ऋषि मुनियों ने मानव कल्याण के लिए मानवता के लिए सबको दिया। उन्होंने अपने स्वास्थ्य मंत्री कार्यकाल का एक अनुभव साझा करते हुए कहा कि उस समय मुझे सुझाव दिया गया था कि आयुर्वेद को भारत पेटेंट करवा ले। मैंने तुरंत उनको यही कहा कि यह भारत की संस्कृति नहीं है| आयुर्वेद को पेटेंट करवाना हमारे ऋषियों-मुनियों का अपमान होगा जिन्होंने इस को विश्व कल्याण के लिए बनाया था। 

इंटरनेट का भारत में आगमन 

सुषमा स्वराज ने अपने दूरसंचार मंत्री कार्यकाल के बारे में अनुभव साझा करते हुए कहा, 'जब इसका प्रभार उनके पास था तब इंटरनेट खोलो, मत खोलो अलग-अलग सोच विचारधारा के बीच बहुत तर्क-वितर्क थे। इंटरनेट के पक्षधर लोगों का तर्क था कि देश विकास की तरफ बढ़े इसके लिए यह आवश्यक है| वहीं विरोध में खड़े लोगों का तर्क था कि इससे समाज में गंदगी फैलेगी| पहले ही टीवी ने यह बढ़ा दिया है।' सुषमा स्वराज ने कहा कि तभी उन्होंने एक किताब पढ़ी जिसमे रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा है कि मैंने इस भय से घर के द्वार बंद कर लिए कि कहीं बुराई मेरे घर में प्रवेश न कर जाए तभी अच्छाई मेरे सामने आ कर खड़ी हुई और पूछा कि मैं कहाँ से आऊँगी। बस मुझे रास्ता मिल गया और इंटरनेट के खोलने का रास्ता बन गया। यहीं से देश में इंटरनेट का आवागमन हुआ। 

सूक्ष्म भाषण में विश्वास 

सुषमा स्वराज ने कहा कि वो लम्बे चौड़े भाषण देने की बजाय सूक्ष्म भाषण देने की पक्षधर हैं। उन्होंने कहा कि मैं अपने कम शब्दों में अपनी बात कहना जानती हूँ। उन्होंने कहा कि वैश्विक मंच पर समय निर्धारित होता है उतने में ही अपनी बात कहनी होती यही। उन्होंने स्वच्छता पर कहा कि हम स्वय इस संस्कृति से दूर हो रहे है यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम नदियों की पूजा करते हैं और उसको मैला भी हम ही कर रहे हैं। गंगा की सफाई आज हम सबके लिए चुनौती बनी हुई है। जब बड़े शहरों में जाते हैं तो मकान के साथ दिल भी छोटे होने लगे हैं। कक्षाओं में बैठकर हिंसा हो रही है। हम स्वयं भारतीय संस्कृति को भूल रहे हैं। यह चेतावनी है कि अगर यह संस्कार खत्म हुए तो हम भी इन समस्याओं के शिकार होंगे जिनको विश्व झेल रहा है। आज भारतीय संस्कृति के पोषण की आवश्यकता है। 

दुनिया को बताएंगे भारतीय संस्कृति 

सुषमा स्वराज ने कहा कि जल्द ही हम वैश्विक समस्याओं पर भारत में एक कॉन्क्लेव का आयोजन करने जा रहे हैं| इसके माध्यम से हम विश्व को बताएंगे की किस प्रकार वैश्विक समस्या का समाधान भारतीय संस्कृति में है। उन्होंने बताया कि इसके लिए प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गयी है। सुषमा स्वराज ने रविवार के अपने एक अनुभव को साझा करते हुए बताया कि हाल ही में एक विदेश दौरे के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति ने एक बैठक बुलाई जिसमे 2 मिनट का भाषण था| मैंने वहां कहा धरती को मां मानिए यही जलवायु समस्या का समाधान है। इसी दौरान एक राष्ट्राध्यक्ष ने इसका संज्ञान लिया क्योंकि उन्होंने कहा कि यह बात वो भी सोचते हैं उन्होंने तुरंत अपने राजनायिक को भेजा मुझसे बात करने के लिए। रविवार को ही उनका फोन आया| उनके राजदूत ने बताया कि भारतीय संस्कृति के प्रभाव के बारे में उनके राष्ट्रध्यक्ष बहुत प्रभावित हैं और वो इसको बढ़ाने के लिए आपका सहयोग चाहते हैं। 

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