शिमला, (हि.स.)। चुनावी मौसम में हिमाचल की दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अभी तक बागियों की वापसी को लेकर निर्णय नहीं ले पाई हैं। दोनों दलों में बागियों की वापसी का मामला लटकने का एक मुख्य कारण पार्टी के भीतर जारी गुटबाजी माना जा रहा है।
वर्ष 2012 के चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव लड़ने पर पूर्व मंत्रियों व विधायकों सहित कई पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। दोनों दलों में बागी नेता घर वापसी के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। ये नेता टिकट हासिल करने की जुगत में वापसी की कवायद में लगे हैं।
वर्तमान में हिमाचल कांग्रेस के करीब 33 नेता और पदाधिकारी संगठन से निलंबित चल रहे हैं। इनमें चार पूर्व विधायक देहरा से योगराज, घुमारवीं से कश्मीरी सिंह, आनी से ईश्वर दास व करसोग से मस्त राम शामिल हैं। इसके साथ ही पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके धर्मवीर धामी सहित कई अन्य बड़े-बड़े चेहरे भी संगठन से बाहर चल रहे हैं।
कांग्रेस में यह पहला मौका है जब विधानसभा चुनाव में संगठन विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे नेताओं को घर वापसी के लिए साढ़े चार साल से अधिक का समय लग गया है। कांग्रेस के बागियों में ज्यादा संख्या मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबियों की है। जबकि प्रदेश कांग्रेस संगठन की कमान उनसे छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू के पास है।
दूसरी ओर भाजपा में पूर्व मंत्रियों राजन सुशांत और महेंद्र सोफत आदि बड़े नाम घर वापसी की राह देख रहे हैं। भाजपा के बागियों में शुमार अधिकतर नेता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के विरोधी हैं और धूमल खेमा कतई नहीं चाहेगा कि पार्टी में इन्हें वापस लिया जाए।