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केरल में बर्बर हत्याकांड के साजिशकर्ता कौन : राकेश सिन्हा
By Deshwani | Publish Date: 9/8/2017 2:46:41 PM
केरल में बर्बर हत्याकांड के साजिशकर्ता कौन : राकेश सिन्हा

नई दिल्ली, (हि.स.)। भारत नीति प्रतिष्ठान आज शाम 4:30 बजे केरल में संघ कार्यकर्ता की हत्या के विरोध में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करेगा। 

नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक राकेश सिन्हा ने बुधवार को कहा, 'विगत 28 जुलाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक स्थानीय पदाधिकारी (बस्ती कार्यवाह) एस. एल. राजेश की हत्या से देश सदमे में है। संघ के कार्यकर्ता पर हुआ यह जानलेवा हमला जिसमें उनकी हत्या हो गई, अकारण किया गया एक बर्बर हमला था। पुलिस की पड़ताल में राजेश के शरीर से 83 जख्मों का पता चला है। उनके हाथ और पैर काट दिए गए थे। हत्या के बाद हालत यह थी कि पुलिस को उनके शरीर के विभिन्न अंगों को अस्पताल ले जाने के लिए एक चादर की जरूरत पड़ी। सवाल यह है कि इस बर्बर काण्ड को अंजाम देने के साजिशकर्ता कौन हैं?'
उन्होंने कहा, 'स्थानीय राजनीति पर नजर रखें तो साफ है कि इस हत्या के पीछे किसी और का नहीं बल्कि केवल और केवल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का ही हाथ है। वजह यह है कि हमेशा ही अपने राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों को रास्ते से हटाना ही मार्क्सवादियों की रणनीति रही है।'
राकेश सिन्हा ने कहा कि मार्क्सवादियों की हत्या की राजनीति का यह सिलसिला 1969 में तब शुरू हुआ था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता और स्थानीय मिठाई विक्रेता वादिक्कल रामकृष्णन की हत्या की गई थी। उस हत्याकाण्ड में राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री पी. विजयन और पार्टी के राज्य सचिव के. बालकृष्णन का नाम आया था| शुरू में माकपा के नेताओं ने उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया था जो माकपा छोड़कर इधर-उधर जाने लगे थे| इससे पार्टी टूटने की प्रक्रिया में थोड़ा विलंब हुआ, लेकिन अब देखने में आ रहा है कि हत्या की राजनीति के तौर-तरीके बदल रहे हैं। अब तो कम्युनिस्ट सामाजिक रूप से पिछड़े अनुसूचित जाति और जनजाति के सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी निशाना बनाने लगे हैं। कभी समाज के इन तबकों के लोग परम्परागत रूप से माकपा के सामाजिक आधार की मुख्य कड़ी हुआ करते थे। अब इस तबके का माकपा की विचारधारा से मोहभंग होना शुरू हुआ है और ये तबका दूसरी राजनीतिक विचारधाराओं की तरफ आकर्षित हो रहा है। इसका असर यह हो रहा है कि कम्युनिस्ट अपना संयम खोते जा रहे और उनका गुस्सा इस रूप में बाहर निकल रहा है। राजेश की हत्या वामपंथियों की इस प्रवृत्ति का ताजा उदाहरण है। राजेश का सम्बन्ध दलित तबके के पुलाया समुदाय से था। राज्य के पनाकुन्नु और प्रतिभा नगर इलाकों में जहां राजेश सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रियता से काम कर रहे थे| पुलाया समुदाय के 34 परिवार रहते हैं। ये सभी परिवार माकपा विरोधी राजनीतिक विचारधारा के समर्थक हैं| राजेश को माकपा की राजनीतिक सोच और काम करने के तौर-तरीकों का विरोध करने की सजा उनकी हत्या के रूप में मिली। राजेश के दो पुत्रों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी अब उनके बूढ़े दादा पर आ गई है। 
सिन्हा ने बताया कि अभी तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध चार दलित सामाजिक कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। खबरें हैं कि भाजपा और संघ से जुड़े 287 कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोप माकपा के कार्यकर्ताओं पर हैं| संघ और भाजपा की तो बात अलग है, विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की हत्या करने के मामले में माकपा कार्यकर्ताओं ने खासकर कन्नूर जिले में तो कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं को भी नहीं बख्शा। 
राकेश सिन्हा ने कहा कि यह जिला मुख्यमंत्री पी. विजयन का गृह जिला है। स्वाभाविक रूप से राजनीति में राजनीतिक विचारधाराओं की आपस में लड़ाई होती है और विचारों की यह टकराहट परस्पर प्रतियोगी माहौल में होती है और यह पूरी तरह से न्यायसंगत भी है, लेकिन यह प्रतिस्पर्धा विचार और चर्चा के माध्यम से पूरी होती है| गोली की मार बम धमाकों के जरिए नहीं, लेकिन कम्युनिस्ट पूरी दुनिया में असहिष्णु के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं| खासकर जब उनके अस्तित्व का संकट खड़ा होता है तब वो सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। अगर इन प्रवृत्तियों पर अविलम्ब कोई रोक नहीं लगाई गई या तुरन्त कुछ किया नहीं गया तो निःसंदेह भारत के स्वतंत्र लोकतंत्र को खतरा पहुंचेगा| राजनीति में आतंक और हिंसा के दरवाजे खुल जाएंगे। दुनिया का कोई भी लोकतंत्र ऐसा नहीं है जहां प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक विचारधारा को स्थान न दिया जाता हो| राजनीति में तो तरह-तरह की विचारधाराओं को फलने-फूलने का मौका मिलता है और राजनीति में परस्पर विरोधी राजनीतिक विचारधाराओं को फलने-फूलने का पूरा हक भी है। दरअसल वामपंथियों को यह पता है कि कोई भी समाज डर और आतंक से भरी ऐसी राजनीति को बर्दाश्त नहीं करता है और एक न एक दिन इसका अंत अवश्य होता है| वामपंथी इस बात से डरे हुए हैं कि उनकी राजनीति का अंत भी सन्निकट है| इसीलिए वे ऐसी हरकतें कर राजनीति का माहौल खराब कर रहे हैं। लोकतंत्र के प्रति उनकी घृणा और इसके खिलाफ उनके द्वारा लगातार चल रही लड़ाई को केरल और देश के दूसरे हिस्सों में साफ देखा जा सकता है। 
राकेश सिन्हा ने कहा, 'भय की इस राजनीति का सबसे भयावह और चिंताजनक पहलू यह है कि ये लोग अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को रास्ते से हटाने के क्रम में तालिबानी तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। राजेश की हत्या इस कड़ी का एक ताजा नमूना भर ही है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि देश के जिन बुद्धिजीवियों ने असहनशीलता और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अवार्ड वापस किये थे वो आज खामोश हैं। ऐसा लगता है कि वो सब भूमिगत हो गए हैं| सिन्हा ने आरोप लगाया कि ऐसे मामलों पर उनकी यह चुप्पी उनकी राजनीतिक पक्षधरता को उजागर करती है। इससे न केवल इन बुद्धिजीवियों की शाख पर धब्बा लगता है बल्कि समाज की छवि पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। 
 
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