नई दिल्ली, (विवेक बाड़मेरी)। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्तमान में अपने सबसे स्वर्णिम दौर से गुजर रहा है। देश के सर्वोच्च चार पदों पर संघ से जुड़े लोग विराजित हैं। इसमें उपराष्ट्रपति पद पर वेंकैया नायडू 11 अगस्त को शपथ लेंगे। यह दौर भाजपा के लिए जितना विजय श्री उत्सव मनाने का है उतना ही जिम्मेदारी बढ़ने का भी है।
देश के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि संघ पृष्ठभूमि और भाजपा से चार प्रमुख नेता देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं। इनमे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नवनिर्वाचित उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन शामिल हैं| भाजपा जिसकी मूल विचारधारा रही है कि सबका साथ सबका विकास। देश में सभी नागरिक एक समान हो और समाज के अंतिम व्यक्ति तक इसका लाभ पहुंचे।
चूँकि भाजपा के पास वर्तमान में लोकसभा में पूर्ण बहुमत है| राज्यसभा में भी वह सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है|देश के आधे से ज्यादा सूबे में भाजपा का शासन है। वर्तमान में एनडीए के पास लोकसभा में 338 और राज्यसभा में 91 सांसद हैं।
इसके साथ ही भाजपा के एक बड़े धड़े की उम्मीदें भी अब परवान चढ़ने लगी है। जिनमे अयोध्या में श्री राम मंदिर, धारा 370, आर्टिकल 35 (ए), बीफ बैन जैसे विवादित मामले शामिल हैं| भाजपा के पास अब सबसे बड़ी चुनौती है कि इन विवादित मुद्दों का हल जल्द शांति से निकालना क्योंकि 2019 चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को इनका जवाब जनता के बीच देना होगा।
भाजपा के पास दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है अपने विवादित नेताओं और उग्र कार्यकर्ताओं पर लगाम लगाना। क्योंकि हाल के दिनों में भीड़ को लेकर हिंसा मामले पर सरकार विपक्ष के लगातार निशाने पर रही है।
हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इन विवादित मामलों पर सीधे बयान देने से बचते रहे है। वहीं भाजपा का एक फायरब्रांड तबका लगातार उत्तर प्रदेश में अयोध्या में राम मंदिर बनवाने और जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास सुनिश्चित करवाने की वकालत करते आये है। हालाँकि आमतौर पर आर्टिकल 370 पर मुखर रहने वाली सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी में एक धड़ा ऐसा भी है, जिसका फोकस संविधान के आर्टिकल 35 (ए) पर फिलहाल ज्यादा है। यह आर्टिकल राज्य विधानसभा को 'स्थायी निवासियों' को परिभाषित करने और उन्हें विशेष अधिकार देने की शक्ति प्रदान करता है। भाजपा इस प्रावधान की बड़ी आलोचक रही है। उसका मानना है कि यह न केवल कश्मीर के नागरिकों को अलग पहचान देने की कोशिश है, बल्कि इससे कश्मीर और बाकी भारत के बीच राजनीतिक दरार चौड़ी हो रही है।
क्या है आर्टिकल 35 (ए) ?
इस आर्टिकल के तहत, जम्मू-कश्मीर के अलावा बाहर के लोगों को यहां जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है। आर्टिकल 35(ए) पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है। 'वी द सिटिजन' नामक एक गैर सरकारी संगठन ने आर्टिकल 35(ए) के कानूनी आधार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें इस प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर की महिला के दूसरे राज्य के व्यक्ति से शादी करते ही संपत्ति संबंधी अधिकार खत्म हो जाते हैं।
इस आर्टिकल पर 'व्यापक बहस' होने से जुड़े केंद्र सरकार के रुख ने कश्मीर के राजनेताओं के एक तबके में हलचल मचा दी है। इस आर्टिकल को खत्म करने की अटकलों पर जम्मू कश्मीर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी आक्रोशित हो गयी थीं। उन्होंने कहा कि इससे छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। मुफ्ती ने कहा था कि अगर जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को छेड़ा गया तो घाटी में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं बचेगा।
गौरतलब है कि देश के गैर-एनडीए शासित राज्यों में राजनीतिक उठापटक लगातार जारी है तो उत्तर प्रदेश व गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी विपक्षी नेताओं को तोड़कर हर हाल में एनडीए का कुनबा बढ़ाया जा रहा है। इन सब राजनीतिक उठापटक के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद है और वह है राज्यसभा में एनडीए की बढ़त जो करीaब-करीब पूरी होने ही वाली है। उत्तर प्रदेश में आगामी राज्यसभा चुनाव में एनडीए पूरी तरह से उच्च सदन में बहुमत में आ जाएगी और यही प्रधानमंत्री मोदी की ओर से तय सबसे बड़ा लक्ष्य माना जा रहा है। अब हालात साफ हो गए हैं कि अप्रैल 2018 तक राज्यसभा में मोदी राज होकर ही रहेगा।
राज्यसभा में 245 सांसद होते हैं और यहां बहुमत के लिए 123 सांसदों की जरूरत है। मौजूदा समय में एनडीए के पास और निर्दलीय सांसदों को मिलाने के बाद 121 सांसदों का साथ हैं जो बहुमत के बेहद ही करीब है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीतियों पर चलकर पार्टी आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की 9 सीटों में से कम से कम 8 सीटों पर कब्जा जमा सकती है।