नई दिल्ली, (हि.स.)। भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में सरकार के हस्तक्षेप को सीमित कर उसे कार्यात्मक स्वायत्तता प्रदान करने की मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पहल के मद्देनजर शुक्रवार को लोकसभा में दुर्लभ नजारा देखने को मिला। सरकार द्वारा पेश आईआईएम संशोधन विधेयक 2017 पर विपक्ष ने जावड़ेकर की प्रशंसा की।
आईआईएम विधेयक, 2017 इन संस्थाओं को वैधानिक शक्तियां प्रदान करने के साथ ही डिग्री और पीएचडी की उपाधि प्रदान करने का अधिकार देगा। बिल में पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से 20 आईआईएम में से प्रत्येक में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के सदस्यों की नियुक्ति के साथ ही एचआरडी मंत्री की भूमिका को सीमित करना भी शामिल है। यह विधेयक आईआईएम को राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के रूप में घोषित करने और आगंतुक के पद को समाप्त करने का भी प्रयास करता है। वर्तमान में राष्ट्रपति आईआईएम के 'आगंतुक' हैं।
सदन में बिल को चर्चा के लिए पेश करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि बिल का उद्देश्य आईआईएम में सरकार के हस्तक्षेप को दूर करना है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून आईआईएम में स्वतंत्रता के एक नए युग का सूत्रपात करेगा और इन संस्थानों को विभिन्न अनुमतियों और मंजूरी के लिए सरकार में आने की आवश्यकता नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक बिल है जो देश में प्रबंधन शिक्षा में एक नया युग लाएगा। उन्होंने कहा कि दिल्ली से आईआईएम चलाने के लिए यह एक आदर्श स्थिति नहीं है, इसको ध्यान में रखते हुए उन संस्थानों को स्वायत्तता देने का लक्ष्य रखा गया है, जिन्होंने उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है।
विधेयक पर बहस में भाग लेने के दौरान, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि यह एक असाधारण क्षण है जब मंत्री ने अपनी शक्तियां का आत्मसमर्पण किया। उन्होंने कहा कि सरकार के अन्य मंत्रियों को भी ऐसा करने में जावड़ेकर से प्रेरणा लेनी चाहिए। साथ ही थरूर ने आईआईटी और आईआईएम को वित्तीय सहायता नहीं बढ़ाने के लिए सरकार की आलोचना की, उन्होंने कहा कि वे फंड की कमी के चलते बदहाल हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि आईआईएम में फीस संरचना का निर्धारण करने में सरकार को कुछ सलाह देनी चाहिए क्योंकि उच्च फीस गरीब परिवारों के छात्रों से बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
तृणमूल कांग्रेस के नेता सुगाता राय ने भी सरकार की बिल लाने के लिए प्रशंसा की और कहा कि यह आईआईएम के कामकाज में और सुधार करेगी।
सीपीआई-एम के एम बी राजेश ने भी आईआईएम में उच्च फीस का मुद्दा उठाया और कहा कि इन संस्थानों को पैसे कमाने के लिए स्वायत्तता नहीं दी जानी चाहिए।
बीजेडी के नगेंद्र कुमार प्रधान ने कहा कि आईआईएम 9 लाख से 20 लाख रुपये के बीच फीस लेता है और सीमित संख्या में इन संस्थानों की वजह से छात्रों को निजी एमबीए संस्थानों का चयन करना पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में ऐसे प्रावधान है कि आईआईएम अब अपने छात्रों को डिग्री दे सकेंगे. सोसायटी होने के कारण प्रतिष्ठित आईआईएम वर्तमान में डिग्री देने को अधिकृत नहीं हैं और प्रबंधन में पीजी डिप्लोमा और फेलो प्रोग्राम की डिग्री देते हैं।
हालांकि इन पाठ्यक्रमों को कमश: एमबीए और पीएचडी के बराबर माना जाता है, लेकिन समानता वैश्विक रूप से स्वीकार्य नहीं है, खासकर फेलो प्रोग्राम के लिए विधेयक में संस्थानों को पूर्ण स्वायत्ता दी गयी है, जिसमें पर्याप्त जवाबदेही भी होगी। विधेयक में जिस ढांचे का प्रस्ताव है उसमें इन संस्थानों का प्रबंधन बोर्ड से संचालित होगा, जहां संस्थान के अध्यक्ष और निदेशक बोर्ड द्वारा चुने जायेंगे। बयान में कहा गया है कि बोर्ड में विशेषज्ञों और पूर्ववर्ती विद्यार्थियों की ज्यादा भागीदारी होगी. मंत्री ने कहा कि यह उच्च शिक्षा के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार की दूरदृष्टि को दर्शाता है।