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25 जून 1975 की काली रात नहीं भूल सकते : मोदी
By Deshwani | Publish Date: 25/6/2017 3:13:38 PM
25 जून 1975 की काली रात नहीं भूल सकते : मोदी

 दिल्ली, (हि.स.)। 25 जून आपातकाल की 42 वर्षगांठ को एक बार फिर इसे प्रासंगिकता के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। एक ओर जहां विपक्ष मोदी सरकार पर अभिव्यक्ति आजादी छीनने का आऱोप लगाती रही है वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार इस आपातकाल के काले अध्याय और जेल की कड़वी यादों के लेकर कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल का जिक्र करते हुए मन की बात में कहा, 'लोकतंत्र को प्यार करने वाले 25 जून 1975 की काली रात को नहीं भूल सकते क्यों कि देश उस दिन जेल में था।‘ 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आपातकाल में अटल जी भी जेल में थे, उन्होंने कविता लिखी, 'झुलसाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास, सिसकी भरते सावन का अंतरघट रीत गया, एक बरस बीत गया। आपातकाल के दौरान अखबारों को बेकार कर दिया गया था।' प्रधानमंत्री मोदी 33वें 'मन की बात' कार्यक्रम के अंतर्गत विचार साझा कर रहे हैं।
वहीं इस मसले पर राज्यसभा के सांसद और हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय न्यूज एजेंसी के अध्यक्ष आर.के.सिन्हा ने कहा कि ‘आज से 42 वर्ष पूर्व 25 जून 1975 को देश पर आपातकाल थोपा गया था ।‘
सिन्हा ने कहा, ‘आज से 42 वर्ष पूर्व 25 जून 1975 को अपने राजनीतिक स्वार्थ और अपनी सत्ता को बचाये रखने के लिए विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की हत्या कर देश को अपनी निजी जागीर समझ कर स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया। मैं प्रत्यक्ष भुक्तभोगियों में हूं।‘
जे. पी. आन्दोलन पर मेरी पहली पुस्तक ‘जन आन्दोलन’ की समस्त प्रतियां’ ज़ब्त कर मेरे परिवार के सदस्यों के सामने उसे जला डाला गया। मैं उस समय उपस्थित नहीं था, वरना क्या होता सोचने भर से पीड़ा होती है।
देश के लाखों लोगों ने घोर यातनाएं सहकर लोकतंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिए अपना सब कुछ देश को समर्पित करने वाले भारतीय लोकतंत्र के उन सभी प्रहरियों को मेरा कोटि-कोटि अभिनंदन..!!
दरअसल कांग्रेस मोदी सरकार के शासन काल में अभिव्यक्ति की आजादी छीनने और मीडिया की आवाज दबाने का आरोप लगाती रही है। वहीं किसानों, दलितों पर अत्याचार का आरोप लगाती रही है।
उल्लेखनीय है कि 25 और 26 जून की रात को आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया। अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना कि भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है।

आपातकाल की वजह-सबक
आपातकाल क्यों लगा? क्या इसलिए कि जेपी ने सेना-पुलिस तक से सरकार का आदेश न मानने को कहा था? क्या इसलिए कि बगावत का अंदेशा था? शायद नहीं क्योंकि इमरजेंसी के बहुत बाद एक साक्षात्कार में इंदिरा ने कहा था कि उन्हें लगता था कि भारत को शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत है। लेकिन, इस शॉक ट्रीटमेंट की योजना 25 जून की रैली से छह महीने पहले ही बन चुकी थी। 8 जनवरी 1975 को सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को एक चिट्ठी में आपातकाल की पूरी योजना भेजी थी। चिट्ठी के मुताबिक ये योजना तत्कालीन कानून मंत्री एच आर गोखले, कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ और बांबे कांग्रेस के अध्यक्ष रजनी पटेल के साथ उनकी बैठक में बनी थी।
आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। संजय गांधी और उनकी तिकड़ी से लेकर सुरक्षा बल और नौकरशाही सभी निरंकुश हो चुके थे। एक बार इंदिरा गांधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे लेकिन 19 महीने में उन्हें गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हो गया। 18 जनवरी 1977 को उन्होंने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों ही हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।
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