नई दिल्ली, (हि.स.)। जंतर-मंतर पर अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर भारी संख्या में लोग इकठ्ठा हुए। प्रदर्शन कर रहे लोंगों का कहना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 (ए) के तहत गोरखालैंड की 110 वर्षीय मांग भारत में 1.5 करोड़ गोरखाओं की आकांक्षा का मुख्य एजेंडा है।
भाषा के आधार पर एक बार फिर अलग गोरखालैंड की मांग ने सिर उठाया है। इस बार आंदोलन के हिंसक रुख अख्तियार कर लेने से तीन आंदोलनकारी मारे गए और कई घायल हो गए। जिसके बाद गोरखा जन मुक्तिमोर्चा ने इस आंदोलन के तहत दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि इस समय एकजुट होना बहुत महत्वपूर्ण है । हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हमारा गोरखलैंड।
गोरखा युवा और भारतीय छात्र संघ के संस्थापक राजन सुबेदी का कहना है कि हमारी यह मांग 100 साल से भी अधिक पुरानी है। लेकिन, इस बार पहाड़ के लोग अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। यह लड़ाई बिना गोरखालैंड लिए खत्म नहीं होने वाली। वी वांट गोरखालैंड ...गोरखालैंड-गोरखालैंड का नारा लगाते यह लोग अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। इनका कहना है कि हम सरहदों की रक्षा करते हैं और सरकार यहां पुलिस भेजकर गुंडागर्दी करा रही है| हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। आप हमें गोरखालैंड दिलाने मे मदद कीजिए।
छह साल पहले भी इसी तरह आंदोलन के हिंसक रुख ले लेने के बाद पुलिस की गोली से तीन आंदोलनकारी मारे गए थे। हालांकि अदालत इस आंदोलन को गैरकानूनी करार दे चुकी है, पर गोरखा जन मुक्तिमोर्चा के नेता अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। जाहिर है कि इस आंदोलन का कोई व्यावहारिक नतीजा नहीं निकलने वाला। अलबत्ता इसके चलते वहां का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और पर्यटकों के आने के इस मौसम में स्थानीय लोगों के रोजी-रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका पैदा हो गई है।
प्रदर्शन को संबोधित करते हुए वक्ता ने कहा कि हम बहुत अच्छी तरह समझते हैं कि प्राशासन हमारे बीच दरार डालने की कोशिश क्यों कर रहा है। हमें यह दिखाने के लिए सम्मिलित होना होगा कि कोई भी गोरखाओं को विभाजित नहीं कर सकता है| हम एकजुट हैं|