मुजफ्फरपुर | दीनदयाल उपाध्याय एक भारतीय विचारक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, सामाजिक चिन्तक, इतिहासकार और पत्रकार थे| उक्त विचार आदर्श बिहार छात्र संघ की महानगर इकाई द्वारा दीनदयाल की 50वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा को मुख्य वक्ता के तौर पर प्रेस पत्रकार परिषद के प्रदेश सचिव डॉ. ध्रुव कुमार सिंह ने व्यक्त किया |
डॉ. सिंह ने कहा कि दीनदयाल जी ने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत द्वारा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी लोकतंत्र की आँख बंद कर समर्थन का विरोध किया था, यद्यपि उन्होंने लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार कर लिया, लेकिन पश्चिमी कुलीनतंत्र, शोषण और पूंजीवादी मानने से साफ इंकार कर दिया था | इन्होंने अपना जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और जनता की बातों को आगे रखने में लगा दिया था | लोकतंत्र भारत का जन्मसिद्ध अधिकार है न की पश्चिम (अंग्रेजों) का एक उपहार | उनका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना प्रशासन का कर्तव्य होना चाहिए, लोकतंत्र में अपनी सीमाओं से परे नहीं जाना चाहिए और जनता की राय उनके विश्वास और धर्म के आलोक में सुनिश्चित करना चाहिए |
श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए महानगर अध्यक्ष डॉ. नीरज कुमार नें कहा कि दीनदयाल उपाध्याय के अन्दर की पत्रकारिता तब प्रकट हुई जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया | अपने आर.एस.एस. के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया था | उन्होंने नाटक ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ और हिन्दी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी थी | उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया | उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य’, ‘अखंड भारत क्यों हैं’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ आदि हैं |
कार्यक्रम का संचालन महानगर महामंत्री कृष्णचन्द्र कुमार ने किया | इस अवसर पर विचार व्यक्त करने वालों में अरविन्द कुमार सिंह, कुमार अमित, सुबीर सिंह, विजय प्रकाश, मलख कुमार, आनंद राज और फिरोज अहमद मुख्य रूप से शामिल थे |