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विश्व के कई देशों में लोकप्रिय हुई मौदहा में बनी चांदी की मछली
By Deshwani | Publish Date: 20/8/2017 4:02:43 PM
विश्व के कई देशों में लोकप्रिय हुई मौदहा में बनी चांदी की मछली

हमीरपुर, (हि.स.)। हिन्दुस्तान ही नहीं अब विदेशों में भी मौदहा की बनी चांदी की मछली लोकप्रिय है। चांदी की मछली का आविष्कार करीब 150 बरस पहले मौदहा कस्बे के एक स्वर्णकार ने किया था। वर्ष 1981 में उ.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस स्वर्णकार को सम्मानित किया था। महारानी विक्टोरिया ने भी चांदी की बेहतरीन मछली बनाने पर स्वर्णकार को तांबे का मेडल देकर सम्मानित किया था।
कैसे शुरू हुआ चांदी की मछली का उद्योग
चांदी की मछली का आविष्कार करीब 150 बरस पूर्व हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में जागेश्वर प्रसाद सोनी ने किया था। बताते हैं कि इतिहासकार अब्दुल फजल ने आइने अरुबरी में लिखा था कि यहां के लोगों में ईश्वरी साधन उपलब्ध है। उसने चांदी की मछली का भी उल्लेख किया था। यूपी में सिर्फ मौदहा कस्बे में एक ही स्वर्णकार परिवार के पास मछली बनाने की कला है। यहां की चांदी की मछली देश और विदेशों में भी लोकप्रिय हो गयी है। खाड़ी देशों में भी यहां चांदी से बनी मछलियों ने धूम मचायी है। 
 
लोग क्यों खरीदते हैं चांदी की मछली
मछली को लोग शुभ मानते हैं इसलिये इसे घरों के ड्राइंग रूम में सजाकर घर की शोभा बढ़ाते हैं। वीआईपी लोगों में भी इसकी डिमांड होती है। देश के अन्य स्थानों में नाना प्रकार की कला कृतियां विख्यात हैं लेकिन चांदी की निर्मित मछली आज देश भर में विख्यात हो गई है। विश्व विख्यात चांदी की मछली का निर्माण मौदहा तहसील मुख्यालय में उपरौंस मुहाल में हो रहा है। युगल काल में इस कला के प्रति लगाव जगजाहिर है। यहां के प्राचीन भवनों व दरवाजों तथा बर्तनों में खुदी कलाकृतियां इसकी गवाह हैं। परम्परा में आस्था व विश्वास के आधार पर खास दिवसों व पर्वों पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है। प्राचीन काल में व्यापारी भी भोर के समय सबसे पहले मछली देखना पसंद करते थे। इसका उल्लेख भी तमाम पुस्तकों तक में आया है। 
अब नाती-पौत्र बनाते है चांदी की मछली
जागेश्वर प्रसाद सोनी के निधन के बाद अब उनके नाती और पौत्र राजेन्द्र सोनी, ओमप्रकाश सोनी व रामप्रकाश सोनी चांदी की मछली बनाते हैं। यूपी व अन्य किसी भी राज्य में चांदी की मछली बनाने का काम नहीं होता है। मगर हमीरपुर में यह कलाकृति बड़े उद्योग की शक्ल ले चुका है। बताते चलें कि चांदी की मछली इतनी आकर्षक होती है कि हर कोई इसे लेकर बड़े लोगों को गिफ्ट देते हैं। प्रदेश के कई अफसरों को यहां की चांदी की मछलियां देकर सम्मानित किया जा चुका है। स्वर्णकारों का कहना है कि महंगाई के इस दौर में अब चांदी की बनी मछलियां घरों की शोभा बढ़ाने के लिये सिर्फ बड़े लोग ही खरीदते हैं। और तो और यहां की बनी चांदी की मछली छत्तीसगढ़, एमपी व खाड़ी देशों में भी बेची गयी है। बाहर के लोग हाथों हाथ इसे खरीदते हैं। 
पानी में डालने पर तैरती है चांदी की मछली
स्वर्णकार राजेन्द्र सोनी का कहना है कि जैसे पानी के बाहर मछली शरीर को लोच देती है ठीक वैसे ही इस मछली में भी लोच देखी जा सकती है। जल में डालने पर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चांदी की मछली तैर रही हो। स्वर्णकार ने बताया कि सबसे पहले मछली की पूंछ बनायी जाती है। फिर पत्ती काट छल्लेदार टुकड़े होते है। जीरा कटान पत्ती को छल्लेदार टुकड़े बनाते हुए कसा जाता है। इसके बाद सिर, मुंह, पंख व अंत में इसमें लाल नग लगा दिया जाता है। चांदी की मछली बनाने में कई घंटे का समय लगता है मगर सरकारी तौर पर कोई मदद न मिलने से अब यह कला दम तोड़ रही है। स्वर्णकार का कहना है कि चांदी की मछली की डिमाण्ड सिर्फ हमीरपुर जिले में कभी कभार आने वाले वीआईपी लोगों के आने पर होती है। इसके बाद कोई चांदी की मछली के बारे में पूछने नहीं आता है। दीपावली पर्व पर चांदी की छोटी मछलियों की डिमाण्ड बढ़ जाती है। 
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