खुल रही पोल: हकीकत में कम कागज पर ही सरपट दौड़ रही सरकारी राहत की गाड़ी, खतरे में जिंदगानी
- बाढ़ प्रभावितों की गुहार- कुछ कीजिए हुजूर, भूख व प्यास से निकली जा रही जान
- कई गांव अब भी टापू में तब्दील, सरकारी राहत के लिए लगाए हैं टकटकी
- बाढ़ का गंदा पानी छानकर हलक कर रहे तर
- पशुओं का भी बुरा हाल, चारे के अभाव में इनकी भी जान खतरे में
मोतिहारी। सचिन कुमार सिंह
जिला प्रशासन भले ही जोर-शोर से बाढ़ राहत कार्य चलाए जाने का दावा कर लें, मगर हकीकत की धरातल पर इस दावे की धज्जियां बिखेरती नजर आ रही है। हालत यह है कि कई जगह कागज पर ही कम्युनिटी किचेन चल रहे हैं, तो कई जगहों पर जिनके जिम्मे यह कार्य है वे ही सिरे से नदारद नजर आ रहे हैं। कहने को तो गुरुवार को सूबे के मुखिया नीतीश कुमार भी यहां पहुंचे, सुगौली में घूमे, अधिकारियों को निर्देश दिया और निकल िलए, मगर उनकी नजर उन गांवों की तरफ नहीं गई जो पिछले दस दिनों से टापू बने हुए हैं। गांव वाले मजूबरी में पानी के बीच शरण लिए हुए हैं, तो कुछ नजदीक के बांध पर। सड़क संपर्क भंग है, और राहत के एक कतरे में आंखें बरबस हर आगंतुक की ओर लगी रह रही हैं। कई दिनों से पेट में अन्न का दाना नहीं गया। पानी नहीं मिल रहा तो बाढ़ का पानी छानकर पी रहे हैं। स्थिति बद से बदतर, मगर...।
सांसद ने ही खोली राहत कार्यों की पोल
राहत कार्यों में किस तरह कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं, इसकी पोल बेतिया सांसद डा.संजय जायसवाल ने अपने फेसबुक पर खोली है, उनके अनुसार- सामूहिक किचेन की लिस्ट में जब यह देखा कि बंजरिया में 57 जगह खाना बन रहा है, तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, जब क्षेत्र में निकला तो कागज पर राेहनिया पंचायत में पांच जगहों पर खाना बन रहा था, जबकि हकीकत पर ऐसा कहीं नहीं दिखा। खैरी में दो दिन पहले ही बंद हो गया था, अगरवा िहंदी स्कूल में आज से शुरू हुआ था। इस पर डीएम से वार्ता हुई और अब कार्रवाई जरूर होगी। एक तरफ समाज हर तरह का सहयोग कर रहा है, वहीं बहुत सोर अपने ही अपनों को लूट रहे हैं, बहरहाल यह तो एक प्रखंड की बानगी है, अन्य प्रखंडों का हाल भी इससे बेहतर नहीं।
समाजसेवियों का प्रयास भी नाकाफी
वैसे तो समाजसेवियों व राजनीतिक दलों के लोगों द्वारा भी राहत कार्य चलाए जा रहे हैं, मगर बाढ़ प्रभावित इतनी बड़ी आबादी के लिए सीमित संसाधनों के बीच उनका प्रयास नाकाफी साबित हो रहा है। हालत यह है कि अब आमजनता का आक्रोश भड़कने लगा है। लोगों में किस कदर व्याकुलता है, इसे समाजसेवी संजय कुमार उर्फ अवतार सर की जुबानी समझा जा सकता है- हम सभी जब भी बाढ़ पीड़ितों के बीच बाढ़ राहत सामाग्री लेकर जा रहे हैं , वो लोग राहत सामग्री के लिए मरने- मारने पर उतारू हो जा रहे हैं। काफी भयावह दृश्य उपस्थित हो जा रहा है। आपको सिर्फ वहाँ रुकने की देर भर है, सामग्री खत्म होने में देर नहीं लग रही। ऐसे में परेशानी हो रही है, मगर हम भी मानने वाले नहीं। अब हमारी अगली ट्रिप सुंदरपुर के साथ मोतिहारी प्रखण्ड के मछहां, सरेया एवं वरदाहां है, जो काफी खराब स्थिति में हैं। बिना नाव के हम वहाँ नहीं पहुँच सकते , सो शनिवार को हमलोग पूरी तैयारी के साथ वहाँ जा रहे हैं। हमलोग के साथ होंगे जुबैर सर, अनिकेत पांडेय व रोज राज सर। इधर समाजसेवी संदीप चौबे ने बताया कि बांध पर रह रहे बाढ़ पीिड़तों का हाल काफी बदतर है, भोजन के अभाव में लोग निढाल होकर सड़क पर ही चटाई िबछाकर सोए रह रहे हैं। हर आहट पर उनकी आंखों में उम्मीद की जरूरत जगमगाती है, मगर यह जानकर कि वे राहत कर्मी नहीं हैं, वे मायूस हो जाते हैं। इस बीच एक बूढ़ी औरत पेट की आग से बेबस याचक की भूमिका में नजर आई और उनसे पचास रुपये मांग बैठी, ताकि कहीं से कुछ खाने का इंतजाम हो सके।
इन गांवों के लोगों का तो और भी बुरा हाल
आइए मोतिहारी प्रखंड की राम सिंह छतौनी पंचायत के कुछ गांवों की ओर ले चलते हैं। इस पंचायत के पटपरिया, बसतपुर आदि गांवों में हालात काफी सुधर गए हैं, मगर गजपूरा, हसुआहां, महंगुआ, रामसिंह छतौनी गांव अभी भी जिला मुख्यालय से कटे हुए हैं। गांव टापू में तब्दील हैं और अभी भी घरों में पानी का बसेरा है। गजपूरा गांव में जैसे-तैसे घुसने पर द्वारिका सहनी, धीरेन्द्र सहनी व प्रभु सहनी घेर लेते हैं, उनको लगता है कि हम भी कोई सरकारी मुलाजिम हैं, मगर वस्तुस्थति से अवगत होने पर वे थोड़े निराश हुए, मगर परिचय जानने पर कहने लगे बहुत बुरा हाल है, न खाने को अनाज न पीने को पानी। मजबूरी में बाढ़ का पानी छानकर किसी तरह हलक तर कर रहे हैं। कुछ लोग बाढ़ के पानी से घिरे चापाकल से पानी लेकर आ रहे हैं, वह भी पीने को सुरक्षित नहीं। इसी के समीप सिकरहना बांध पर शरण लिए हसुआहा निवासी श्रीभगवान मुखिया, दुर्गा मुखिया ने बताया कि सबसे बुरी हालत में तो मवेशी हैं, पशु चारा का अभाव है। कुछ करना है तो कहीं से चारा का इंतजाम करवाइए। आखिर ऐसा कब तक चलेगा? उनके इस सवाल का जवाब तो मेरे पास भी नहीं था। हमारी बात पैक्स अध्यक्ष अशोक पाठक से होती है, उनका कहना है कि कई गांवों में काफी बुरा हाल है, सरकारी मदद नदारद है। लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है, हालांकि पंचायत के लोगों ने दो दिन पूर्व अंचल पर प्रदर्शन भी किया था मगर कोई फायदा नहीं हुआ है। इधर इसी पंचायत के महंगुआ गांव में राहत सामग्री वितरित कर लौटे आप के प्रखंड कोआर्डिनेटर कृष्ण कुमार सिंह उर्फ वकील सिंह ने कहा कि बाढ़ में बहुतों का घर गिर गया है। लोग सड़क पर रात गुजार रहे हैं, सरकारी व्यवस्था नदारद है। पानी के सड़ने से इसकी दुर्गंध से महामारी की आशंका है। गांवों में ब्लिचिंग पावडर का छिड़काव जरूरी है। अंचलाधिकारी को इस बाबत दो दिन पूर्व ही आवेदन दिया गया है, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई है अब तक। राहत सामग्री वितरण कार्य में सोनू कुमार, सुरेन्द्र सहनी, अनिल कुमार, राजकुमार सिंह, लालबाबू चौधरी, रामचंद्र सहनी लगे थे।
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुल 323 सामुदायिक किचेन चल रहे हैं, जहां खाने वालों की संख्या 1,75, 899 है। बता दें बाढ़ से करीब 22 लाख लोग प्रभावित हैं। करीब दो लाख पशुओं को भी बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ रही है। ऐसे में सरकारी आंकड़े भी आधे-अधूरे राहत कार्यों की बानगी पेश कर रहे हैं। बहरहाल, बाढ़ पीिड़त अभी भी राम भरोसे दिन काट रहे हैं।