- बाढ़ की मार झेल रहे लोगों की हालत अभी भी काफी बदतर, सता रही पेट भरने की चिंता
- इंसान ही नहीं मवेशियों को भी झेलना पड़ रहा आफत, बढ़ रहा महामारी का खतरा
मोतिहारी। सचिन कुमार सिंह
कमबख्त यह पेट की आग काफी बेरहम होती है, अच्छों-अच्छों को याचक की भूमिका में लाकर खड़ा कर देती है। क्या बड़ा, क्या छोटा इस प्रलंयकारी बाढ़ ने सबको एक सा तबाह कर रखा है। धनी-गरीब का फर्क मिट गया है। घर-द्वार, अनाज-पैसा, कपडे़-लत्ते सब छूट गए, या यूं कहे सबका मोह छोड़कर भागना पड़ा। संतोष बस इस बात का की जान बच जाए पहले, यह बला टल जाये, फिर शुरू कर देंगे अपनी िजंदगी को नए सिरे से संवारने की जद्दोजहद। बड़े-बड़े आलीशान भवन बीच पानी में खाली पड़े हैं। बहुतों की झोपड़ियों व छोटे-छोटे घर पानी लील गया और न जाने कब तक लीलता रहेगा। कइयों की जान चली गई, मगर सवाल यह कि जो िजंदा बच गए हैं उनमें से कइयों को यह भूख न मार दे। आज िस्थति यह है िक बंधे या िकसी उंचे जगह पर पालीथिन तान कर रह रहे लोगों को अभी बस अपने आैर अपने परिजनों के िलए भोजन की िचंता ही सता रही है। यह बात नहीं है कि िजले में राहत कार्य नहीं चल रहे। िजला प्रशासन के अलावा स्वयंसेवियों में भी मदद की होड़ लगी है, मगर बाढ़ की विभीिषका व पीिड़तों की संख्या के सामने ये प्रयास नाकाफी सािबत हो रहे हैं। हेलीकॉप्टर से भी राहत पैकेट िगराए जा रहे हैं। िस्थति यह है िक भूख से बिलबिलाते लोग आसमान की ओर या फिर दूर से दिखाई दे रही नाव की ओर टकटकी लगाए हैं, ताकि कहीं से एक वक्त का भोजन तो नसीब हो जाय। और हां, पानी की बात तो भूल ही गया। बाढ़ के पानी व पीने के पानी में बहुत फर्क है। चारों तरफ पानी ही पानी तो है, मगर उससे प्यास नहीं बुझाई जा सकती। ऐसे में भोजन के साथ पानी की भी दरकार है, मगर राहतकर्मियों द्वारा जो प्रयास िकए जा रहे हैं, वे इस स्तर पर भी नाकाफी हैं। ऐसे में हलक तर करने के लिए लोग बाढ़ का गंदा पीने को विवश हो तो अचरज की बात नहीं है। हैरत की बात है कि सरकार हर साल बरसात पूर्व बाढ़ से निपटने की तैयारियों पर बैठक पर बैठक करती है, बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, मगर इन दावों की हकीकत...।
इंसान ही नहीं मवेिशयों को भी झेलना पड़ रहा आफत
इंसान तो इंसान बेजुबान मवेशियों को भी बाढ़ की क्रूरता का शिकार होना पड़ रहा है। पानी के कारण हरे चारे की संभावना खत्म हो गई है। ऐसे में वे मवेशी पालक बाढ़ पीिड़त िजनके खुद खाने के लाले पड़े हुए हैं, वे मवेशियों को क्या खिलाए क्या िपलाए। अभी सरकार की तरफ से मवेशी चारा के इंतजाम की व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसे में बाढ़ के पानी से बचे-खुचे मवेशी अब भूख से मर रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में बाढ़ ग्रस्त इलाकों में मवेशियों की संख्या एकाएक काफी कम हो जाय तो अचरज नहीं हो।
बढ़ रहा महामारी का खतरा
बाढ़ की आफत एक साथ कई और विपदा भी साथ लाती है। अब बाढ़ ग्रस्त इलाके के लोगों को महामारी का खतरा सताने लगा है। जितने पैमाने पर जन हानि व मवेशियों की मौत हुई है। उससे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले िदनों में कई तरह की बीमारियां सर उठाएंगी। प्रशासन की तरफ से भी महामारी के संभावित खतरे को देखते हुए एहतियान कदम उठाए जा रहे हैं, मगर इसे धरातल पर उतारने में जो वक्त लगता है। इस बीच अगर महामारी ने विकराल रूप ले लिया तब क्या होगा। मेरा मकसद किसी को डराना नहीं है, बस वस्तु स्थिति से अवगत कराना है। चाहत बस यहीं है कि प्रशासन इसके लिए अभी से पहल शुरू कर दे, ताकि बीमारी महामारी का रूप ले लोगों को लीलने की कोिशश नहीं कर सके। वैसे इस दिशा में समाजसेवियों द्वारा पहल शुरू कर दी गई है। मधुबन में िबहार सरकार के सहकारिता मंत्री राणा रणधीर की पहल व राष्ट्रीय युवा कल्याण माेर्चा के संस्थापक राणा रणजीत द्वारा जगह-जगह शिविर लगा लोगों की स्वास्थ्य जांच की जा रही है, और दवा का वितरण किया जा रहा है, साथ ही साथ लोगों को इस हालात से क्या-क्या एहतियात बरतने चािहए, इसकी जानकारी दी जा रही है। मगर ऐसे प्रयासों का दायरा और बढ़ाने की जरूरत है।
सांप व अन्य जंगली जानवरों का भी डर
बाढ़ के पानी में बहकर आए जंगली जानवरों व जहरीले सांप के कारण बाढ़ पीड़ित रतजगा करने को विवश हो रहे हैं। लेकिन हर समय सर्पदंश व जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना हुआ है। इससे निपटने के िलए प्रशासनिक स्तर पर विशेष पहल की जरूरत महसूस की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग को हर स्वास्थ्य केंद्र व अस्पतालों में एंटी स्नैक सेरम की पर्याप्त व्यवस्था करने की जरूरत है। क्योंकि सांपकटी की घटनाएं भी सुनने में आ रही हैं।
स्वयंसेवियों में लगी मदद की होड़
बाढ़ की आपदा से जूझ रहे लोगों को भाेजन-पानी की व्यवस्था कराने के लिए कई समाजसेवी संगठन व खुद के स्तर पर भी लोग आगे आए हैं। कई बिजनेसमैन, शिक्षक, चिकित्सकों व राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा राहत पैकेट बंटवाए जा रहे हैं। इधर केंद्रीय कृषि सह किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह भी पिछले कई दिनों से यहां कैंप कर जगह-जगह घूम बाढ़ पीड़ितों की हालात का जायजा ले रहे हैं। हर क्षेत्र में प्वाइंट बनाकर भोजन तैयार कराकर बाढ़ पीड़ितों को भेजा जा रहा है। हालांकि इन सारे प्रयासों के बीच अभी भी बाढ़ पीिड़तों को भय, भूख व बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। हालात वाकई काफी बदतर हैं, ऐसे में बाढ़ पीिड़त अभी भी भगवान भरोसे हैं।