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क्या मोतिहारी में बच्चों का अपराध की तरफ बढ़ा है रुझान? दोषी कौन, पुलिस या आप ? दीजिए अपनी राय
By Deshwani | Publish Date: 24/7/2017 8:41:52 PM
क्या मोतिहारी में बच्चों का अपराध की तरफ बढ़ा है रुझान? दोषी कौन, पुलिस या आप ? दीजिए अपनी  राय

फाइल फोटो।

मोतिहारी। विनय कुमार परिहार।


हाल के दिनों में हमारे जिले के बच्चे व किशोरवय को अपराध की दुनिया का चस्का बढ़ा है। वर्ष 17 के जुलाई महीने में अापराधिक घटनाओं में बेतहाशा इजाफ हुआ। पुलिस की बेहद किरकिरी भी हुई। जब यह बात पूरे सूबे में गूंजी तो पुलिस बौखला सी गयी। दिन-रात एक कर डेढ़ दर्जन से अधिक अपराधियों को सलाखों के पीछे कर दिया। देखा गया गया कि इन संगठित गिरोहों में मुख्य भूमिका में अल्पवय के बच्चे हैं। ज्यादातर मामले में बाल-बंदी ग‍ृह के बच्चों की संलिप्तता पाई गयी। मंथन का विषय है कि हमारे बच्चों में अाखिर अपराध के प्रति ग्लैमर क्यों और कैसे पैदा हुआ। यह भी कि अपराध व अपराधी बनने के लिए सिर्फ पुलिस ही जिम्मेदवार है? या कहीं न कहीं अभिभावक भी? कौन लेगा जिम्मेवारी। या यह कहकर हम अपना पल्ला झाड़ ले कि वैसे बच्चे जन्मजात होते हैं। समाज को इस विषय पर संगोष्ठी करनी चाहिए कि चूक कहां हो रही है। अखिर हमारे बच्चे अपराध को फैंट्सी की तरह क्यों देख रहें हैं। हम क्यों नहीं देख रहे हैं कि हमारे बच्चों के दोस्त उसे घर पर मिलने आ रहे हैं। तो बड़ी-बड़ी व महंगी गाड़ियों से क्यों आ रहे है‍? पढ़नेवाले बच्चों को बड़े-बड़े स्मार्ट फोन की दरकार क्यों पड़ रही है? अध्ययनरत छात्रों को इतने साथी- संघाती की जरूरत क्या है?

चर्चा करें या इसे इग्नोर करें? 
हमारी सोंच आशावादी होनी चाहिए। मैं इस पर क्यों चर्चा करूं कि इनदिनों बच्चें अपराध की तरफ मुड़ रहे हैं। चम्पारण में जितने किशोरों व युवाओं की संख्या है। उसमें उनका प्रतिशत कितना है? जिनका रुझान आजकल अपराध की तरफ हो रहा है। उनसे ज्यादा यहां के बच्चे देश-दुनिया की प्रतियोगी परीक्षाओं में बाजी भी तो मार रहे हैं। अगर कुछेक बच्चे लफंगे की तरह भीड़-भाड़ वाली मुख्य सड़कों पर स्पोर्ट्स बाइक से स्टंट कर रहे हैं तो उनसे ज्यादा की संख्या में अन्य छात्र इस ग्लैमर की दुनिया से जुदा गांधी मैदान, एमस कॉलेज, जिला स्कूल व एसएनएस के मैदान में कंपिटिटीव परीक्षाओं की तैयारी के लिए ग्रुप डिस्कशन भी तो कर रहे हैं। जिले से यूपीएससी में कम्पीट करने वाले युवाओं की संख्या में प्रति वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है। हमारे युवा विदेशों में अपने फन का डंका बजा रहे हैं। बैंक में पीओ बन रहे हैं। रेलवे में बतौर एएसएम ज्वाइन कर रहे हैं। अखिल भारत में चम्पारण की पौध बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रहे हैं। इनकी गिनती उन अपराधी प्रवृति के बच्चों से कहीं ज्यादा है। भारत भर के बैकों में मोतिहारी के पीओ मिल जाएंगे। देशभर के स्टेशनों पर यहां के एएसएम,टीटीइ व गार्ड मिल जाएगें। अगर हम आशावादी हैं। हमारी सोच सकारात्मक है। तो बेशक हमें उनकी ही चर्चा करनी चाहिए जो समाज में अव्वल है। जो समाज का विनिर्माण कर रहे हैं।
 
एक-दो उदाहरण जरूरी है-
1. पढ़नेवाले बच्चों को अभिभावक खरीद रहें महंगी बाइक
मैं एक दिन जगत बजाज एजेंसी में गया था। एक हमारे दोस्त चांदमारी गुमटी पास निवास करनेवाले संगीत टीचर प्रदीप वर्मा की गाड़ी खरीदवानी थी। वहां पर हमारे एक सीनियर मित्र भी मिल गयें। सपत्नीक पहुंचे थे। यहां उनके नाम का जिक्र करना उचित नहीं लग रहा। मैंने उनसे पूछा- अपको भी गाड़ी खरीदनी है। बोले- हां। पूछा-कौन सी गाड़ी़? बताया- पल्सर। मैंने आश्चर्य से पूछा- इस उम्र में आपको पल्सर फबेगी? जवाब दिया- नहीं बेटे के लिए। फिर मुझे घोर आश्चर्य हुआ। उत्सुकता से पूछा- आपका बच्चा तो इतना बड़ा नहीं हुआ हाेगा कि वह ठेकेदारी करने लगा। तो उन्होंने हंसते हुए कहा- नहीं अभी तो वह मैट्रिक की परीक्षा देगा। मैंने पूछा- तो पढ़नेवाले बच्चे को पल्सर की जरूरत कहां से आ पड़ी। तो उन्होंने बडे इत्मीनान से कहा कि बच्चे ने कहा है कि वह बाइक चलाएगा नहीं। गाड़ी बरामदे में खड़ी रहेगी तो उसे गाड़ी देखते हुए पढ़ने में बेहद मन लगेगा। मैंने सोचा कि भगवान उस बच्चे का भला करे।
 
  2. अपने बच्चों के दोस्तों से पूछिए सवाल
 हमारे बेलबनवा स्थित निवास पर एक दिन हमारे भतीजे से मिलने उसका दोस्त महंगी बाइक से आया था। उसके हाथ में दो-दो कीमती स्मार्ट फोन थें। मैंने उस बच्चे से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि तुम पढ़ते हो कि ठेकेदारी करते हो। उसने शर्माते हुए कहा- नहीं अंकल। तब मैंने फिर पूछा- तो तुम पढ़ते हो? जवाब मिला- हां। तो मैंने चिढ़कर कहा कि जब पढ़ते हो तो तुम्हें महंगी बाइक व मोबाइल की आवश्यकता क्यों पड़ गयी। फिर उस दिन के बाद वह बच्चा मेरे घर आया ही नहीं। उनदिनों मेरा भतीजा हाई स्कूल में पढ़ता था। मेरा भतीजा फिलवक्त एयरफोर्स में इंजीनियर है। लेकिन मुझे अफसोस है कि उस बच्चे को आज भी मैं सड़क पर बाइक से बेमतलब स्टंट करते हुए अक्सर देखता हूं।
 
3. गांव समाज में अपराधियों के दुुस्साहस का बखान क्यों
हाल ही में मैं चम्पारण में गुरहेनवा के गोरेगांवा गांव में गया था। वहां पर कुछ बुजुर्ग लोग उनकी ही जाति व समाज से आने वाले कुछ अपराधियों की शान में कशीदे काढ़ रहे थे। मुझे यह बात अजीब लगी। मैं सोच रहा था कि इतिहास गवाह है कि हमारे जिले में जिस-जिस जाति के दबंग या अपरधी प्रवृति के लोग हुए हैं, वे अपनी जाति के लिए हानिकारक हुए हैं। मुझसे रहा न गया। मैंने तपाक से कहा- हाल ही में आपकी जाति में एक-दो होनहार युवकों ने यूपीएससी कम्पीट किए हैं। आप उसकी चर्चा क्यों नहीं कर रहे हैं‍? जब आप अपने बच्चों के समक्ष दबंगों की शान बधारेंगे तो उनमें वैसे ही बनने की ललक पैदा होगी। बच्चों के मन-मस्तिष्क कोरे कागज की तरह है। हम अपने समाज में जैसी बातें करेंगे। उनके अत: मन में वैसी ही बातें संग्रहित होंगी। निसंकोच वे वैसा एक्ट करना चाहेंगे। उन्हें यह लगेगा कि दबंगई सराहनीय बात है। तभी तो उनकी किस्से कारनामें बधारे जा रहे हैं। हमें भी दबंग बनाना चाहिए। हमने कहीं पढ़ा है कि हम जैसा सोचते है। वैसा ही करते है। फिर वैसा ही बन जाते हैं। मैंने उन लोगों को बताया कि आप इतिहास खंगाल कर देखें। दबंग या अपराधी चाहे राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, सहनी, पासवान, साह, पटेल या यादव रहे हों। जब-जब इन जातियों में लोग दबंग या अपराध के क्षेत्र में कुख्यात रहे हों, तब-तब उस जाति व समाज के लोग मुख्याधारा से विपथ हुए हैं, बदनाम हुए हैं। अपने सगे-संबंधियों, पट्टी-पट्टीदार व गांव-जवार के लोगों के कॅरियर को अंधकार में ढकेलने का कुकृत किए हैं। उस दबंग या अपराधी की जाति के अन्य बहुतेरे युवा अपराध की दुनिया में दाखिल हुए हैं। जहां तक खुशफहमी है कि हमारी जाति के लोग दबंग हैं। यह हमारी शान है। तो यह भी भ्रम है। इन अपराधियों ने अपनी जाति के लोगों का शोषण दोहन व यहां तक की हत्याएं भी की हैं। आप कोर्ट कचहरी में जाकर इस बात की तसल्ली कर सकते हैं। कचहरी में ज्याद केस लोग दूसरी जाति से लड़ रहे हैं या अपनी जाति से? बहुओं को सास से, चाचा को भतीजे से भाई को पट्टीदार से। यहां तक कि बाप को बेटे से कोर्ट में मामले ज्यादा चल रहे हैं।

इस विषय पर मैंने मनोविज्ञान के विशेषज्ञों की राय ली-
मैंने मनोविज्ञान के प्रोफेसर राजेश्वर कुमार सिंह से इस विषय पर उनकी राय पूछी। प्रो सिंह ने बताया कि हमारे बच्चे अपने अभिभवकों को बहुत बारीकी से अध्ययन करते हैं। उनका अनुसरण करते हैं। बच्चों को अनुशासित करने से पहले हमें खुद अनुशासित होना पड़ेगा। हम अपनी दिनचर्या में क्या-क्या एक्ट कर रहे हैं। उसे हमारे बच्चे बड़ी सूक्ष्मता से अपने अवचेतन मन में ग्रैप्स करते हैं। हम गाली के मुंह से बात कर रहे हो या शालिनता से सब वह अपने अत: मन मेें संग्रहित कर रहा है। जब हम घर में रहकर बोलते हैं कि आगंतुक को कह दो कि मैं घर पर नहीं हूं तो उसी समय झूठ बोलना सीख जाता है। जब आप अपनी पत्नी से यह बताते हैं कि मैने फलां-फलां को अपनी शातिर बुद्धि से उनका उपाय किया। तो आपका बच्चा भी यह सीख रहा है। प्रो सिंह ने बताया कि अपने घर का माहौल बहुत ही खुशनुमा होना चाहिए। घर में पति-पत्नी को आपस में खीच-खीच से बचना चाहिए। अपने बच्चों काे दोस्त की तरह रखिए। उनसे फिल्मों की भी बात करिए। बच्चों को कभी यह न बोलें कि आपका बच्चा अभागा है। यह कभी नहीं संभलेगा। यह अभागा व गदहा है। आदि-आदि। वैसा कहेंगे तो उसका अस्तीत्व ही मान लेगा कि सचमुच वह अभागा है। क्योंकि बालपन का मन काफी कोमल होता है। जैसी बाते करेंगे वह अपने काे वैसा ही समझने लगेगा। जब आप अपने बच्चोें को घर में प्यार नहीं देंगे। उसका निरादर करेंगे तो वह बाहर में चौक-चौराहों पर दोस्तों के बीच प्यार ढूढ़ेगा। यहां तक कि घर से किसी न किसी बहाने रुपये उड़ाकर दोस्तों के बीच वाहवाही लूटेगा। प्रो सिंह ने बताया कि ज्यादा अच्छा रहेगा कि आप अपने बच्चों को अपने साथ बाजार हाट भी ले जाए। आप खुद ज्यादा न भी पढ़े- लिखे हो फिर इतना तो कर ही सकते हैं कि चलो पलां पाठ पढ़ के मुझे सुनाओ। चलो यह प्रश्न हल करके दिखाओ।
 
अवकाश प्राप्त जिला जज पेशकार रामबहादुर तिवारी की राय
समाज व समाज के कर्णधारों पर पैनी नजर रखनेवाले मजुराहा कैलाश नगर निवासी रामबहादुर तिवारी(दैनिक जागरण,बेतिया के प्रभारी श्री अनिल तिवारी के पिताजी) से जब मैंने इस विषय पर उनकी राय मांगी। उन्होंने बताया कि बच्चों के प्रारब्ध के लिए उनका जेनेटिक्स जिम्मेदार है। बच्चे अपने आप को किस रास्ते ले जाएंगे यह उनका अानुवांशिक गुण निर्धारित करता है। उन्होंने तर्क दिया कि एक ही परिवार में एक ही माहौल में किसी अभिभावक के चार बच्चे हैं। एक इंजीनियर बन जाता है। दूसरा वकील, तीसरा पत्रकार और चौथा क्यों नालायक बन जाता है? इन चारों को तो एक ही माहौल दिया गया था। कौन गार्जियन चाहता है कि उनका बेटा नालायक हो जाए। उन्होंने तर्क दिया कि अपराधी प्रवृति के बच्चों में इसका लक्षण बचपन से परिलक्षित होने लगता है। ये बच्चे कुत्ते के पिल्लों को उठाकर पटक देते हैं। चींटियों को पैरों से मसलकर मार डालते है। इनमें दया का भाव कतई नहीं होता। वहीं पढ़नेवाले बच्चे और बच्चों से अलग दिखते हैं। कहा भी गया है कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात।
सारांश
मेरा मानना है कि देश के नवनिर्माण में समाज के बड़े-बुजुर्गो की भी जिम्मेदारी बनती है। ऐसे गुमराह हो रहे बच्चों को देखें तो उसे समझाने की कोशिश करें। उसके अभिभवकों को बताएं कि आपके बच्चे की संगति ठीक नहीं है। बच्चे पर विशेष ध्यान दें। अगर आपके पड़ोस का बच्चा बिगड़ेगा तो इसका प्रभाव आप पर भी पड़ेगा। नेक बनेगा तो आपके बच्चे भी उनकी नकल करेंगे। अगर बच्चों में अपराध के प्रति आकर्षण बढ़ेगा तो पुलिस क्या करेगी। प्रत्येक नागरिक के पीछे एक-एक पुलिस तो नहीं लगेगी‍? जब अधिकांश लोग अपराध की तरफ मुखातिब होंगे तो क्या आधी आबादी लायक जेल बनानी पड़ेगी। 
  
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