भाजपा नेता सूर्यप्रताप शाही की गणना तेज-तर्रार नेताओं में होती है। वर्ष 1984 की इन्दिरा लहर में विधानसभा चुनाव जीतकर चर्चा में आने वाले शाही अब तक तीन बार कसया विधानसभा का प्रतिनिधित्व यूपी विधानसभा में कर चुके हैं। पहली बार 1991 में प्रदेश के गृह राज्य मंत्री के रूप में काम करने वाले शाही को वर्ष 1992 में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला था। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में अपनी उपलब्धियों से जनता का प्यार जीतने वाले शाही ने वर्ष 1997 में एक्साइज मंत्री के रूप में भी खूब सुर्खियां बटोरी और शराब माफियाओं की कमर तोड़कर रख दी।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में संगठन की कमान संभाले चुके शाही अब योगी सरकार में कृषि मंत्री हैं। अपनी नई पारी की शुरुआती बैठक से ही वह चर्चाओं में हैं। कर्ज माफी, किसान समस्याओं आदि से जुड़े कई सवालों को लेकर हिन्दुस्थान समाचार की ओर से आमोद कान्त और गोपाल गुप्त से शाही की बातचीत हुई। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
सवाल : उ.प्र. सरकार ने किसानों को ऋणमाफी का तोहफा दिया है, लेकिन विपक्षी नेताओं का आरोप है कि भाजपा ने सभी किसानों का ऋण माफ़ करने को कहा और किया कुछ और...
जवाब : मंगाऊ संकल्प पत्र, हमने ऐसा कभी नहीं कहा। रैलियों में भी नहीं। और न ही संकल्प पत्र में ही। प्रधानमंत्री जी से लेकर हर बड़े नेता ने मंच से यही कहा कि हम फसली ऋण माफ़ करेंगे। रैलियों में भी पहली कैबिनेट बैठक में ऋण माफ़ी की बात कही गई। हमने कर दिखाया। 86 लाख से अधिक किसानों को राहत दिया है।
सवाल : आप ऋण माफ़ी को अपनी उपलब्धि बता रहे हैं, लेकिन रिजर्व बैंक गलत बता रहा है...
जवाब : उत्तर प्रदेश के किसानों की हालत बहुत ख़राब थी। दैवीय आपदाओं ने तो किसानों की कमर तोड़ दी थी। सपा-बसपा की सरकारों ने किसानों की 15 वर्षो तक उपेक्षा की। बुन्देलखण्ड को पानी के संकट से नहीं उबार पाए। नहरों की सफाई नहीं करवा पाये। किसानों पर इतना अधिक कर्ज था कि उन्हें तत्कालिक सहयोग जरुरी था। इसलिये हमने ऋण माफ़ी का निर्णय लिया। वर्ष 2022 तक किसान की आमदनी दोगुनी करने की योजना है। हम कृषि उत्पादों का सही मूल्य देंगे। किसानों की हालत सुधारेंगे। हमने गेहूं की फसल खरीद को 80 लाख एमटी का लक्ष्य निर्धारित किया है। 7 से 8 किमी की दूरी पर 5000 क्रय केंद्र स्थापित कर इसे अंजाम देंगे।
सवाल : बैंक कारपोरेट जगत को हंसकर ऋण देते हैं मगर किसान को कर्ज देने में आनाकानी होती है। कारपोरेट का ऋण माफ़ करने में भी दरियादिली देखी जाती है। यह भेदभाव क्यों?
जवाब : ऐसा नहीं है। हमारी सरकार में किसानों के साथ भेदभाव कभी नहीं हुआ है। एनडीए सरकार ने किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) दिया था। अटल सरकार ने किसानों से ली जा रही 18 प्रतिशत ब्याज दर को कम कर 7 प्रतिशत किया था। यही नहीं, समय से ऋण अदा करने वाले किसानों को महज 4 प्रतिशत ही देने की व्यवस्था की। अब मोदी सरकार ने सभी योजनाओं को बैंक खातों से जोड़ने का काम शुरू किया है। यही वजह है कि पहले ही सभी गरीब किसानों को जनधन योजना से जोड़ा गया।
मैं हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी के माध्यम से यह सबसे अपील कर रहा हूं कि जो जनधन योजना से नहीं जुड़े हैं वे जुड़ें। सरकार की योजनाओं के माध्यम से अपनी प्रगति करें। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों का आर्थिक कवच है। फसल काटने के 15 दिन बाद तक दैवीय आपदा से होने वाले नुकसान की भरपाई की गारंटी है। पिछली सरकारों की भूल को सुधारने का काम अब योगी सरकार कर रही है। ओलावृष्टि और सूखा से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार से मिले धन की हमने समीक्षा शुरू है। झांसी की बैठक में खरीफ की फसल के लिए प्रदेश को दिए गए 397 करोड़ रुपए के भुगतान में तेजी का आदेश दिया है। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। झांसी में समीक्षा बैठक के दौरान दिए गए निर्देश का 24 घंटे में असर दिखा। इतने कम समय में तकरीबन 46 प्रतिशत किसानों के खातों में मुआवजा भेजा गया।
सवाल : बुन्देलखण्ड सूखा से पीड़ित है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। खेतों की सिंचाई और दैवीय आपदाओं से पीड़ित किसान पानी के अभाव में फसल बर्बाद होने से ऐसा कदम उठा रहे हैं। आपकी सरकार क्या कदम उठाने जा रही है?
जवाब : पूर्ववर्ती सपा-बसपा सरकारों ने बुन्देलखण्ड के किसानों को छला है। हमने ’खेत तालाब योजना’ के तहत किसानों के खेतों में तालाब बनाने की योजना पर काम शुरू किया है। सकारात्मक परिणाम सामने आने की संभावना है। इसका 50 प्रतिशत खर्च सरकार वहन कर रही है। इससे जल स्तर ऊपर आयेगा। कम सिंचाई में ही फसल होगी। अब तक 2000 से अधिक खेत तालाब खोदे गए हैं। 1000 खेत तालाब खोदने का काम शुरू करने की योजना है। इसके अलावा किसानों को सोलर पम्प दिए जा रहे हैं। स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई विधियां अपनाई जा रही हैं।
सवाल : यूपी में इण्टरमीडिएट तक महज 3 प्रतिशत छात्र कृषि पढ़ रहे हैं। बावजूद इसके कृषि विश्वविद्यालयों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं। विज्ञान के छात्रों से होने वाली प्रतिस्पर्धा इनके उच्च शिक्षा प्रवेश में बाधक है। क्या कहेंगे?
जवाब : आजादी के बाद यूपी में पहला विश्वविद्यालय पंतनगर में वर्ष 1974-75 में स्थापित हुआ था। वह अब उत्तराखण्ड में है। लेकिन इतने दिनों बाद भी किसी अन्य पार्टी की सरकार ने कृषि विश्वविद्यालय को स्थापित करने की जहमत नहीं उठाई। वर्ष 2000 में मेरठ में भाजपा सरकार ने कृषि विश्वविद्यालय खोला। बीच के 15 साल में केवल एक कृषि विश्वविद्यालय बांदा में खोला गया, लेकिन हालत यह है कि यहां अब तक केवल दो पाठ्यक्रम ही चल सके हैं। हम यह प्रयास करेंगे कि इन विश्वविद्यालयों में स्वीकृत पदों के सापेक्ष भर्तियां पूरी कर ली जाय।
सवाल : रासायनिक खेती के नुकसान सामने आने लगे हैं। ऐसे में कृषि वैज्ञानिक जैविक खेती पर जोर दे रहे हैं। सरकार की क्या योजना है?
जवाब : अभी हमारी सरकार जैविक खेती के लिए 4 से 8 हजार रुपए का अनुदान दे रही है, लेकिन कुछ कठिनाइयां सामने आ रहीं हैं। व्यक्तिगत तौर पर जैविक खेती कठिन है। सरकार क्लस्टर बनाकर इसे करवाने पर विचार कर रही है। कार्य योजना तैयार की जा रही है।
सवाल : कृषि से सम्बन्धित विभागों में समन्वय की कमी दिखती है। किसानों की समस्याओं को एक ही स्थान पर हल करवाने की योजना है क्या?
जवाब : राज्य कृषि उत्पादन आयुक्त के माध्यम से समन्वय स्थापित किया जा रहा है। हां इसे थोड़ा और प्रभावी बनाने की जरुरत महसूस हो रही है। जल्दी ही आपको सभी विभागों में समन्वय स्थापित नजर आएगा।
सवाल : कृषि उत्पादों के मार्केटिंग, पैकेजिंग आदि की व्यवस्था नहीं है। इससे किसानों को भी घाटा है। क्या सरकार इस क्षेत्र में कुछ करने जा रही है?
जवाब : कृषि उत्पादों की पैकेजिंग और मार्केटिंग की व्यवस्था होगी। उन्हें 2022 तक लाभप्रद स्थिति में पहुंचाएंगे। किसानों को बिचौलियों और दलालों से भी मुक्त कराएंगे। लागत घटाएंगे, उत्पादन बढ़ाएंगे। सरकार ने किसानों से एक लाख मीट्रिक टन आलू खरीदने का निर्णय लिया है। इसका 50 प्रतिशत नेफेड खरीदेगा। 50 प्रतिशत की खरीद अन्य तीन एजेंसियां करेंगी। इसकी मार्केटिंग और पैकेजिंग कर अवसर तलाशा जायेगा।