खूंटी, (हि.स.)। अफीम की खेती के लिए खूंटी जिला सेफ जोन बन गया है। करीब डेढ़ महीने से खूंटी पुलिस अफीम की खेती को नष्ट करने में लगी है लेकिन पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि अब तक 10 फीसदी फसल भी नष्ट नहीं हो सकी है। खूंटी जिले के तीन प्रखंडों खूंटी, मुरहू और अड़की के ग्रामीण इलाकों के हजारों एकड़ खेत में पोस्ते की खेती लहलहा रही है। इन प्रखंडों के तिरला, बुदूडीह, अनिगड़ा, जोजोहातू, मदडीह, सैको व उलीडीह सहित दर्जनों गांवों में भारी मात्रा में अफीम की खेती की जा रही है। सूत्रों के अनुसार, एक एकड़ खेत में लगी फसल से लगभग सात से आठ लाख की अफीम मिलती है।
जानकारों का कहना है कि अफीम की खेती के कारण किसान धान व गेहूं आदि की फसल लगाना नहीं चाहते। हालांकि किसान स्वयं अफीम की खेती नहीं करते। सूत्रों ने बताया कि बाहर के लोग आकर किसानों को अफीम के बीज, खाद और अन्य जरूरी सामान मुहैया करा जाते हैं। जब फसल तैयार हो जाती है, तब वे किसानों से औने-पौने दाम में अफीम खरीद लेते हैं और दस गुनी कीमत में बाहर के बाजारों में बेचते हैं। किसानों को तो सिर्फ उनका मेहनताना भर मिलता है। जिले के जिन इलाकों में अफीम की खेती की जा रही है, उनमें प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों की तूती बोलती है। उनकी इजाजत के बिना इतनी बड़ी मात्रा में अफीम की खेती संभव ही नहीं है।
इसलिए इतना तय है कि जहर की इस खेती को माओवादियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन जरूर मिल रहा है। कुछ दिन पूर्व शांति सभा के बैनर तले ग्रामीणों ने स्वयं पोस्ते की खेती को नष्ट करने का अभियन शुरू किया था, लेकिन दो दिन बाद ही अभियान ठंडा पड़ गया। संभवतः माओवादियों के भय से ग्रामीणों ने अफीम के खिलाफ अपने अभियान को रोक दिया।