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झारखंड
पत्थलगड़ी का विरोध आदिवासियों की प्राचीनतम परम्परा का विरोध है : बंधु तिर्की
By Deshwani | Publish Date: 9/11/2017 5:31:42 PM
पत्थलगड़ी का विरोध आदिवासियों की प्राचीनतम परम्परा का विरोध है : बंधु तिर्की

रांची, (हि.स.)। झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के महासचिव और पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि पत्थलगड़ी का विरोध आदिवासियों की प्राचीनतम सभ्यता-संस्कृति और परम्परा का विरोध है। झारखंड सरकार द्वारा समाचार पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापनों के माध्यम से इसे संविधान विरोधी, राष्ट्रविरोधी कहना आदिवासियों की प्राचीनतम सांस्कृति को नष्ट करने का एक अभियान है । 

झाविमो महासचिव बंधु तिर्की ने गुरुवार को यहां प्रेसवार्ता में कहा कि राज्य सरकार को आदिवासी संस्कृति और परम्परा की जानकारी नहीं है। वे बिरसा मुण्डा जैसे शहीद का नाम लेकर इस धरती को कंलकित न करें। जहां तक पत्थलगड़ी परम्परा को संविधान विरोधी, राष्ट्र विरोधी घोषित करने की बात है, सरकार और उसके अधिकारियों को संविधान की पांचवीं अनुसूची का अध्ययन करना चाहिए । सरकार अगर संविधान का पालन करती है तो खान, खनिज, भूमि अधिग्रहण, लीज, पट्टे देने में पांचवीं अनुसूची का पालन क्यों नहीं करती है ? उन्होंने कहा कि अगर सरकार द्वारा पत्थलगड़ी के विरोध में जो पम्फलेट पूरे शहर में चिपकाये गए हैं,वह समय रहते हटा लें नहीं तो आदिवासी समाज मिलकर सभी को उखाड़ देंगे । 
 
उन्होंने कहा कि दक्षिण छोटा नागपुर क्षेत्र में एक पीढ़ी के बाद काली गाय की बलि की भी परम्परा है आदिवासी समाज में जो मेरे गांव बनोहर बुंगपुड़ी टोगड़ी, रातु प्रखंड में 17 फरवरी, 2018 को दी जाएगी। अगर सरकार में हिम्मत है तो इस परम्परा को रोक कर दिखाये। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि काली गाय की बलि प्रथा काफी पुरानी है, इसकी बलि से लुंगाबुरु प्रसन्न होते हैं और समाज की रक्षा करते हैं।
 
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