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झारखंड
छिन्नमस्तिका मंदिर में नवरात्र पर पुजारी, साधक एवं तांत्रिकों का लगा जमावड़ा
By Deshwani | Publish Date: 26/9/2017 3:59:14 PM
छिन्नमस्तिका मंदिर में नवरात्र पर पुजारी, साधक एवं तांत्रिकों का लगा जमावड़ा

रांची, (हि.स.)। झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा स्थित सिद्धपीठ मान्यता है कि असम स्थित मां कामाख्या मंदिर सबसे बड़ी शक्तिपीठ है। जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर ही है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर आस्था की धरोहर है। वैसे तो यहां सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है लेकिन शारदीय नवरात्रि पर पुजारी, साधक एवं तांत्रिकों का जमावड़ा लग गया है। छिन्नमस्तिका मंदिर में देश के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचाने वाले श्रद्धालुओं के अलावा विदेशों से भी श्रद्धालु साधना के लिए पहुंचे हैं। दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु मां के दरबार में पूजा-अर्चना कर मनोवांछित फल की आशा लिए वापस जाते हैं। यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं। मंदिर का मुख्य द्वारा पूरब मुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है। बलि-स्थान पर प्रतिदिन औसतन सौ-दो सौ बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है, इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे ते हैं। नवरात्रि के मौके पर असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेशों से साधक यहां हैं।
गौरतलब है कि अपने देश में मात्र तीन ही सिद्ध पीठ स्थित है, जिनमें पहला असम के कामरूप जिले का कामाख्या मंदिर, दूसरा झारखंड के रजरप्पा छिन्नमस्तिके मंदिर तथा तीसरा पश्चिम बंगाल का तारापीठ मंदिर। ऐसी मान्यता है की शक्ति पीठ के पहले मां का अस्तित्व इन्ही तीन सिद्ध पीठों में था और आज भी है, जहां मां सम्पूर्ण शरीर के साथ अतीत से लेकर वर्तमान तक निवास कर रही है। इसलिए ये तीन स्थान अपने देश में शक्ति के जागृत स्थान है। पिछले दो दशकों से लगातार साधना के लिए आने वाले एक साधक ने इस स्थान की महता बताते हुए कहा कि वह 1996 से प्रत्येक वर्ष यहां पर आता है। मां छिन्नमस्तिका बहुत ही सिद्ध स्थल है दामोदर और भैरवी का मिलन यहां होता है। यहां उपासना करने से देवी की कृपा से सिद्धि जल्द प्राप्त होती है।
 
6000 वर्ष पुराना है यह मंदिर
मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। कई विशेषज्ञ का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 6000 वर्ष पहले हुआ था और कई इसे महाभारतकालीन का मंदिर बताते हैं। छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा, यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती का बढ़ावा देता है। 
ऐसा है छिन्नमस्तिका का स्वरूप 
मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है। शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं। बायां पैर आगे बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। 
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