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झारखंड
यूनिसेफ प्रमुख मधुलिका ने कहा, बच्चों के जीवन की नींव को कमजोर करता है कुपोषण
By Deshwani | Publish Date: 1/9/2017 7:38:14 PM
यूनिसेफ प्रमुख मधुलिका ने कहा, बच्चों के जीवन की नींव को कमजोर करता है कुपोषण

रांची। आज राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के अवसर पर यूनिसेफ ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस अवसर पर (1 - 7 सितंबर) मां और बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने और जागरूकता बढ़ाने का काम किया जायेगा. इस वर्ष के पोषण सप्ताह का थीम है - ऑप्टिमल इन्फेंट एंड यंग चाइल्ड फिडिंग प्रैक्टिसेस: बेटर चाइल्ड हेल्थ। 

कार्यक्रम में बोलते हुए यूनिसेफ की झारखंड प्रमुख डॉ मधुलिका जोनाथन कहती हैं, ‘जन्म का प्रथम 1000 दिन, गर्भावस्था से लेकर पहला दो वर्ष बच्चों के लिए एक अनूठा अवसर होता है। इसी दौरान बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास की आधारशिला तैयार होती है, जो पूरे जीवन बच्चे के काम आती है। लेकिन अक्सर गरीबी और कुपोषण के कारण यह आधारशिला कमजोर हो जाती है, जिसके कारण समय पूर्व मौत और शारीरिक विकास प्रभावित होता है। 
 
बच्चों में लगभग 40-60 प्रतिशत कुपोषण का कारण गंदगी या अस्वच्छता हो सकता है, मुख्यत: डायरिया और बार-बार होने वाले आंतों के संक्रमण के कारण होने वाला कुपोषण. बार-बार होने वाले डायरिया के कारण बच्चे कुपोषित हो जाते हैं, क्योंकि बच्चे कम खाते हैं और उनका शरीर पोषण को ठीक से अवशोषित नहीं कर पाता। इसी प्रकार, एक कुपोषित बच्चे को डायरिया और दूसरे संक्रमण होने की काफी आशंका रहती है। यदि स्वच्छता और सफाई के उपायों को 99 प्रतिशत तक लागू किया जाये तो यह डायरिया से होने वाली समस्याओं को एक तिहाई तक कम कर सकता है। खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोने के अभ्यास को अपना डायरिया के खतरे को 48 प्रतिशत तक, पेयजल की गुणवत्ता को सुनिश्चित कर 17 प्रतिशत तक और मलमूत्र के सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित कर 36 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। 
 
एनएफएचएस-4 (2015-16) के अनुसार झारखंड में 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 45.3 प्रतिशत बच्चे बौने हैं या उम्र की तुलना काफी छोटे हैं, जो यह बतलाता है कि वे कुछ समय के लिए कुपोषित रहे हैं। 29 प्रतिशत बच्चों में सूखापन है या कहें कि शरीर की लंबाई की तुलना में काफी दुबले हैं, जो कि पोषक आहार न मिलने या हालिया बीमारी का कारण हो सकता है। लगभग 47.8 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है, जो कि पुराने और गंभीर कुपोषण का कारण हो सकता है। 15-49 वर्ष की 65.2 प्रतिशत से अधिक महिलाएं और 15-19 वर्ष की लगभग 65.3 प्रतिशत किशोरियां राज्य में एनीमिया ग्रस्त हैं।
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